गौतम राय
फिर आज का सुबह, एक पैगाम लाया है।
न उजाड़ो इस घर को और, इसे बलिदानों ने बसाया है।।
क्या हिन्दू क्या मुसलमान, सबका ईमान सिर्फ हिन्दुस्तान।
इस देश ने ही हर शख्स का, इन्सान का गर्व दिलाया है।।
जहां की माटी से प्रेम की, दुनिया में सोंधी खुश्बू फैली।
है देश यही जिसने जग को, अहिंसा का पथ दिखलाया है।।
आज ये नफरतों का दौर, ये खून खराबा ये गोलियां।
क्या इसी दिन के लिए, शहीदों ने प्राण गंवाया है।।
इन्सानियत के फूल से, जिस देश की संस्कृति सजी।
किसने दामन पर आज, ये आतंक का दाग लगाया है।।
न तोड़ सका है कोई हमें, न टूटे थे, न टूटेंगे।
इतिहास गवाह सौ ज़ुल्मों ने, हमको एक बनाया है।।
(लेखक गौतम राय की यह कविता “अयोध्या की आवाज़” द्वारा 6 दिसम्बर 2005 को प्रकाशित सदभाव-स्मारिका में भी प्रकाशित हुई है।)
फिर आज का सुबह, एक पैगाम लाया है।
न उजाड़ो इस घर को और, इसे बलिदानों ने बसाया है।।
क्या हिन्दू क्या मुसलमान, सबका ईमान सिर्फ हिन्दुस्तान।
इस देश ने ही हर शख्स का, इन्सान का गर्व दिलाया है।।
जहां की माटी से प्रेम की, दुनिया में सोंधी खुश्बू फैली।
है देश यही जिसने जग को, अहिंसा का पथ दिखलाया है।।
आज ये नफरतों का दौर, ये खून खराबा ये गोलियां।
क्या इसी दिन के लिए, शहीदों ने प्राण गंवाया है।।
इन्सानियत के फूल से, जिस देश की संस्कृति सजी।
किसने दामन पर आज, ये आतंक का दाग लगाया है।।
न तोड़ सका है कोई हमें, न टूटे थे, न टूटेंगे।
इतिहास गवाह सौ ज़ुल्मों ने, हमको एक बनाया है।।
(लेखक गौतम राय की यह कविता “अयोध्या की आवाज़” द्वारा 6 दिसम्बर 2005 को प्रकाशित सदभाव-स्मारिका में भी प्रकाशित हुई है।)
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