बिहार का खुब विकास हो रहा है। हर दिन नए-नए विकास योजनाओं का उदघोषनाएं हो रही हैं। विकास कार्यो के विज्ञापन अखबारों में खुब छप रहें हैं। हर दिन किसी न किसी काम का शिलान्यास हो रहा है। यानी हम कह सकते हैं कि बिहार अब तरक्की को लात मार रही है। इसके लिए बधाई के पात्र हैं हमारे सुशासन बाबू यानी नीतिश कुमार जी।
पर अफसोस..... नीतिश कुमार जी के बिहार में एक ऐसा भी वार्ड है, जहां विकास का कोई कार्य नहीं हुआ। य़े बातें मैं नहीं कह रहा हूं, बल्कि बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले के बेतिया नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी महोदय लिखित रूप में कह रहे हैं।
दरअसल, पिछले वर्ष दिसम्बर में मैंने वार्ड नम्बर-18 के वार्ड पार्षद द्वारा अपने वार्ड में कराए गए विकास कार्यों को जानने हेतु सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन बेतिया नगर परिषद में डाला (इस आवेदन को डालने में मुझे काफी मेहनत व मुशक्कत करनी पङी थी। यहां तक कि राज्य सूचना आयोग को शिकायत भी करनी पङी। 20-25 दिनों के प्रयास के बाद मैं सफल हो पाया था। इस तरह यह आवेदन की अपनी एक अलग कहानी है। खैर छोङिए इन बातों को)
आवेदन के जवाब में बताया गया कि वार्ड पार्षद द्वारा विकास से संबंधित किसी प्रकार का कोई भी कार्य नहीं कराया गया है। खैर यह मामला 31 जनवरी 2008 का है।
मैंने पुनः 18 जून 2008 को बिहार के जानकारी नामक कॉल सेन्टर के माध्यम से एक आवेदन दर्ज कराई। कॉल सेन्टर की मेहरबानी से मेरा यह आवेदन नगर परिषद,बेतिया के बजाए नगर विकास एवं आवास विभाग,पटना को पहुंच गया। लेकिन मैं इसलिए संतुष्ट था कि नगर विकास एवं आवास विभाग आर.टी.आई. की धारा-6(3) का प्रयोग करते हुए मेरे इस आवेदन तो सही जगह पहुंचा देगी। और हुआ कुछ ऐसा ही..... मेरे आवेदन को ठीक 43 दिनों बाद यानी 31 जुलाई 2008 को बेतिया नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी सह लोक सूचना पदाधिकारी महोदय को भेज दिया गया।(हालांकि इसे यह काम अधिनियम के अनुसार सिर्फ 5 दिन के अन्दर करना था।) खैर बेतिया नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी ने मेरे इस आवेदन के साथ क्या किया,ये उपर वाला ही जाने। क्योंकि मेरे पास कहीं से कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई। वैसे मैंने 25 जुलाई को प्रथम अपील भी इसी कॉल सेन्टर के माध्यम से दायर कर दिया था। जब कोई फायदा नहीं हुआ तो 29 सितम्बर 2008 को द्वितीय अपील भी दायर की।
22 अक्टूबर को नगर विकास एवं आवास विभाग, पटना ने मुझे एक सूचना भेजी। ये सूचना अपने आप में काफी दिलचस्प है। इसके लिए नगर विकास एवं आवास विभाग, पटना की जितनी प्रशंसा की जाए,कम होगी। मैंने वार्ड नम्बर-18 के वार्ड पार्षद द्वारा अपने वार्ड में कराए गए विकास कार्यों की सूचना मांगी थी,पर इस विभाग की कृपा से वार्ड-15 जो अब वार्ड-19 है के पूर्व वार्ड पार्षद सुरैया साहाब के कार्यकाल में वार्ड में कराए गए 5 कार्यों की सूची मिल गई, वह भी आधी-अधूरी। वाह रे बिहार....... वाकई तरक्की को लात मार रही है बिहार। इधर द्वितीय अपील भी दायर किए तीन महीने पूरे हो चुके थे, अंतत: राज्य सूचना आयोग ने दिनांक 12 दिसम्बर 2008 को नगर विकास एवं विकास विभाग के लोक सूचना पदाधिकारी को एक पत्र निर्गत कर यह आदेश दिया कि 09 जनवरी 2009 तक यदि सूचना आवेदक को उपलब्ध न कराई गई तो 18.07.2008 के प्रभाव से 250/- रुपये प्रतिदिन की दर से आर्थिक दंड लगाया जाएगा।
आयोग के इसी आदेश का असर हुआ कि अंतत: मुझे आयोग के फैसले के मुतबिक 5 दिन की देरी से अर्थात दिनांक 13 जनवरी 2009 को नगर परिषद कार्यालय, बेतिया द्वारा सूचना प्राप्त हुआ। पर अफसोस यह सूचना भी गलत ही निकली, क्योंकि इस सूचना में वर्तमान वार्ड पार्षद के बजाए पूर्व वार्ड पार्षद की सूचनाए हैं, वह भी आधी-अधूरी.....
नीतिश जी! आप सिर्फ विकास के कागजी घोङे मत दौङाइए, ज़रा इन वार्ड पार्षद और सूचना के अधिकार के तहत बहाल जन सूचना अधिकारियों पर भी ध्यान दीजिए। और वैसे भी सिर्फ जुबानी जमा खर्च से पब्लिक अब बेवकूफ बनने वाली नहीं है।
पर अफसोस..... नीतिश कुमार जी के बिहार में एक ऐसा भी वार्ड है, जहां विकास का कोई कार्य नहीं हुआ। य़े बातें मैं नहीं कह रहा हूं, बल्कि बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले के बेतिया नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी महोदय लिखित रूप में कह रहे हैं।
दरअसल, पिछले वर्ष दिसम्बर में मैंने वार्ड नम्बर-18 के वार्ड पार्षद द्वारा अपने वार्ड में कराए गए विकास कार्यों को जानने हेतु सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन बेतिया नगर परिषद में डाला (इस आवेदन को डालने में मुझे काफी मेहनत व मुशक्कत करनी पङी थी। यहां तक कि राज्य सूचना आयोग को शिकायत भी करनी पङी। 20-25 दिनों के प्रयास के बाद मैं सफल हो पाया था। इस तरह यह आवेदन की अपनी एक अलग कहानी है। खैर छोङिए इन बातों को)
आवेदन के जवाब में बताया गया कि वार्ड पार्षद द्वारा विकास से संबंधित किसी प्रकार का कोई भी कार्य नहीं कराया गया है। खैर यह मामला 31 जनवरी 2008 का है।
मैंने पुनः 18 जून 2008 को बिहार के जानकारी नामक कॉल सेन्टर के माध्यम से एक आवेदन दर्ज कराई। कॉल सेन्टर की मेहरबानी से मेरा यह आवेदन नगर परिषद,बेतिया के बजाए नगर विकास एवं आवास विभाग,पटना को पहुंच गया। लेकिन मैं इसलिए संतुष्ट था कि नगर विकास एवं आवास विभाग आर.टी.आई. की धारा-6(3) का प्रयोग करते हुए मेरे इस आवेदन तो सही जगह पहुंचा देगी। और हुआ कुछ ऐसा ही..... मेरे आवेदन को ठीक 43 दिनों बाद यानी 31 जुलाई 2008 को बेतिया नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी सह लोक सूचना पदाधिकारी महोदय को भेज दिया गया।(हालांकि इसे यह काम अधिनियम के अनुसार सिर्फ 5 दिन के अन्दर करना था।) खैर बेतिया नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी ने मेरे इस आवेदन के साथ क्या किया,ये उपर वाला ही जाने। क्योंकि मेरे पास कहीं से कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई। वैसे मैंने 25 जुलाई को प्रथम अपील भी इसी कॉल सेन्टर के माध्यम से दायर कर दिया था। जब कोई फायदा नहीं हुआ तो 29 सितम्बर 2008 को द्वितीय अपील भी दायर की।
22 अक्टूबर को नगर विकास एवं आवास विभाग, पटना ने मुझे एक सूचना भेजी। ये सूचना अपने आप में काफी दिलचस्प है। इसके लिए नगर विकास एवं आवास विभाग, पटना की जितनी प्रशंसा की जाए,कम होगी। मैंने वार्ड नम्बर-18 के वार्ड पार्षद द्वारा अपने वार्ड में कराए गए विकास कार्यों की सूचना मांगी थी,पर इस विभाग की कृपा से वार्ड-15 जो अब वार्ड-19 है के पूर्व वार्ड पार्षद सुरैया साहाब के कार्यकाल में वार्ड में कराए गए 5 कार्यों की सूची मिल गई, वह भी आधी-अधूरी। वाह रे बिहार....... वाकई तरक्की को लात मार रही है बिहार। इधर द्वितीय अपील भी दायर किए तीन महीने पूरे हो चुके थे, अंतत: राज्य सूचना आयोग ने दिनांक 12 दिसम्बर 2008 को नगर विकास एवं विकास विभाग के लोक सूचना पदाधिकारी को एक पत्र निर्गत कर यह आदेश दिया कि 09 जनवरी 2009 तक यदि सूचना आवेदक को उपलब्ध न कराई गई तो 18.07.2008 के प्रभाव से 250/- रुपये प्रतिदिन की दर से आर्थिक दंड लगाया जाएगा।
आयोग के इसी आदेश का असर हुआ कि अंतत: मुझे आयोग के फैसले के मुतबिक 5 दिन की देरी से अर्थात दिनांक 13 जनवरी 2009 को नगर परिषद कार्यालय, बेतिया द्वारा सूचना प्राप्त हुआ। पर अफसोस यह सूचना भी गलत ही निकली, क्योंकि इस सूचना में वर्तमान वार्ड पार्षद के बजाए पूर्व वार्ड पार्षद की सूचनाए हैं, वह भी आधी-अधूरी.....
नीतिश जी! आप सिर्फ विकास के कागजी घोङे मत दौङाइए, ज़रा इन वार्ड पार्षद और सूचना के अधिकार के तहत बहाल जन सूचना अधिकारियों पर भी ध्यान दीजिए। और वैसे भी सिर्फ जुबानी जमा खर्च से पब्लिक अब बेवकूफ बनने वाली नहीं है।
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