रविवार, 28 फ़रवरी 2010

पूरी मानवता के लिए परम-आदर्श....

थोड़ी देर के लिए दुनिया के वर्तमान हालात को भूल कर शारीरिक आंखें बन्द करके कल्पना की आंखें खोल लीजिए और एक हज़ार चार सौ वर्ष पहले पीछे के संसार को देखिए, यह कैसा संसार था...? शायद जिन बातों को आज अंधविश्वास (Superstition) और गप समझा जाता है वे उस समय की “सच्चाईयां” (Unquestionable truths) थीं। जिन कार्यों को आज अशिष्ट और बर्बरतापूर्ण कहा जाता है वे उस समय के रोज़मर्रा के मामूली काम थे। मनुष्य की जानकारी कितनी कम थी, उसके विचार कितने संकीर्ण थे, उस पर भ्रम और असभ्यता कितनी छाई हुई थी, संसार में न तार था, न टेलीफोन था, न रेडियो, न रेल और वायुयान थे, न प्रेस थे, न स्कूल और कॉलेजों की अधिकता थी, उस समय एक विद्वान व्यक्ति की जानकारी भी कुछ पहलुओं से आधुनिक युग के एक साधारण व्यक्ति की अपेक्षा कम थी। और उसमें भी इस अंधकारमय युग में धरती का एक कोना ऐसा था, जहां अंधकार का बोल-बाला और भी अधिक था। जो देश उस समय की सभ्यता की कसौटी के अनुसार सभ्य थे उनके बीच अरब देश सबसे अलग-थलग पड़ा हुआ था। उसके पड़ोस में ईरान, रूस और मिस्र देश में विद्या-कला और सभ्यता और संस्कृति का कुछ प्रकाश पाया जाता था, परन्तु रेत के बड़े-बड़े समुद्रों ने अरब को उनसे अलग कर रखा था। अरब सौदागर ऊंटों पर महीनों चलकर इन देशों में व्यापार के लिए जाते और केवल माल का लेन-देन करके लौट जाते आते थे। ज्ञान और सभ्यता का कोई प्रकाश उनके साथ न आता था। सारे अरब देश में गिने-चुने कुछ लोग थे, जिनको कुछ लिखना-पढ़ना आता था किन्तु वह भी इतना नहीं कि उस समय की विद्याओं और कलाओं से परिचित होते। उनके पास एक उच्च कोटि की भाषा अवश्य थी, जिसमें ऊंचे विचारों को व्यक्त करने की असाधारण शक्ति थी। वहां कोई सुव्यवस्थित शासन न था, कोई ज़ाब्ता, नियम और क़ानून न था। हर क़बीला अपनी जगह स्वतंत्र था और केवल “जंगल के क़ानून” का पालन किया जाता था। जिसका जिस पर वश चलता उसे मार डालता और उसके धन और संपत्ति पर अधिकार जमा लेता। पवित्र और अपवित्र, वैध और अवैध, शिष्ट और अशिष्ट की परख से ये क़रीब-क़रीब अपरिचित थे। वे एक-दूसरे के सामने बिना किसी हिचक के नंगे हो जाते थे। उनकी स्त्रियां तक नंगी होकर ‘काबा’ का ‘तवाफ़’ (परिक्रमा) करती थीं। वे अपनी लड़कियों को अपने हाथ से जीवित गाड़ देते थे, केवल इस अज्ञानपूर्ण धारणा के कारण कि कोई उनका दामाद न बने। वे अपने बापों के मरने के बाद अपनी अपनी सौतेली माताओं से विवाह कर लेते थे। मुर्ति-पूजा, प्रेत-पूजा, नक्षत्र-पूजा, तात्पर्य यह कि एक ईश्वर की पूजा के सिवा संसार में जितनी पूजाएं पाई जाती थीं, वे सब उनमें प्रचलित थी।
ऐसे समय में और ऐसे देश में एक व्यक्ति जन्म लेता है। बचपन ही में माता-पिता और दादा का साया उसके सिर से उठ जाता है, इसलिए इस गई-गुज़री अवस्था में एक अरब बच्चे को थोड़ी-बहुत शिक्षा-दीक्षा मिल सकती थी वह भी उसे नहीं मिलती। होश संभालता है तो अरब लड़कों के साथ बकरियां चराने लगता है, जवान होता है तो सौदागरी में लग जाता है। उठना-बैठना, मिलना-जुलना सब-कुछ उन्हीं अरबों के साथ है जिनका हाल ऊपर आपने देख लिया।
केवल अरब की नहीं सम्पूर्ण संसार की दशा को दृष्टि में रखिए और देखिए। यह व्यक्ति जिन लोगों में पैदा हुआ, जिनमें बचपन गुज़ारा, जिनके साथ पलकर युवावस्था को पहुंचा, जिनसे उसका मेल-जोल रहा, जिनसे उसके मामले रहे, लेकिन आरंभ से ही स्वभाव में आचरण में वह उन सबसे भिन्न दिखाई देता है, वह कभी झूठ नहीं बोलता, उसकी सच्चाई पर उसकी जाति के सभी लोग गवाही देते हैं। उसकी बोली में कटुता और कठोरता की जगह मिठास है और वह भी ऐसी कि जो उससे मिलता है उसी का होकर रह जाता है। लोग उसे ‘अमीन’ (अमानतदार) कहते हैं। दुश्मन तक उसके पास अपने क़ीमती माल रखवाते हैं और वह उनकी भी रक्षा करता है।
लगभग चालीस वर्ष तक ऐसा पवित्र, स्वच्छ और शिष्ट जीवन बिताने के बाद उसके जीवन में एक क्रान्ति का आरंभ होता है। वह अंधकार से घबरा उठता है जो उसे हर ओर से घिरा दिखाई दे रहा था, वह अज्ञान, अनैतिकता, दुराचार, दुर्व्यवस्था और ‘शिर्क’ के उस भयानक समुद्र से निकल जाना चाहता है जो उसे घेरे हुए हैं। वह सबसे अलग होकर आबादी से दूर पहाड़ों की संगति में जा-जाकर बैठने लगता है। सोच-विचार करता है, कोई ऐसा प्रकाश ढूंढ़ता है जिससे वह इस चारों ओर छाए हुए अंधकार को दूर कर दे।
यह एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसके व्यक्तित्व की तारीफ शब्दों में संभव नहीं है। उनके बारे में जितना कुछ लिखा जाए, शायद कम होगा। आरंभ से लेकर अब तक बड़े-बड़े ऐतिहासिक मनुष्य जिनकी गणना संसार महान व्यक्तियों में करता है, तो उसके आगे बौने जैसे दिख पड़ते हैं। संसार के महान व्यक्तियों में से कोई भी ऐसा नहीं है जिसकी पूर्णता की चमक-दमक मानव जीवन के एक दो विभागों से आगे बढ़ सकी हो। सारांश में कहे तो इतिहास में हर ओर एकपक्षीय हीरो ही दिखाई देते हैं। परन्तु अकेला एक ही व्यक्तित्व ऐसा है जिसमें समस्त गुण एकत्र हैं। आप जिन लोगों को बड़ी उदारता के साथ “इतिहास बनाने वाले” की उपाधि देते हैं, वे वास्तव में इतिहास के बनाए हुए हैं। इतिहास बनाने वाला पूरे मानव इतिहास में केवल यही एक व्यक्ति है, जिसे दुनिया हज़रत मुहम्मद (स.) के नाम से जानती है।
हज़रत मुहम्मद (स.) ने समाज के कमज़ोर और बेसहारा लोगों को सम्मान और विश्वास प्रदान किया। जिस ने आपके रास्ते में कांटे बिछाए, आप ने उसे भी माफ किया और उसकी सहायता भी की। गुलामों को आज़ाद कराया, बच्चियों को ज़िन्दा गाड़ने की प्रथा का अन्त किया, विधवा की शादी को स्वीकारणीय बनाया। कैदियों और यतीमों (अनाथों) का सहारा बने और जिसकी मदद करने वाला कोई न था, उसकी मदद की। आपने ये सारे गुण अपने साथियों में उभारे। यहां तक कि कमज़ोरों की सहायता ने प्रतिस्पर्द्धा का रूप ले लिया। लोगों को लोगों से मुहब्बत करना सिखाया। पूरी दुनिया को शांति का संदेश दिया। और लोगों को बताया कि इस्लाम का अर्थ ही शान्ति और स्वेच्छा से आत्म-समर्पण है। लोगों को भाई-चारे का संदेश दिया। एक साथ मिल-जूल कर रहना सिखाया।
बड़ा आकर्षक व्यक्तित्व था अल्लाह के आखिरी पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (स.) का। जीवन में सादगी थी, एकरूपता थी। निजी और सामाजिक जीवन में बड़े परिवर्तन आए, परन्तु इस परम आदर्श व्यक्तित्व ने हर अवसर पर आदर्श ही छोड़ा। घर और बाहर के जीवन में कोई अन्तर न था, नबी बनाए जाने के पहले भी और बाद भी। ठाट-बाट आपको पसंद न था। किसी की बीमारी की खबर सुनते तो उसे देखने चले जाते और उसके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते। किसी की मृत्यु हो जाती तो उसके घर जाते और घर वालों को संयम और धैर्य की तलकीन करते। बच्चों से प्यार करते, बूढ़ों का आदर करते और सेवकों से अच्छा बरताव करते। सेवकों के साथ मिल कर काम करते और उनसे बराबरी का व्यवहार करते। किसी को नीची नज़र न देखते और न कभी उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाते। जो कुछ कहते उस पर पहले स्वयं अमल करते तभी तो ईश्वर ने उन्हें पूरी मानवता के लिए परम-आदर्श बनाया।
आज हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं। इन्सान अपने हम शक्ल की तस्वीर बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन चरित्र निर्माण से आजिज़ है। अब यह कहना पड़ रहा है कि हम सब कुछ कर सकते हैं, लेकिन अपने अन्दाज़ से, सोच से कुछ निर्माण नहीं कर सकते, अगर कर भी लें तो उसमें कोई न कोई नुक्स बाक़ी रह जाएगा। हक़ीक़त तो यह है कि अगर हमें चरित्र निर्माण करना है तो उसी कारखाने की तरफ जाना होगा, जो कि हज़रत मुहम्मद (स.) ने स्थापित किया था। आज की दुनिया की जितनी भी समस्याएं हैं, उन सब का हल संभव है, अगर हम हज़रत मुहम्मद (स.) के बताए हुए मार्ग पर चलने की कोशिश करें। उनके जीवन को आदर्श मान कर उसी तरह अपना जीवन व्यतीत करने का प्रण करें। उनके बातों पर अमल करने की कोशिश करें। क्योंकि हज़रत मुहम्मद (स.) का जीवन आज भी इस दुनिया के लिए प्यार, शांति, एकता का संदेश देता है। और वैसे भी हज़रत मुहम्मद (स.) सम्पूर्ण दुनिया के भलाई के लिए आए थे। उनके बताए हुए रास्ते पर चलने में भी समाज का कल्याण ही कल्याण है।

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