मंगलवार, 25 नवंबर 2008

राजनीतिक दल भूले भोपाल गैस पीड़ितों को

पाणिनी आनंद
भारत में इन दिनों विधानसभा चुनावों का मौसम है. पाँच राज्यों की लड़ाई पर देशभर की नज़र है. राजनीति हो रही है, मुद्दे उछाले जा रहे हैं, उपलब्धियाँ गिनाई जा रही हैं, वोट मांगे जा रहे हैं.
पर मध्य प्रदेश के राजनीतिक दलों को शायद 24 साल से तड़प रही राज्य की राजधानी की लगभग आधी आबादी का मुद्दा इस बार शायद मुद्दा ही नहीं लग रहा है.
वर्ष 1984 में हुई दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी यानी भोपाल गैस कांड को स्थानीय स्तर पर ही राजनीतिक दलों ने अनदेखा कर दिया है.
हालाँकि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्रों के भीतरी पृष्ठों में इस त्रासदी के पीड़ितों के लिए राहत के प्रयास करने की बात कही है पर राजनीतिक मंचों पर यह मुद्दा एकदम नदारद ही है. बाकी राजनीतिक दल भी इस पर कुछ कहते, बोलते नज़र नहीं आ रहे हैं.
मध्यप्रदेश से बीबीसी संवाददाता फ़ैसल मोहम्मद अली ने बताया कि इस बार किसी भी पार्टी की ओर से भोपाल गैस पीड़ितों का मुद्दा नहीं उठाया जा रहा है. पीड़ितों ने ज़रूर एक-दो मोर्चे, रैली निकालकर अपने इस मुद्दे को चर्चा में लाने की कोशिश की पर राजनीतिक पार्टियों के कान में जूँ रेंगती नज़र नहीं आ रही है.
क्यों भूले भोपाल त्रासदी
भोपाल गैस पीड़ितों के सवालों को लेकर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल जब्बार ने बीबीसी को बताया, "यह विडंबना ही है कि 12 लाख मतदाताओं वाले भोपाल में लगभग पाँच लाख प्रभावितों का मुद्दा इस बार अनदेखा कर दिया गया है. दरअसल, साफ़ दिख रहा है कि राजनीतिक दलों के लिए ग़रीब और उनके सवाल अब फ़ोकस नहीं रह गए हैं."
जब्बार इसकी वजहों को समझाने की कोशिश करते हुए कहते हैं कि 24 बरसों पुरानी इस त्रासदी के लिए लोगों को जो भी राहत या सहायता मिली, उसकी वजह राजनीतिक दल नहीं रहे, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इसकी वजह थे. राजनीतिक दलों ने तो इस मुद्दे पर केवल राजनीतिक रोटियाँ सेंकीं हैं.
भोपाल गैस पीड़ितों के सवालों पर नज़र रखते आए कुछ विशेषज्ञों से जब इस सिलसिले में बात की तो उन्होंने बताया कि राज्य में मोतालाल वोरा की सरकार के बाद से किसी भी मुख्यमंत्री ने भोपाल गैस पीड़ितों के लिए ऐसा कुछ नहीं किया, जिसे संतोषजनक कहा जा सके.
और तो और, अब गैस पीड़ितों के लिए बने अस्पताल, राहत कोषों और अन्य योजनाओं पर भी ताला लगाने की बारी आती दिखाई दे रही है.
जानकार बताते हैं कि भाजपा ने इस मुद्दे को पिछले चुनाव तक उठाया तो पर कोशिश नए भोपाल के लोगों को भी (जो हिंदू बहुल इलाक़ा है) मुआवज़ा दिलाने की लड़ाई बनकर ही रह गया और पीड़ित को पीड़ित नहीं, पहचान की नज़र से देखा जाने लगा.
भोपाल गैस पीड़ित इस सिलसिले में वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर केंद्र और राज्य सरकार के कई नेताओं को आड़े हाथों लेते हैं.
नहीं भरे गैस पीड़ितों के घाव
पीड़ितों की पदयात्रा
ग़ौरतलब है कि 1989 में यूनियन कार्बाइड से सात अरब 15 करोड़ रुपए का समझौता हुआ था वह इस आधार पर था कि गैस रिसाव से तीन हज़ार लोगों की मौत हुई थी और एक लाख बीस हज़ार लोग प्रभावित हुए थे.
लेकिन चार साल पहले जो आधिकारिक आंकड़े आए उनके अनुसार अब तक इस दुर्घटना में मारे गए लोगों की संख्या 15 हज़ार है और पाँच लाख से अधिक पीड़ित हैं. इसके बाद से ही पुनर्वास से लेकर स्वास्थ्य और बाकी राहतों की माँग और मज़बूत हुई है.
दलों का दोहरा चरित्र..?
1984 में जब भोपाल गैस त्रासदी हुई थी तो भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार की मंशा, राहतकार्यों और प्रतिबद्धता को मुद्दा बनाया था. कांग्रेस के कुछ नेताओं पर विपक्ष ने यूनियन कार्बाइड का पक्ष लेने के आरोप लगाए.
इस तरह दो दशकों से इस मुद्दे पर राजनीति होती रही पर भोपाल गैस पीड़ित अभी भी अभावों और तकलीफ़ की कहानी दोहराने को विवश हैं. कभी राज्य के चौराहों पर तो कभी दिल्ली की सड़कों पर.
पिछले पाँच बरसों से राज्य में भाजपा की सरकार है. मध्यप्रदेश में राज्य सरकार के वर्तमान गैस राहत मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर से हमने इस बारे में पूछा कि क्या कारण है कि भोपाल गैस पीड़ित उनका विरोध कर रहे हैं और उनपर गैस पीड़ितों के लिए कुछ न करने का आरोप लगा रहे हैं.
इसके जवाब में गौर ने भोपाल गैस पीड़ितों की उपेक्षा की बात को बेबुनियाद बताया और कहा कि भोपाल गैस पीड़ित भोपाल के केवल उतने हिस्से में नहीं हैं, जिनकी लड़ाई एनजीओ और जनसंगठन लड़ने का दावा कर रहे हैं, बल्कि नए भोपाल के भी लोग इससे प्रभावित हुए थे.
उन्होंने कहा, "नए भोपाल के लोगों को राहत मुआवज़े की बात करके इस मुद्दे को और बड़ा बनाया है. उपेक्षा हुई है पर राज्य की ओर से नहीं, केंद्र की ओर से. केंद्र सरकार से कई बार गुहार लगाने के बाद भी यूपीए पीड़ितों की मदद के लिए आगे नहीं आ रही है."
कहने, करने का फ़र्क
इसी वर्ष सूचना का अधिकार क़ानून के तहत जब देश के प्रमुख राजनीतिक दलों को मिल रहे चंदे का हिसाब मांगा गया तो पता चला कि गैस प्लांट की वर्तमान मालिक डाओ कैमिकल्स ने भारतीय जनता पार्टी के कोष में भी चंदा जमा करवाया है.
राजनीतिक दल किनसे ले रहे हैं चंदा
ऐसे में कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि डाओ कैमिकल्स से चंदा ले चुकी पार्टी अब किस नैतिकता की चादर ओढ़कर लोगों से भोपाल गैस पीड़ितों को राहत की बात कहे और कांग्रेस पर कीचड़ उछाले.
पर बाबूलाल गौर इस सवाल पर अलग राय रखते हैं, उन्होंने यह सवाल उठाने पर कहा, "चंदा हमें नहीं, दिल्ली में दिया गया. उन्होंने पैसा जबरन भेज दिया तो क्या किया जा सकता था. फिर चंदा भी केवल एक लाख रूपए का ही था. उससे हम क्या करेंगे. इतना पैसा तो आजकल एक पार्षद को मिल जाता है."
जानकार मानते हैं कि डाओ कैमिकल्स से चंदे का मुद्दा सामने आने के बाद भाजपा के लिए भी भोपाल गैस पीड़ितों के मुद्दे को ज़ोरदार ढंग से उठाना और कांग्रेस को इस मुद्दे पर घेरना आसान नहीं रह गया है.
वजहें जो भी गिनाई जाएं, तर्क जो भी मिलें पर इतना तो साफ़ है कि सियासत के नए और उथले दांवों से खेली जा रही राजनीति की कुश्ती में मानवीय और नैतिक सवालों पर अब ध्यान कम ही दिया जा रहा है.
भोपाल गैस एक मुद्दा है. कुपोषण, शिक्षा, पुनर्वास और बदतर स्वास्थ्य सेवाओं पर भी चुनावी बिगुल कहाँ सुनाई दे रहे हैं.
घोषणा पत्र में स्याही के कुछ छींटे ज़रूर हैं पर लोग पार्टियों को घोषणा पत्रों के ज़रिए नहीं पहचानते और जिन्हें वे पहचानते हैं, उनकी ज़बान से ऐसी कई त्रासदियाँ, ऐसे कई मुद्दे ग़ायब हैं.

रविवार, 23 नवंबर 2008

Media fails to report Batla encounter reality


Afroz Alam'Sahil'
THE MORNING of September 19, waslike any ordinary day, working people had gone to their offices, students had gone to their schools or colleges and those who had stayed back were preparing to take part in Friday ‘namaaz’. But suddenly with the sound of bullets our phones also began ringing incessantly. Where are you? There is a shootout going on at Batla House. There are terrorists in your area and an uproar in the media world. (In this hue and cry everybody said what they wanted to. I don’t think it is necessary to repeat those statements.) This hue and cry continued for the next two days. After which there was some respite. But it awakened the public. Infact, this commotion awakened a community so much that they lost all faith in the electronic media but the print media succeeded in saving its skin.
But here, the media seemed to be divided into two factions. One faction believed the encounter to be Delhi Police’s biggest success while the other was deeming this success as a fallacy. Some people of this faction even refused to call it an encounter. They say that it will be better to call it a murder. I thought this encounter to be a big success of the Delhi Police as every citizen of this country was getting fed up of terrorism and bomb blasts. A section of the media who were calling it a farce had no concrete proof. News was written only on the basis of hear-say. The reality remained a mystery as a very large group was not ready to congratulate the Delhi Police for this success. Plus, the media also had to capture this segment of the government’s vote bank as their customers.
Even I was getting weary of listening and hearing different opinions. But being a mass communication student, even I have some responsibilities. I have full faith in the country’s laws. I used the Right to Information Act and sought some information from institutions like AIIMS, NHRC, Delhi Police and the Supreme Court. I hoped some truth would come out from their answers as the Delhi Police had hidden vital information. And here my work was appreciated by the Hindustan Times and a few more newspapers also reported about my RTI application.
Apart from the AIIMS and NHRC, the other two departments did not care to reply to my application. And the AIIMS also refused to give any information. While the RTI Act was being violated, on the other hand it was obvious that something was definitely wrong.

मंगलवार, 18 नवंबर 2008

No right to information

Even under the Right To Information Act, departments related to the case have denied information on what transpired in the Batla House encounter. DIPU SHAW says one and a half months later the truth about the encounter still remains shrouded in mystery.

Part of what fuelled the anger of the Muslim community after the Batla House encounter in Jamia Nagar was the fact that that they got little information afterwards on what exactly transpired. The September 19, 2008 police encounter in Delhi’s Jamia Nagar killed two suspected terrorists allegedly involved in Delhi serial blasts, Atif Ameen and Mohammad Sajed, along with a police officer, Mohan Chand Sharma.

One and a half months after the case, the truth about the encounter and subsequent arrests that followed it, still remains shrouded in mystery. Even under the Right To Information Act, departments related to the case have denied information. It leaves a suspicion that there is a deliberate attempt to camouflage the truth.

The Jaiprakash Narayan Apex Trauma Centre of AIIMS has turned down the request to provide information about the post mortem reports saying that the case was related to Medico Legal Records. They refused to provide information under Sections 8(1) b and 8(1) h of the RTI to a petitioner, Afroz Alam Sahil.

Section 8(1) b of the Right To Information Act – 2005 states that information which has been expressly forbidden to be published by any court of law or tribunal or the disclosure of which may constitute contempt of court cannot be provided to a RTI petitioner.

Section 8(1) h states that information cannot be provided about matters which would impede the process of investigation or apprehension or prosecution of the offenders.

Both do not apply to the Batla House Encounter case, according to a legal expert. “The arguments given by AIIMS is totally baseless”, says Prashant Bhushan, Supreme Court lawyer. “No orders or ruling has been passed by the court to withhold information regarding the case. And by no means it can amount to contempt of court”, he adds.

Asked if the information in any way could impede the process of investigation, the seasoned lawyer says, “What does it have to do with the investigations?”

The Delhi Police has also tried to evade questions on the issue. It prefers to answer only three out of the six questions asked in a RTI petition in connection with the encounter and subsequent arrests. These answers too are denials.
It declined to provide the post mortem report of the deceased in the case citing section 8(1)h of the RTI Act-05 as AIIMS had done. Interestingly, the Office of the Dy. Commissioner of Police, Crime, Delhi, makes no mention of the other questions asked in the petition. The petitioner had also asked to provide the number of people arrested in connection to the serial blasts in the capital on September 13 and the places from where they were arrested. In addition, it was asked if the police have evidence against those who have been arrested. The Delhi police did not feel it was necessary to answer these questions.

According to the National Human Rights Commission, so far 2560 cases of police encounter/alleged fake encounter has come up before it. The Commission has so far granted compensation in sixteen cases of police encounter/alleged fake encounter. The statistics adds to the suspicion of the people. The Delhi Police has not done anything substantial to alleviate doubts from the minds of the people of the community. Poor reporting and confusion on the part of journalists has also increased doubts and distrust.

http://www.thehoot.org/web/home/story.php?storyid=3441&mod=1&pg=1&sectionId=1&valid=true#

मुख्य मंत्री की कुवैत यात्रा, खर्च महज १०हजार

अर्जुन कुमार बसाक
हाल ही में मुख्य मंत्री शीला दीक्षित ने अपनी संम्पत्ति करीब एक करोड़ बताई है। इसे देखकर लगता है कि वह में मध्यम वर्ग श्रेणी की हैं। उसके संम्पत्ति में दो-तिहाई से ज्यादा का सिर्फ अपने घर की कीमत बताई है, घर को छोड़ दें तो उनके पास महज 30-35 लाख् की संम्पत्ति है।

यह अच्छी बात है हमारे जन नेत्री भी लगभग हमारी ही तरह है। लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है, हाल में सूचना के अधिकार के तहत मिले मुख्य मंत्री जी के विदेश यात्राओं के विवरण से अंदाजा लगाया जा सकता है। यह सूचना के अधिकार आवेदन सामाजिक कार्यकर्ता ने दाखिल किया था। आवेदन के जवाब में बताया गया है कि एक जनवरी 2007 से अब तक सीएम शीला ने कुल् चार विदेश यात्रा की है इसमें सबसे पहले अप्रैल 2007 में एशियन ओलोंपिक काउंसिल के मीटिंग में शामिल होने के लिए कुवैत गईं थीं। जिसका कुल खर्च महज 10 हजार एक सौ बानवे रूपये बताया गया है। मुख्य मंत्री की यात्रा है तो साथ में कुछ और लोग भी जाते है। इससे लगता है कि हमारी मुख्य मंत्री फिजूल खर्चा से बचती हैं, लेकिन इसके बावजूद मुख्य मंत्री की विदेश यात्रा में कुल खर्च महज दस हजार के करीब। बताए गए खर्च में प्रशन चिन्ह खरा करता है। पिछले साल मई में सिटिज क्लाईमेट चेंज्ा के मिटिंग में शिरकत के लिए न्यूयार्क गईं थीं। जिसका कुल खर्च करीब 6 लाख् 13 हजार बताया गया है। सितंबर 2007 में बेरारूस के येरावन और मिंस्क शहरों के यात्रा का कुल खर्च महज 1 लाख् 68 हजार के करीब बताया है। इसके अलावा इस साल मार्च में चीन के बिजिंग और तियानजीन के यात्रा का खर्च 1 लाख् 83 हजार सात सौ पैतालीस रूपये बताया गया है। मामला जैसा भी विवरण को देखे तो यही लगता है हमारी माननीय मुख्य मंत्री जी बिल्कुल ही फिजूलखर्ची नहीं है। चुनाव के बाद ऐसे मुख्य मंत्री रहीं या आई या आया तो प्रश्न चिन्ह वाले फिजूलखर्ची से बचने वाले और नेताओं की और भी जानकारी मिलने की उम्मीद की जा सकती है।

शीला का कुवैत तक सफर खर्च किए महज दस हजार

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता : चुनावी मौसम में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर विपक्षी आरोपों की भरमार कर रहे हैं। सियासत की बात तो राजनेता ही जानें, पर आंकड़ों की मानें, तो शीला ने विदेश यात्राओं में फिजूलखर्ची नहीं की है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के मुताबिक, शीला दीक्षित ने कुवैत तक सफर महज दस हजार रुपये में कर लिया। उनकी बाकी विदेश यात्राओं के मद में एक से छह लाख रुपये तक खर्च किए गए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अफरोज आलम साहिल के आवेदन के जवाब में बताया गया है कि एक जनवरी, 2007 से अब तक मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कुल चार विदेश यात्राएं की हंै। सबसे पहले अप्रैल, 2007 में एशियन ओलंपिक काउंसिल की मीटिंग में शामिल होने के लिए वे कुवैत गई थीं। इसमें कुल खर्च महज 10 हजार, 192 रुपये आया था। बीते साल साल मई में वे सिटीज क्लाइमेट चेंज मीटिंग में शिरकत करने न्यूयॉर्क गई थीं। इसमें 6 लाख 13 हजार रुपये खर्च हुए थे। सितंबर 2007 में शीला ने बेलारूस के येरावन और मिंस्क शहरों की यात्रा 1 लाख 68 हजार में कर ली थी। 2008 में चीन के बीजिंग और तियांजीन का यात्रा खर्च 1 लाख 83 हजार 745 रुपये आया है।ज्ञात हो कि शीला दीक्षित ने हाल में ही अपनी संपत्ति करीब एक करोड़ बताई है। उनकी संपत्ति में दो-तिहाई से ज्यादा कीमत घर की है, इसके अलावा, उनके पास 30-35 लाख की संपत्ति ही है। इस तरह वे दिल्ली के मध्यवर्ग में शामिल मानी जा सकती हैं।

शनिवार, 15 नवंबर 2008

Batla House encounter: Is the truth being withheld?


The October 19, Batla House encounter, which created ripples throughout the country has now left suspicion that there was a deliberate attempt to camouflage the truth। Departments related to the case have declined to share any information.

ONE THING responsible for fuelling the anger of the minority community after the Batla House encounter was that they remained uninformed about the state of affairs. They did not get any detailed briefing about the incident. The case apparently lacked transparency.
On September 19, police encounter in Delhi’s Jamia Nagar killed two suspected terrorists allegedly involved in Delhi serial blasts, Atif Ameen and Mohammad Sajed, along with a police officer, Mohan Chand Sharma.
One and a half months after the case, the truth about the encounter and subsequent arrests that followed it, still remains shrouded in mystery. Even under the Right To Information (RTI) Act, the various departments that were related to the case have denied to pass on the information. It leaves a suspicion that there is a deliberate attempt to camouflage the truth.
The Jaiprakash Narayan Apex Trauma Centre of AIIMS has turned down the request to provide information about the post mortem reports saying that the case was related to Medico Legal Records.
They refused to provide information under Sections 8(1) b and 8(1) h of the RTI to a petitioner, Afroz Alam Sahil.
Section 8(1) b of the Right To Information Act – 2005 states that information, which has been expressly forbidden to be published by any court of law or tribunal or the disclosure, of which may constitute contempt of court cannot be provided to an RTI petitioner.
Section 8(1) h states that information cannot be provided about matters, which would impede the process of investigation or apprehension or prosecution of the offenders.
Wrong arguments
Both do not apply to the Batla House encounter case, according to experts. “The arguments given by AIIMS are totally baseless,” said Prashant Bhushan, Supreme Court lawyer. “No orders or ruling has been passed by the court to withhold information regarding the case. And by no means it can amount to contempt of court,” he added.
Asked if the information in any way could impede the process of investigation, the seasoned lawyer said, “What does it have to do with the investigations?”
The Delhi police
The Delhi police also tried to evade questions on the issue। It preferred to answer only three out of six questions asked in the RTI petition in connection with the encounter and subsequent arrests. The answers too were only denials instead of information.

It declined to provide the post mortem report of the deceased in the case citing section 8(1)h of the RTI Act-05 as AIIMS had done. Interestingly, the office of the deputy commissioner of police (DCP), crime, Delhi, makes no mention of the other questions asked in the petition. The petitioner had also asked to provide the number of people arrested in connection to the serial blasts in the capital on September 13 and the places from where they were arrested. In addition, it was asked if the police have any evidence against those who have been arrested. The Delhi police did not feel it was necessary to answer these questions.
According to the National Human Rights Commission (NHRC), so far 2560 cases of police encounter/alleged fake encounter has come up before it। The commission has so far granted compensation in 16 cases of police encounter/alleged fake encounter. The statistics add to the suspicion of the people. The Delhi police has not done anything substantial to alleviate doubts from the minds of the people of the community. Poor reporting and confusion on the part of journalists has also helped the cause of doubts and distrust.

शुक्रवार, 14 नवंबर 2008

विदेश यात्राएं....


अफरोज आलम 'साहिल'
आज भारतीय विदेश यात्राएं करते ही रहते हैं, और जब बात नेताओं की हो तो 'ये' खूब करते हैं. पर आप जानते हैं कि इनके इन विदेश यात्राओं पर खर्च कितना होता है....? नहीं न! पर अब यह संभव है,क्यूंकि "सूचना के अधिकार अधिनियम -२००५" के माध्यम से अपने नेताओं कि विदेश यात्राओं पर खर्च हुए रक़म को भी जान सकते हैं.

मैंने भी "सूचना के अधिकार" का प्रयोग करते हुए दिल्ली कि मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित द्वारा 01 जनवरी 2007 से ले कर अब तक कि गयी विदेश यात्राओं के खर्च का ब्यौरा माँगा,तो कुछ दिलचस्प आंकडे निकल कर आये.


अरे आप कहाँ खो गए.....? आप जो कुछ सोच रहे हैं,वो दुरुस्त नहीं है. हमारी शीला जी इतनी खर्चीली नहीं हैं. जी हाँ! आपको जानकार शायद हैरानी हो,पर यह सच है.


जी! हमारी मुख्यमंत्री जी 16 जनवरी 2007 से 17 जनवरी 2007 तक एशियन ओलंपिक काउंसिल कि मीटिंग में शामिल होने कुवैत गयी और खर्च हुआ सिर्फ 10,192 (दस हज़ार एक सौ बानवे) रूपए.........(ये रक़म दैनिक भत्ता व अन्य खर्चों के हैं)


क्यूँ आप चौंक गए ना....! आप को तो शायद यकीन ही नही हो रहा होगा...? यही नही,शीला जी इस वर्ष यानी 25 मई 2008 से 31 मई 2008 तक बीजिंग और तियानजिन ,चीन के दौरे पर रही,और सात दिन के इस दौरे पर खर्च हुआ सिर्फ 1,83,745 रूपए.
दिनांक 04-09-2007 से 09-09-2007 तक शीला जी येरावन और मिन्स्क (बेलारूस) के दौरे पर रही. यहाँ शीला जी मिन्स्क नगर की 940 वी वर्ष गाँठ समारोह में शामिल होने आई थी. और यहाँ खर्च हुआ सिर्फ 1,68,660 रूपए..........
क्यूँ अच्छा लग रहा है ना यह सब जानकार...... वाकई हमें शीला जी की तारीफ़ करनी होगी, कि वह फिजूलखर्ची से कितना बचती हैं. खैर चलते- चलते अब बात अमेरिका कि भी हो जाए. जी हाँ...! शीला जी 14 मई 2007 को न्यूयार्क गयी और 17 मई 2007 तक रही. यहाँ शीला जी "Large cities climate change" कि मीटिंग में शामिल होने आई थी. यहाँ खर्च हुआ 6,13,072 रूपए.....क्यूँ थोडा ज्यादा हो गया ना....? खैर, इतना तो चलता ही है..... आगे ख्याल रखेंगी, अगर आपने अपने कीमती वोट देकर दुबारा सत्ता में पहुंचा दिया तो......
(मोबाइल:- +91-9891322178)

गुरुवार, 13 नवंबर 2008

The aftermath of Batla House encounter….

Deepu Shaw.
One thing responsible for fuelling the anger of the Muslim community after the Batla House encounter was that they remained uninformed about the state of affairs. No police or government official ever felt the need to give them a detailed briefing about the incident. The case lacked transparency.
The September 19, police encounter in Delhi’s Jamia Nagar killed two Muslim youths, Atif Ameen and Mohammad Sajid along with a police officer, Mohan Chand Sharma.
One and a half months after the case, the truth about the encounter and subsequent arrests that followed it, still remains shrouded in mystery. Even under the Right To Information Act, the various departments that were related to the case have denied to pass on the information. It leaves a suspicion that there is a deliberate attempt to camouflage the truth.

The Jaiprakash Narayan Apex Trauma Centre of AIIMS has turned down the request to provide information about the post mortem reports saying that the case was related to Medico Legal Records.
They refused to provide information under Sections 8(1) b and 8(1) h of the RTI to a petitioner, Afroz Alam Sahil.
Section 8(1) b of the Right To Information Act – 2005 states that information which has been expressly forbidden to be published by any court of law or tribunal or the disclosure of which may constitute contempt of court cannot be provided to a RTI petitioner.
Section 8(1) h states that information cannot be provided about matters which would impede the process of investigation or apprehension or prosecution of the offenders.

Wrong arguments
Both do not apply to the Batla House Encounter case. “The arguments given by AIIMS is totally baseless”, says Prashant Bhushan, Supreme Court lawyer. “No orders or ruling has been passed by the court to withhold information regarding the case. And by no means it can amount to contempt of court”, he adds.
Asked if the information in any way could impede the process of investigation, the lawyer says, “What does it have to do with the investigations?”

The Delhi police
The Delhi Police has also tried to evade questions on the issue. The answers too are only denials instead of information.
It declined to provide the post mortem report of the deceased in the case citing section 8(1)h of the RTI Act-05 as AIIMS had done. The petitioner had also asked to provide the number of people arrested in connection to the serial blasts in the capital on September 13 and the places from where they were arrested. In addition, it was asked if the police have evidence against those who have been arrested.

According to the National Human Rights Commission, so far 2560 cases of police encounter/alleged fake encounter has come up before it. The Commission has so far granted compensation in sixteen cases of police encounter/alleged fake encounter.
(The writer is a freelance journalist and media critic)

शनिवार, 8 नवंबर 2008

Batla encounter: Jamia resident draws 'vague' replies on RTI

Sahim Salim
Says Supreme Court, Delhi Police, NHRC and AIIMS gave out little information.
A jamia Nagar resident has drawn a blank from all quarters — Supreme Court, Delhi Police, National Human Rights Commission (NHRC) and AIIMS ¿ on his RTI application seeking information on the September 19 encounter at Batla House in South Delhi.
According to Afroz Alam Sahil, he had filed four separate applications under the RTI Act on September 25, and the replies, he claims, are vague at best.
The apex court and city police replied 40 days after he filed the RTI, Sahil says.
Alam said he had posed six questions, of which the police submitted answers to just three. The police ignored questions related to the number of arrests and detentions made after the serial blasts in the Capital on September 13.
Alam had also asked for a copy of the postmortem reports of the two alleged militants and Inspector M C Sharma, all killed in the encounter, and the copy of the FIR lodged afterwards. While the police refused to part with copies of the autopsy saying “disclosure of the information may impede investigation”, they said “the copy of FIR can only be provided to the complainant”.
In the RTI application filed to the Supreme Court, Alam had asked how many cases had been filed against people or organisations in blast cases, and punishment meted out to those convicted. Alam also asked whether there were any cases in which Delhi Police had made arrests but could not provide evidence.
Supreme Court replied that “cases against terrorists are not directly filed in the court”, and “it is beyond the jurisdiction and scope of duties of the CPIO (Central Public Information Officer) under the RTI Act to interpret law and judgments of the Supreme Court.”
Alam had requested AIIMS to give a copy of the postmortem but the hospital said it could not give out a copy since it was related to the medico legal records (MLC) under Sections 8(1)b and 8(1)h of the RTI Act. These sections are meant for information expressly forbidden to be published by any court. NHRC was asked about the number of police encounters the Commission is looking into, and how many of them were found to be fake. The Commission’s reply said it had received 2,560 cases of encounters, of which it granted compensation in 16 cases. But the NHRC did not give details of these 16 cases.
“It is sad that these institutions turned a deaf ear to the power of RTI,” Alam said.

http://www.expressindia.com/latest-news/batla-encounter-jamia-resident-draws-vague-replies-on-rti/382959/

गुरुवार, 6 नवंबर 2008

Batla House's encouter and RTI (Part-2nd.)





























AFROZ ALAM SAHIL






On 12th October 2005 we got the RTI. RTI is one of the most powerful acts bestowed upon the people of India by the government. It can be used to assert an individual’s democratic rights in knowing information about the government institutions’ workings and procedures. But even after three years of it’s implementation this Act has been avoided by the government institutions in giving out informations to the ordinary citizens in one way or the other. On 19th September this year, took place the Batla House encounter which sent shockwaves across the common people of India. Not only the Muslim community felt insecure, but a lot of questions were raised on the ethics of encounters in this country. In this connection we filed for an RTI regarding some information from various government institutions regarding this encounter. We sent separate petitions to AIIMS, NHRC, Delhi Police and the Supreme Court of India in this regard. AIIMS refused to give us information on account of sections 8(1)b and 8(1)h while the information we got from the NHRC is also not complete. Now after 40 days of filing the RTI petition, we finally got the reply from the Supreme Court and Delhi Police. We are happy that they have responded to our query. But the saddest part here is that even an institution like the Supreme Court has given us only incomplete information.
With respect to the Delhi Police, we had asked as to how many people were killed in the Batla House Encounter? We had also asked for details of the post mortem of the deceased in the encounter. Also we had asked if any FIR had been registered in this connection. And if yes then we had also asked for a photocopy of the same. Regarding the first query, the Delhi Police stated that 3 persons were killed (2 militants and 1 police officer). Regarding the second query, we were told that the case is still pending. We were further told that the disclosure of information may impede the process of investigation, hence no information /documents at this stage can be provided as the same is exempted under sections 8(1)h of RTI. And as regards to the last query, they said that an FIR was registered and it’s photocopy can be obtained as per the provisions of section 154 Cr. P. C. it is to be mentioned here that we had asked six questions in total to which the Delhi Police cared to give answers to only three.
With regard to the Supreme Court of India, we had asked as to how many cases had been filed against people or organizations in connection to terrorist activities from 28th January 1950 onwards. We had also asked for details regarding these cases. We also asked as to what punishments were given to the convicts in this connection. We had also asked if there had been any such case where the Police could not provide any concrete evidence against the accused. And we had also asked if there exists any provision under which the police or the government can be tried for wasting the Court’s valuable time in the absence of any concrete evidence. The reply which we got fell short of our expectations. Regarding the first query, the Supreme Court stated that cases against terrorists and extremists are not directly filed or instituted in the Supreme Court of India and only appeals against the decisions of the High Courts are instituted in this Hon’ble Court. Therefore the information relating thereto is not available. Regarding the second and third queries, the judgement/orders of the Supreme Court are reported in Law Journals and are also available on Supreme Court websites viz. http://www.supremecourtofindia.nic.in/ and can be downloaded therefrom. And regarding the fourth and fifth queries, they stated that it is beyond the jurisdiction and scope of the duties of the CPIO, Supreme Court of India under the Right to Information Act, 2005 to interpret the law, judgments of this Hon’ble Court or of any other Court, comment, opine or advise on matters.
It is really sad that such esteemed institutions of the nation give such a deaf ear to the power of the RTI. Then really one is forced to think on the authenticity of this Act. Even recently our Prime Minister Dr. Manmohan Singh had talked so much about the judicious use of the RTI that we can only hope that someday our efforts will bear fruits.








Mobile:-+91-9891322178

बुधवार, 5 नवंबर 2008

Batla House encounter: RTI petitioner denied information

Petitions filed under the RTI Act in connection with the October 19 encounter in Batla House have generated more controversy than information. Information in the matter was sought from the NHRC, AIIMS, Delhi Police and the Supreme Court by petitioner Afroz Alam Sahil.
Afroz Alam wanted information regarding postmortem reports and the doctors involved from AIIMS, and also a copy of the postmortem reports. In a reply, officials from the AIIMS Trauma Centre stated they could not pass on information related to medico legal records under sections 8(1)b and 8(1)h of the RTI. These sections are meant for information expressly forbidden to be published by any court of law or tribunal, or the disclosure of which may constitute contempt of court. An irate Afroz Alam states in his blog, Soochna Express: “The denial of information by AIIMS is illogical. In this case, the court has not issued any orders regarding the Batla House case and we are not violating Section 8(1)b of the RTI. They said that information cannot be provided because it would impede the process of investigation or apprehension or prosecution of the offenders. I want to state that information we sought is not related to any police investigation.”
The Delhi Police and Supreme Court have not replied to the petition till now. “If institutions like the Supreme Court do not take RTI seriously, then what is the use of having such an Act?” Alam asks. The information received from the NHRC states that 2,560 cases of police encounter/alleged fake encounters have come up and it has granted compensation in 16 such cases so far.
http://www.indianexpress.com/news/batla-house-encounter-rti-petitioner-denied-information/381640/

RTI query on Batla House encounter not replied....

By RINA,
New Delhi: Speaking on ‘RTI and Better Governance’ in third annual meeting of Central Information Commission, asked government officers to voluntarily furnish more and more information to the masses in order to decentralize power. However, Delhi police and officers in All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) refused to divulge information on relevant facts of controversial Batla House encounter sought under Right to Information (RTI) Act.
On September 25, Afroz Alam Sahil had submitted an RTI application with Delhi police seeking information on post-mortem reports of persons killed during encounter, the First Information Report (FIR) and other details. He also submitted a similar application with the authorities at AIIMS, enquiring how many corpses were brought to the hospital after the encounter and when, how many corpses were examined post-mortem, at which level was it done and who was the doctor, were these corpses handed over to police or their family members?
RTI Act requires a reply within 30 days but neither Delhi police nor AIIMS authorities have furnished the information required in the query, even after a passage of 39 days. Whereas Delhi police are completely mum, the letter from AIIMS is rather stunning. Referring to article 8(1) and 8(1) H, they argued that said information cannot be given to the applicant. But when asked by BBC if said information can be withheld under said provisions, the senior pleader and a legal expert Vrinda Grovar said the argument of AIIMS administration is baseless. AIIMS is pioneering healthcare institution of the country.
Vrinda Grovar told that article 8(1) prohibits from furnishing information only when any court stops from doing so. Similarly, 8(1) H is binding for only that information on which investigations are on but post-mortem report does not affect any investigation in any way. She further said, “Refusal to furnish information creates the doubt that could have been done at behest of people in background.”
Sources believe that both prestigious establishments, Delhi police and AIIMS have acted against the law by flouting RTI Act. Two Muslim youths were killed in police encounter which people believe to be a fake encounter. All this requires more transparency on part of government officials. Obvious dilly-dalliance has prompted Mr. Afroz to say, “Delhi police and AIIMS want to escape from their responsibility which is unfortunate for both the law and the democracy.”

http://www.twocircles.net/2008nov04/rti_query_batla_house_encounter_not_replied.html

सोमवार, 3 नवंबर 2008

Batla House's encounter and RTI Act-2005....










AFROZ ALAM SAHIL




On 19th October took place the Batla House encounter which created ripples across the Muslim community throughout the length and breadth of the country. In response to this, protests and demonstrations have followed as a lot of doubts and questions have been raised on this incident. But as a media student and an RTI activist, I feel that only protests and demonstrations are not the only answers to such situations. There should also be a need to probe things analytically as the truth has to come out at last. In this context it should not be forgotten that the government has given us certain rights and privileges which we should use for our benefit. One such power given to us by the government is the Right To Information Act-2005 (RTI). Under this Act we put forth four petitions to four government departments seeking information on this issue. They were AIIMS, NHRC, Delhi Police Headquarters and the Supreme Court of India.
The information which we seeked from AIIMS were mainly of this nature that we wanted information on who had prepared the post-mortem report and who were the doctors who had conducted the post-mortem along with their designations. Also we had demanded a copy of the post-mortem.
The information which we wanted from NHRC were regarding the number of police encounters that have come up before the NHRC so far. And also how many such cases did the NHRC considered to be fake encounters. We had also asked for the details of the fake encounters to be provided.
From Delhi Police we had wanted the post-mortem report, the copy of the FIR and also the details regarding how many people have been arrested or detained after the serial blasts of 13th September. And also we had wanted to know what proof the police have against the people who are still detained.
From the Supreme Court we wanted details regarding as to how many people or organizations have been booked so far under the laws from 28th January 1950 onwards. Also we wanted details if there had been such a case where the police could not provide sufficient proof against the accused. Along with it we had also wanted to know if the Supreme Court could order proceedings against the police or the government for wasting the court’s time in absence of any concrete proof along with the details of the procedures if any rule exists.
The reply that we got from the Jaiprakash Narayan Apex Trauma Centre of AIIMS was that this information was related to Medico Legal Records. And they refused to give us information under the Sections 8(1)b and 8(1)h of the RTI. It is to be mentioned that Section 8(1)b states that information which has been expressly forbidden to be published by any court of law or tribunal or the disclosure of which may constitute contempt of court cannot be provided to the RTI petitioner. But here since the Court has not issued any orders regarding the Batla House case we are not violating the Section8(1)b of the RTI. Now Section 8(1)h states that information cannot be provided about the information which would impede the process of investigation or apprehension or prosecution of the offenders. Now I want to state that the information we seek is not related to any Intelligence Agency nor is it related to any police investigation. Here I want to state that I accept that the role of AIIMS is over with the post-mortem procedure of the case and that they are not related with any further investigation of the police. So the denial of information by AIIMS is illogical in this context. Plus, I want to mention here that RTI states that any information which comes under the Section 8(1) but involves a huge public domain, then that information has also to be provided to the petitioner.
From the NHRC, we have got the information that so far, 2560 cases of police encounter/alleged fake encounter have come up before the Commission. The Commission has so far granted compensation in sixteen such cases. But here also we have not been provided the complete information as we had asked for details of the fake encounters too.
But here again the Delhi Police and the Supreme Court of India have not provided any reply to our RTI petition till now. This is really sad as these institutions are literally making fun of the RTI Act by ignoring our petition. Here a big question mark has been raised on the RTI Act because what good is this Act going to do to us if institutions like the Supreme Court of India do not take our petition seriously. But here again we will not be disappointed as we believe that the exercising of our rights will finally bear us fruit and we shall obtain the truth no matter how much oppositions we face. It is with this aim that I have made the first appeal under this act. And I hope that I will get the required information in this case to bring out the truth.

जामिया मामले में जानकारी से इनकार .....

पाणिनी आनंद

जामिया नगर मुठभेड़ मामले में जहां दिल्ली पुलिस सूचना क़ानून के तहत जानकारी देने से बच रही है वहीं भारत के प्रतिष्ठित एम्स अस्पताल ने इस मामले से जुड़ी जानकारी देने से इनकार कर दिया है.
मांगी गई जानकारी में एफ़आईआर और पोस्टमार्टम की रिपोर्टें शामिल हैं. जानकार मानते हैं कि दोनों ही संस्थाओं ने इस तरह सूचना का अधिकार क़ानून की अवहेलना की है.
ग़ौरतलब है कि 19 सितंबर, 2008 को दिल्ली के जामिया नगर इलाके में पुलिस मुठभेड़ हुई थी जिसमें दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर और दो संदिग्ध व्यक्तियों की मौत हो गई थी.
पुलिस का कहना है कि ये दोनों लोग चरमपंथी थे और इनका ताल्लुक दिल्ली और अन्य जगहों पर पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान हुए बम विस्फोटों से था.
पुलिस ने एक संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में भी लिया था. बाद में मौके से भागने में सफल रहे दो अन्य संदिग्ध लोगों को भी पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था. पर इस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस की भूमिका को लेकर कई संदेह और सवाल भी उठते रहे.
ताकि पर्दा उठे
इन्हीं संदेहों को ख़त्म करने के मकसद से पिछले महीने सूचना का अधिकार क़ानून के तहत दिल्ली पुलिस से मारे गए लोगों के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और एफ़आईआर की कॉपी सहित कुछ और जानकारी भी मांगी गई थी.
ऐसी ही एक अर्जी़ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में भी डाली गई थी जिसमें पूछा गया था कि मुठभेड़ के बाद कितने शव और किस वक्त अस्पताल लाए गए. कितने शवों का पोस्टमार्टम हुआ. यह काम किस स्तर के और किन डॉक्टरों ने किया.
आवेदन में यह भी कहा गया कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट की प्रतियां दी जाएं और बताया जाए कि क्या सभी शव पुलिस को दिए गए या परिजनों को.
क़ानून के मुताबिक दोनों ही महकमों को यह जानकारी आवेदन की 30 दिनों की समयावधि के भीतर ही आवेदक को दे देनी चाहिए थी.
पर ऐसा नहीं हुआ. आवेदक अफ़रोज़ आलम बताते हैं कि दिल्ली पुलिस की ओर से जानकारी तो दूर, अभी तक कोई पत्र या संपर्क तक स्थापित नहीं किया गया है जबकि आवेदन 25 सितंबर को ही कर दिया गया था और अबतक 39 दिन बीत चुके हैं.
क़ानून की अवहेलना..?
वहीं समयावधि पूरी होने से ठीक पहले एम्स प्रशासन की ओर से जो जवाब दिया गया है वो चौंकानेवाला है.
एम्स प्रशासन ने अपने जवाब में कहा है कि इसी क़ानून की उपधारा 8(1) बी और उपधारा 8(1) एच के तहत यह जानकारी आवेदक को नहीं दी जा सकती है.
इस बारे में जब वरिष्ठ अधिवक्ता और इस क़ानून की जानकार वृंदा ग्रोवर से बीबीसी ने पूछा कि क्या इन उपधाराओं के तहत यह जानकारी देने से मना किया जा सकता है तो उन्होंने एम्स प्रशासन के इस तर्क को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि इस तरह देश की एक प्रतिष्ठित संस्था ने क़ानून की अवहेलना ही की है.
वो बताती हैं, “उपधारा 8(1)बी कहती है कि वो जानकारी नहीं देनी है जिसे देने पर अदालत ने रोक लगाई हो. पर इस मामले में क़ानूनी तौर पर या अदालत की ओर से ऐसी कोई भी रोक नहीं लगाई गई है.”
वो आगे बताती हैं, “दूसरी दलील उपधारा 8(1)एच को आधार बनाकर दी गई है. यह उपधारा कहती है कि वो जानकारी नहीं देनी है जो जाँच के दायरे में हो और उससे जाँच प्रभावित होती हो पर पोस्टमार्टम की रिपोर्ट देने से चल रही जाँच न तो प्रभावित होती है और जाँच दिल्ली पुलिस के अधीन है, न कि एम्स जाँच कर रहा है. ऐसे में उनका यह तर्क भी बेबुनियाद है.”
वृंदा बताती हैं कि कुछ ही दिनों में चार्जशीट के साथ पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और एफ़आईआर की प्रतियां दोनों पक्षों को मिल ही जाएंगी. ऐसे में एम्स प्रशासन का जानकारी देने से इनकार करना यह संदेह पैदा करता है कि कहीं ऐसा किसी इशारे पर तो नहीं हो रहा है.
कब देंगे जानकारी..?
इस बारे में एम्स प्रशासन का जवाब जहाँ टालमटोल वाला बताया जा रहा है वहीं दिल्ली पुलिस की ओर से अबतक आवेदक को कुछ नहीं बताया गया है.
जब बीबीसी ने दिल्ली पुलिस की ओर से जानकारी न दिए जाने का मुद्दा महकमे के प्रवक्ता राजन भगत के सामने रखा तो उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस क़ानून की अवहेलना नहीं कर रही है. जानकारी दे दी जाएगी.
पर समयावधि बीतने से क्या क़ानून की अवहेलना नहीं हुई, यह पूछने पर वो कहते हैं, “हमें जब आवेदन मिला होगा उसके बाद 30 दिन के अंदर हम जानकारी भेज देंगे. जानकारी या तो भेजी जा चुकी है या भेजी जा रही होगी. इस बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता कि दिल्ली पुलिस क्या जानकारी देगी. यह जानकारी मिलने पर ख़ुद पता चल जाएगा.”
आवेदन अफ़रोज़ कहते हैं कि रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजा गया आवेदन अगर अधिकतम समयावधि यानी तीन दिन बाद भी पुलिस को मिला तो भी आकलन के मुताबिक 37 दिन हो चुके हैं और दिल्ली पुलिस समयसीमा लांघ चुकी है.
वो कहते हैं, “इससे साफ़ होता है कि दिल्ली पुलिस और एम्स पारदर्शिता और जवाबदेही तय होने से बचना चाहते हैं जो कि क़ानून और लोकतंत्र, दोनों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. मैंने दोनों विभागों के इस रवैये को देखते हुए पहली अपील दायर कर दी है.”
जानकार मानते हैं कि जिस तरह से दिल्ली पुलिस की भूमिका को लेकर इस मुठभेड़ मामले में सवाल उठाए जाते रहे हैं उसके बाद पुलिस महकमे और एम्स प्रशासन को पारदर्शिता तय करने के लिए ख़ुद आगे आना चाहिए था ताकि सवालों का जवाब मिले और उनकी भूमिका स्पष्ट हो.
पर विश्लेषकों और इस मामले पर नज़र रख रहे लोगों की ओर से अब महकमे पर यह भी आरोप लगाए जा रहे हैं कि वे जानकारी छिपा रहे हैं जिससे उनकी भूमिका पर संदेह और गहराएगा.