केन्द्र में सरकार कौन बनाएगा, इसका फैसला तो होना बाकी है, लेकिन राजनीतिक चंदा उगाहने की बात की जाए तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कांग्रेस व अन्य दलों से खासी आगे है। वर्ष 2007-08 में भाजपा को मिले चंदे की राशि पहले दस स्थानों में शामिल नौ राजनीतिक दलों को मिलने वाली कुल राशि के दोगुने के बराबर है। वैसे, चंदे के लिहाज से कांग्रेस दूसरे स्थान पर है।
यह खुलासा ए।जे। किदवई मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेन्टर, जामिया मिलिया इस्लामिया के मीडिया छात्र अफरोज आलम साहिल को चुनाव आयोग से मिली जानकारी में हुआ है। मूलत: बेतिया चम्पारण के 21 वर्षीय साहिल ने राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट जगत व व्यक्तिगत स्तर पर मिलने वाले चंदे के बारे में जानकारी मांगी थी। साहिल के अनुसार यह राजनीतिक दलों के वित्तीय संसाधनों के बारे में पारदर्शिता का प्रयास है। साथ ही सवाल उठता है कि आखिर जो लोग चंदा दे रहे हैं, वो इसका क्या फायदा उठा रहे हैं। साल 2007-08 के लिए देश के मात्र 18 राजनीतिक दलों ने ही चुनाव आयोग को चंदे का ब्यौरा दिया है, जबकि देश में सात राष्ट्रीय दल, 41 क्षेत्रीय दल व 949 गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं।साहिल ने बताया कि राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों में खनन कम्पनियां, रीयल एस्टेट कम्पनियां, ट्रस्ट, कल्याण संगठनों से लेकर शिक्षा के मन्दिर यानी निजी विद्यालय भी शामिल हैं। यही नहीं चंदा लेने में ज्यादा गुरेज नहीं किया जाता। उदाहरण के लिए भाजपा कभी भोपाल गैस कांड की दोषी कम्पनी की घोर विरोधी थी, लेकिन वर्ष 2006-07 में यूनियन कार्बाइड के नए मालिक डाओ कैमिकल्स से एक लाख रूपए चंदा लेने में परहेज नहीं किया गया। यह जरूर है कि भाजपा को नियमित चंदा देने वाले बहुत कम है अर्थात एक बार दे दिया तो दोबारा देना मुनासिब नहीं समझा जाता। रिप्रेजेन्टेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट 1951 में वर्ष 2003 में संशोधन के तहत नियम बनाया गया था कि सभी राजनीतिक दलों को धारा 29 (सी) की उपधारा -(1) के तहत फॉर्म 24 (ए) के माध्यम से चुनाव आयोग को यह जानकारी देनी होती है कि उन्हें हर वित्तीय वर्ष में किनसे और कितना चंदा मिला। इस नियम के तहत राजनीतिक दलों को बीस हजार रूपए से अधिक के चंदे की ही जानकारी देनी होती है। राजनीतिक दल निजी स्तर पर अंकेक्षण करा आयकर विभाग या आयोग को जानकारी देते हैं। भारतीय राजनीति के कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाने वाले रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, करूणानिधि, शिबूसोरेन और चंदे के कारण चर्चाओं में रहने वाली बहुजन समाज पार्टी ने चंदे के बारे में चुनाव आयोग को जानकारी देने की जानकारी देने की जरूरत ही महसूस नहीं की।
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