अफरोज आलम साहिल
आदर्श सोसाइटी का मसला हो या फिर 2 जी स्पेक्ट्रम का कोहराम। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। घोटाले राजनीति का हिस्सा हैं। अगर घोटाले नहीं होंगे तो राजनीति चलेगी कैसे। पक्ष हो या विपक्ष दोनो के लिए ये बातें बेहद आम हैं। अगर कोई सोचता है कि आदर्श घोटाले ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की बलि ले ली तो वो अजीब खुशफहमी में जी रहा है। हुआ तो ये कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को करोड़ों देशवासियों की आंखों के सामने ही अभयदान दे दिया गया। रंगमंच के स्टेज पर पड़ने वाली स्पॉट लाइट का मुंह घुमा दिया गया। बड़ी चालाकी से अशोक चह्वाण स्पॉट लाइट के दायरे से बाहर कर दिए गए। अब कोई जिम्मेदारी नहीं, कोई जवाबदेही नहीं। इससे पहले के मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख भी हटे थे तो वे फिलवक्त केंद्र में भारी उद्योग मंत्री हैं। आदर्श घोटाले की स्पॉट लाइट उन पर व एक और केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे पर भी थी, मगर थोड़ा हल्के तरीके से। सो दोनों बख्शे गए। राजनीति का मतलब ही करप्शन हो चुका है। जो गलती से पकड़ा जाए, उसे घबराने की जरूरत नहीं है। थोड़ा वक्त बीतेगा, फिर एक नई मलाईदार पोजीशन मिल जाएगी। करप्शन करने की खातिर। उसकी बंदरबांट की खातिर।
हमाम में सभी नंगे हैं। हिमाचल के सुखराम को इस मौके पर याद करना बेहद ही प्रासंगिक होगा। सुखराम इस सिस्टम में अमर हो चुके हैं। जब भी ऐसा कोई मामला होगा, उनका नाम अपने आप ही सामने आएगा। ए. राजा के नाम पर जमीन आसमान एक कर देनी वाली बीजेपी को भी इस मौके पर सुखराम को याद करना चाहिए। बीजेपी ए. राजा का विरोध इसलिए नहीं कर रही है कि उन्होंने एक दैत्याकार घोटाले को अंजाम दिया है। ए. राजा का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि वो कांग्रेसी सरकार के मंत्री हैं। अगर कल मान लीजिए कि सत्ता का समीकरण कुछ इस तरह से बैठता है कि ए. राजा और उनकी पार्टी के समर्थन से बीजेपी सरकार बनाने की हैसियत में आ जाती है तो राजा के पक्ष में कांग्रेस के जो तर्क हैं, वही तर्क बीजेपी के हो जाएंगे। फिर बीजेपी भी कहेगी कि बिना जांच कोई फैसला कैसे हो सकता है। खुद को दूध का धुला साबित करने में तुली बीजेपी पहले भी ऐसा कर चुकी है। जिस पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम के भ्रष्टाचार को लेकर बीजेपी ने संसद में हंगामा काट दिया था, उसी सुखराम से बाद में गठजोड़ कर बीजेपी ने हिमाचल में सरकार बनाई थी। क्या बीजेपी को ये बातें अब याद नहीं हैं। उस वक्त बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने यह कहकर सुखराम का बचाव किया था कि वे पहले सुखराम थे, अब सोखाराम हो चुके हैं। उनके पास अब करप्शन के नाम पर कुछ नहीं है। दरअसल, ये बीजेपी का ही चरित्र नहीं है। यही सत्ता का चरित्र है। सत्ता में जो भी आता है, ऐसा ही करता है। करप्शन सभी की जरूरत है। राजनीति वो हथियार बन चुकी है जो करप्शन को पर्दे के पीछे घसीटने का काम करती है। अगर करप्शन सामने आ जाए तो राजनीति के हथियार से इसे पर्दे के पीछे धकेल दिया जाता है। यही चह्वाण मामले में हुआ।
हैरानी इस बात की है कि सुरेश कलमाड़ी को लेकर बीजेपी जमीन आसमान एक कर देती है। ऐसा करना समझ में भी आता है। कलमाड़ी पर इल्जाम है कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर करोड़ों के हेरफेर और अभूतपूर्व भ्रष्टाचार का। मगर सुधांशु मित्तल के नाम पर बीजेपी बचाव में क्यूं आ जाती है? क्या मित्तल पर भ्रष्टाचार का आरोप इसलिए मायने नहीं रखता क्योंकि वो बीजेपी के साथ हैं। क्या बीजेपी ये मानती है कि उसकी पार्टी का कोई भी नेता भ्रष्ट हो ही नहीं सकता। इस लड़ाई में यही बड़ी दिक्कत है और यही करप्शन को जायज ठहराने की बड़ी राजनीति भी है। कांग्रेस को बीजेपी का करप्शन दिखाई देता है। आदर्श सोसाइटी मामले की राजनीतिक जांच करने वाले प्रणव मुखर्जी अशोक चह्वाण के हटने के बाद बयान देते हैं कि चह्वाण इस मामले में दोषी नहीं हैं। उन्होंने तो पेंडिंग इन्क्वायरी इस्तीफा दिया है। सवाल सीधा सा है कि अगर अशोक चह्वाण दोषी नहीं हैं तो उनका इस्तीफा आलाकमान ने क्यूं लिया। और अगर इस्तीफा लिया तो फिर उन्हें निदरेष साबित करने की मुहिम क्यूं चलाई जा रही है। क्या इसलिए कि कांग्रेस की नजरों में कोई भी कांग्रेसी नेता करप्ट हो ही नहीं सकता। जैसे बीजेपी की नजरों में सुधांशु मित्तल निदरेष हैं, वैसे ही कांग्रेस की नजर में अशोक चह्वाण पाक साफ हैं। क्यों बीजेपी को कर्नाटक की माइनिंग लॉबी का खेल नजर नहीं आता है और क्यों कांग्रेस राजस्थान के राजनीतिक माइनिंग माफियाओं पर चुप्पी साधे बैठी है। मूर्ख कौन है। बीजेपी, कांग्रेस, हमारी संसद या आम जनता जो इन्हें चुनकर भेजती है।
हमाम में सभी नंगे हैं। मायावती से लेकर लालू व नीतीश तक करप्शन के इल्जाम सब पर हैं। दूसरे घोटालेबाज अफसर जो इस मामले में संलिप्त हैं, उन्हें क्यों नहीं निकाला जा रहा? क्या आप सोच सकते हैं कि सी़बी़आई़ के कॉमन वेल्थ गेम्स में शीला दीक्षित पर भ्रष्टाचार के जो आरोप हैं, जयपाल रेड्डी पर जो इल्जाम हैं, स्पोर्ट्स मंत्री पर जो इल्जाम हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। शायद कभी नहीं..
हद तो यह है कि जो भाजपा ‘आदर्श घोटाला’ मामले पर इतना हंगामा कर रही है वो भी खुद दूध की धुली नहीं है। भाजपा के शासनकाल में ही कॉफिन कांड, बंगारू लक्ष्मण के जरिए हथियार खरीदने में रिश्वत लेने जैसा मामला, यूनियन ट्रस्ट ऑफ इंडिया का यूएस-54 का पांच हजार करोड़ का घोटाला, अरविंद जौहरी के लखनऊ के साइबर ट्रोन तकनीकी आईटी पार्क सहित गुजरात सरकार के सुजलाम सुफलाम के ग्यारह सौ करोड़ का घोटाला, डिस-इंवेस्टमेंट के नाम पर बाल्को का पांच हजार करोड़ का घोटाला, मुंबई के सेंट्रल होटल के सौ करोड़ का घोटाला जैसे न जाने कितने घोटाले देश की जनता के सामने आ चुके हैं। यहां तक कि आडवाणी साहब का नाम भी जैन हवाला की डायरी में दर्ज है। मजेदार तो यह है कि आदर्श घोटाला मामले में अजय संचेती का नाम भी लोगों के सामने है। तो भाजपा खामोश है। शायद इसलिए कि अजय संचेती नितिन गडकरी के करीबी हैं और झारखंड में सरकार बनवाने में इनका अहम रोल रहा था।
बहरहाल सबसे अहम मुद्दा यह है कि यह सारी चीजें इस देश में क्यों हो रही हैं? आज तक किसी भी केस या मामले में किसी नेता को सजा क्यों नहीं हुई है? देश के तमाम सियासी पार्टियां अपनी गंदी सियासत छोड़ कर एक साथ बैठ कर यह क्यों नहीं सोचते कि देश में एक ऐसी एंटी-करप्शन एजेंसी की जरूरत है जो आजाद हो? आखिर इस देश में सी़बी़आई़ और सी़वी़सी़ क्या कर रही हैं? खुद इनमें कितना करप्शन है? केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सी़वी़सी़) के पास कोई पावर नहीं है। वह सिर्फ एक एडवाइजरी बॉडी है जो सरकार को सिर्फ सलाह दे सकती है, कार्रवाई करने का कोई पावर उसके पास नहीं है। सी़बी़आई़ के पास पावर तो है, लेकिन वह आजाद नहीं है। हंसी तो इस पर आती है कि जिस सूचना के अधिकार कानून के जरिए आदर्श घोटाले की सच्चाई सामने आई है, उसी कानून का रखवाला घोटाले में संलिप्त होने के आरोप के बावजूद अपनी कुर्सी पर बना है और सच के सिपाही इनके खिलाफ सारे सबूत के साथ अपनी जंग लड़ रहे हैं। खैर जब तक हम एक ऐसी स्वतंत्र, प्रभावशाली एंटी करप्शन मशीनरी की बात नहीं करेंगे तब तक हम एक एक घोटाले पर चर्चा करते रह जाएंगे और देश की जनता बार बार ठगी जाती रहेगी..
(लेखक आर.टी.आई. एक्टिविस्ट हैं।)
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