डॉ. रण्जीत
मस्जिद भी रहे, मंदिर भी बने
क्या यह बिल्कुल नामुमकिन है?
हिलमिल कर सब साथ रहें
क्या यह बिल्कुल नामुमकिन है?
इक मंदिर बने अयोध्या में
इसमें तो किसी को उज्र नहीं
पर वह मस्जिद की जगह बने
यह अंधी जिद है, धर्म नहीं।
क्या राम जन्म नहीं ले सकते
मस्जिद से थोड़ा हट करके?
किसकी कट जाएगी नाक अगर
मंदिर मस्जिद हों सट करके?
इंसान के दिल से बढ़कर भी
क्या कोई मंदिर हो सकता?
जो लाख दिलों को तोड़ बने
क्या वह पूजा घर हो सकता?
मंदिर तो एक बहाना है
मक़सद नफरत फैलाना है
यह देश भले टूटे या रहे
उनको सत्ता हथियाना है।
इस लम्बे-चौड़े भारत में
मुश्किल है बहुमत पायेंगे
यह सोच के ओछे मन वाले
अब हिन्दू राष्ट्र बनायेंगे।
इतिहास का बदला लेने को
जो आज तुम्हें उकसाता है
वह वर्तमान के मरघट में
भूतों के भूत जगाता है।
इतिहास-दृष्टि नहीं मिली जिसे
इतिहास से सीख न पाता है
बेचारा बेबस होकर फिर
इतिहास मरा दुहराता है।
जो राम के नाम पे भड़काए
समझो वह राम का दुश्मन है।
जो खून-खराबा करवाए
समझो वह देश का दुश्मन है।
वह दुश्मन शान्ति व्यवस्था का
वह अमन का असली दुश्मन है।
दुश्मन है भाई चारे का
इस चमन का असली दुश्मन है।
मंदिर भी बने, मस्जिद भी रहे
ज़रा सोचो क्या कठिनाई है?
जन्मभूमि है पूरा देश यह
इसे मत तोड़ो राम दुहाई है।
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