शनिवार, 18 जून 2011

मीडिया के सुशासन पर सवारी गांठते नीतीश कुमार

नीतीश सरकार ने बिहार के ज़्यादातर मीडिया संस्थानों की आर्थिक नब्ज दबा रखी है। राज्य सरकार से मिले कागज़ के टुकडे यह बताते हैं कि सरकार काम पर कम, विज्ञापन पर ज्यादा ध्यान देती है...

LINK: http://www.janjwar.com/2011/06/blog-post_18.html 

अफरोज आलम 'साहिल'


अख़बारों को देख यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि बिहार खूब तरक़्क़ी कर रहा है। हर दिन विकास की नयी-नयी योजनाओं की घोषणाएं हो रही हैं। विकास कार्यों के विज्ञापन अखबारों में खूब छप रहे हैं। हर दिन किसी न किसी काम का शिलान्यास हो रहा है। इसके लिए बधाई के पात्र हैं हमारे ‘सुशासन बाबू’ यानी नीतीश कुमार जी। लेकिन विकास की जो तस्वीर मीडिया ने बिहार और देश की जनता के सामने पेश की है, वो ‘सच’ नहीं है। बल्कि नीतीश कुमार का सच तो कुछ और है,जिसे पूरे देश की जनता ने 3 जून को बिहार के अररिया जिले के फारबिसगंज गोलीकांड में देख लिया है।

फारबिसगंज पुलिस गोलीकांड की घटना को दो सप्ताह से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन दोषियों पर कोई करवाई नहीं हुई है। प्रदर्शनकारियों का कसूर इतना भर था कि ये भजनपुर गांव के पास स्टार्च और ग्लूकोज फैक्ट्री स्थापित करने के लिए प्राईवेट कंपनी मैसर्स औरो सुन्दरम इंटरनेशनल के लिए सरकार द्वारा 36.६५ एकड़ आवंटित जमीन के रास्ते से होकर आने-जाने का अधिकार मांग रहे थे। जमीन आवंटित किये जाने के पहले लोग यहीं से होकर जाते थे, जो उन्हें ईदगाह, करबला और बाज़ार तक पहुंचाता था। लेकिन अब इस रास्ते को रोक दिया गया है. सरकार रोक इसलिए लगा रही है क्योंकि यह कंपनी भाजपा एम.एल.सी.अशोक अग्रवाल के बेटे सौरभ अग्रवाल की है और सौरभ की शादी प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की बेटी से होने वाली है.

उस दिन 3 जून को हुए पुलिसिया जुल्म की दास्तान यह रही कि फारबिसगंज में जमीन पर बेसुध पड़े एक प्रदर्शनकारी युवक को एक पुलिसवाला जूतों से कुचलता रहा और मौके पर मौजूद एसपी गरिमा मलिक तमाशाबीन बनी रहीं । बाद में उस युवक की मौत हो गयी। सिर्फ यह युवक ही नहीं,बल्कि मृतकों में एक गर्भवती महिला और छह महीने की एक बच्ची भी शामिल है। पुलिस ने न केवल प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई,बल्कि उनका उनके घरों तक पीछा करके उन्हें पॉइंट ब्लैंक रेंज में गोली मारी। इस घटना में नौ लोग घायल भी हुए हैं। गौरतलब है की सभी मृतक मुस्लिम समुदाय से हैं।

फारबिसगंज की घटना नीतीश के लिए बहुत बड़ा सवाल है,जिसका जवाब उनको देना ही पड़ेगा। और उससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार गुजरात की तर्ज पर बिहार का विकास चाहते हैं? अगर हां! तो नीतीश कुमार कान खोलकर सुन लें बिहार की जनता इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। बिहार की जनता को ऐसा विकास कतई नहीं चाहिए जो मानवअधिकारों के उल्लंघन पर आधारित हो।

ऐसा नहीं है कि फारबिसगंज की घटना बिहार के लिए नई है। पिछले एक साल में ही राज्य में किसान कई बार पुलिस का शिकार बने हैं। पटना जिले के बिहटा,औरंगाबाद के नबीनगर और मुजफ्फरपुर के मड़वन इलाके में फोर-लेन सड़क, थर्मल पावर प्लांट और एस्बेस्टस फैक्ट्री का विरोध करने पर किसानों पर पुलिस का कहर बरपना इसके कुछ उदाहरण भर हैं। औरंगाबाद में तो किसान मारे भी गये थे।

इसके अलावा पिछले छह सालों के दौरान अन्य कई मौकों पर भी पुलिस बर्बर कारवाइयों को अंजाम दे चुकी है। कहलगांव में वर्ष 2008 के जनवरी महीने में नियमित बिजली की मांग कर रहे लोगों में से तीन शहरी पुलिस की गोलियों के शिकार हुए थे। वर्ष 2007में भागलपुर में चोरी के आरोपी औरंगजेब का 'स्पीडी ट्रायल' करते हुए एक पुलिस अधिकारी ने उसे अपने मोटरसाइकिल के पीछे बांधकर घसीटा था। कोसी इलाके में उचित मुआवजा और पुनर्वास की मांग करने वाले बाढ़-प्रभावित भी पुलिस की गोली का निशाना बने।

यह सब कुछ हुआ है नीतीश के 'सुशासन' में बिहार के विकास के नाम पर। जब बात सुशासन और विकास की चल रही है,तो क्यों न उनके विकास की कुछ सच्चाइयों के आंकड़ों को भी प्रस्तुत कर दिया जाए। जिस विकास की गंगा से राज्य को सींचने का दावा नीतीश कुमार कर रहे हैं,उसमें केन्द्र का पानी कितना है और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का कितना? यह जानना दिलचस्प होगा।


यह सरकारी सच है कि नीतीश कुमार को राज्य में विकास और योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए केन्द्र से पिछली सरकारों से ज़्यादा पैसा मिला है। सरकारी कागज़ों में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शासनकाल में वर्ष 2003-04 में राज्य सरकार को 1617.62 करोड़ रुपये मिले थे। इसके बाद सरकार बदली और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए-1 और यूपीए-2 सत्ता में आई। यूपीए सरकार ने वर्ष 2005-06 में बिहार को 3332.72 करोड़ रूपये दिए। यह राशि एनडीए के समय के अनुदान से दोगुनी थी। वित्तीय वर्ष 2006-07 में 5247.10 करोड़, वर्ष 2007-08 में 5831.66 करोड़ और फिर वित्तीय वर्ष 2008-09 के लिए केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार को 7962 करोड़ रुपये का अनुदान दिया। यहां स्पष्ट कर दें कि यह सहायता राशि है,इसमें राज्य सरकार को केन्द्र से मिलने वाला कर्ज या अग्रिम अनुदान शामिल नहीं है।


इतना ही नहीं, बिहार सरकार को विश्वबैंक से मिल रहे अनुदान में भी कई गुना की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2006-07 में विश्वबैंक से उसे 92 लाख मिले। इसमें से 60 लाख लाख खर्च भी हुए। वर्ष 2007-08 में यह राशि बढ़कर 464 करोड़ हो गई। जिसमे से खर्च सिर्फ छह करोड़ हो पाए। वर्ष 2008-09 में 18 करोड़, वर्ष 2009-10 में 552 करोड़ रुपये और पिछले वित्तीय वर्ष में 15 अगस्त, 2010 तक नीतीश सरकार को विश्वबैंक 74 करोड़ रुपये दे चुका है।

नीतीश सरकार ने बिहार के ज़्यादातर मीडिया संस्थानों की आर्थिक नब्ज दबा रखी है। इसके लिए जरिया बनाया गया है सरकारी विज्ञापनों को। क्योंकि राज्य सरकार से मिले कागज़ के टुकडे यह बताते हैं कि वर्तमान राज्य सरकार का काम पर कम और विज्ञापन पर ज़्यादा ध्यान रहा है। बिहार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा वर्ष 2005-10 के दौरान 28 फरवरी 2010 तक यानी नीतीश के कार्यकाल के चार सालों में लगभग 38 हज़ार अलग-अलग कार्यों के विज्ञापन जारी किए गए और इस कार्य के लिए विभाग ने 64.48 करोड़ रुपये खर्च किये। जबकि लालू-राबड़ी सरकार ने अपने कार्यकाल के 6 सालों में सिर्फ 23.90 करोड़ ही खर्च किए थे। सिर्फ वर्ष 2009-10 में नीतीश सरकार ने योजना मद में विज्ञापनों पर 1.69करोड़ रूपये खर्च किए, वहीं गैर-योजना मद में यह राशि 32.90 करोड़ है। पिछले वित्तीय वर्ष यानी 2010-11 के शुरुआती तीन महीनों में ही यानी चुनाव से ठीक पहले राज्य सरकार समेकित रूप से 7.19 करोड़ विज्ञापनों पर खर्च कर चुकी थी।


ज़ाहिर है कि नीतीश के कार्यकाल में सबसे ज़्यादा फायदा यहां के मीडिया उद्योग को हुआ है, इसलिए वो ‘विकास’ के पीछे के सच को जनता के सामने लाना मुनासिब नहीं समझते। मीडिया को इस बात का डर है कि अगर इन सच्चाइयों पर से पर्दा उठा दिया तो सरकारी विज्ञापनों से हाथ धोना पड़ सकता है (क्योंकि राज्य विज्ञापन नीति, स्टेट एडवर्टिजमेंट पॉलिसी- 2008 के तहत अगर किसी मीडिया संस्थान का काम राज्य हित में नहीं है तो उसे दिये जा रहे विज्ञापन रोके जा सकते हैं। उसे स्वीकृत सूची से किसी भी वक़्त बाहर किया जा सकता है।)। ऐसे में न्यूज़ की बात तो छोड़ ही दें,अगर किसी ने एक लेख भी बिहार सरकार के खिलाफ लिखा तो अगले ही दिन उस लेखक को मुख्यमंत्री कार्यालय बुला लिया जाता है।

नीतीश कुमार के झांसे में अल्पसंख्यक भी आये। जिन पैसों को अल्पसंख्यक छात्रों के बीच स्कॉलरशिप के रूप में बांटकर उन्होंने अपनी पीठ थपथपाई,दरअसल वह पैसा केन्द्र की यूपीए सरकार ने अपनी स्कीम के तहत उपलब्ध कराया था। बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के मुताबिक बिहार में वर्ष 2007-08के दौरान कुल 3,72,81,738/- रुपये मेधा-सह-आय आधारित योजना के अन्तर्गत अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के बीच केन्द्र सरकार ने बांटे, न कि बिहार सरकार ने। 15 अगस्त 2008 को नीतीश कुमार ने मुस्लिम गरीब बच्चों के लिए ‘तालीमी मरकज़’ खोलने का ऐलान किया, लेकिन जब बिहार सरकार से सूचना अधिकार कानून के तहत यह पूछा गया कि अब तक कितने ‘तालीमी मरकज़’पूरे बिहार में खोले गए हैं, तो उसने इस संबंध में कोई जानकारी देना मुनासिब नहीं समझा।


जो नीतीश कुमार मुसलमानों के दम पर दुबारा बहुमत के साथ सत्ता में आए, वही भागलपुर दंगे की जांच को लेकर टालमटोलपूर्ण रवैया अपना रहे हैं। सूचना के अधिकार से मिली जानकारी के मुताबिक नीतीश सरकार ने जस्टिस एनएन सिंह की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया, जिसे छह माह के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन यह आयोग छह माह तो क्या, सरकार के पूरे कार्यकाल में भी वह काम नहीं कर सका,जिसके लिए ढोल पीटकर इसका गठन जनवरी 2006 में हुआ था। जबकि इस जांच आयोग के सदस्यों की सैलरी पर ही अक्तूबर 2009 तक 1,44,83,000 रूपये खर्च किए जा चुके हैं।


सूचना के अधिकार से मिले आंकड़े बताते हैं कि नीतीश सरकार को अल्पसंख्यक मद में खूब पैसे मिले,लेकिन अपने को अल्पसंख्यकों का मसीहा कहने वाली इस सरकार ने यह पैसा अल्पसंख्यकों पर खर्च करना मुनासिब नहीं समझा।


सूचना अधिकार कार्यकर्त्ता से पत्रकारिता तक की यात्रा तक पहुँचने वाले अफरोज अंग्रेजी वेबसाइट www.beyondheadlines.in संपादक हैं. ;

शुक्रवार, 17 जून 2011

फारबिसगंज घटना की सीबीआई जांच की मांग

अफ़रोज़ आलम साहिल

बिहार में नीतीश कुमार की दलाल मीडिया ने फारबिसगंज गोली कांड को कोई खास महत्व नहीं दिया। जिसके कारण बिहार के लोग ही इस विभत्स घटना से अनभिज्ञ हैं। लोगों के बीच इस घटना को लेकर बिहार के पूर्वांचल इलाक़े में जागरूकता के लिए Committee for Justice to Victims of Forbesganj Firing (CJVFF) ने एक जागरूकता अभियान चलाने का फैसला लिया है।

इसी जागरूकता अभियान के तहत आज पश्चिम चम्पारण के बेतिया शहर में एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें लोगों को फारबिसगंज गोली कांड से रूबरू कराया गया। लोगों को इस घटना की जानकारी से काफी हैरानी हुई, साथ ही मीडिया के खिलाफ उन्होंने काफी ज़हर भी उगला। बैठक में शामिल लोगों ने कहा कि नीतीश कुमार की रखैल मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी भूल चुकी है। यह बिहार के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है।

इधर बिहार में सीपीएम ने भी सभी दलों से फारबिसगंज गोली कांड का मुखर विरोध करने की अपील की है। एक प्रेस वार्ता में राज्य सचिव विजयकांत ठाकुर ने आरोप लगाया कि पूर्णिया में केसरी हत्याकांड की तरह सुशील कुमार मोदी इस घटना के भी गवाह बनते जा रहे हैं। जिस ज़मीन को लेकर फारबिसगंज में गोली चली, उसे कोई भी सरकार एक्वायर नहीं कर सकती। वह आम रास्ता है। सरकार ने तीन बार उसकी मरम्मत कराई है।

उन्होंने आगे यह ऐलान किया कि अब 23 जून को सभी ज़िला मुख्यालयों में प्रतिरोध सभाएं होंगी। जिसमें लीज रद्द करने के साथ ही मृतकों व घायलों के परिजनों को मुआवज़ा देने की मांग की जाएगी।

इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस के वरीय नेताओं ने इस मामले को लेकर गूरूवार को पटना के कारगिल चौक पर धरना दिया। प्रदेश प्रभारी गुलचैन सिंह चारक ने इस मौके पर कहा कि फारबिसगंज गोलीकांड जैसी घटना मैंने कहीं नहीं देखी। मर चुके व्यक्ति को जिस तरह बेरहमी से लतियाया गया, वह शर्मनाक दृश्य था।

कांग्रेस ने इस अवसर पर मांग किया कि इस घटना की सीबीआई जांच हो। डीएम, एसपी, एसडीओ व थाना प्रभारी पर हत्या का मुकदमा दर्ज हो। भजनपूर से तत्काल पुलिस पोस्ट हटे। पीड़ित परिवार को दस-दस लाख का मुआवज़ा और एक व्यक्ति को नौकरी, और घायल को पांच लाख मुआवज़ा मिले। गांव की इस पुरानी सड़क को कब्ज़े से मुक्त कराया जाए। यदि पार्टी की मांगे नहीं मानी गई तो कांग्रेस राज्यभर में आंदोलन करेगी।

प्रदेश अध्यक्ष चौधरी महबूब अली कैसर ने कहा कि सिंगूर और नंदीग्राम की तरह भजनपूर की यह घटना मौजूदा सरकार की चूल हिला देगी।

उधर दिल्ली में बिहार की पूर्व सांसद व पीसीसी की महासचिव रंजीता रंजन ने भी इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री से मुलाकात की। इस अवसर पर एक ज्ञापन भी प्रधानमंत्री को सौंपा। ज्ञापन में उन्होंने फारबिसगंज घटना की सीबीआई जांच की मांग की क्योंकि उन्हें राज्य सरकार की जांच एजेंसी पर कोई भरोसा नहीं है।

बुधवार, 8 जून 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ़ झंडाबरदारों के नाम खुला पत्र

FOR ENGLISH:


 

महोदय,

आज देश में भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ़ मुहिम ज़ोरों पर है। इस कैंसर से लड़ना वक़्त की ज़रूरत भी है। हाल में सामने आए भ्रष्टाचार के मामले इस बात की गवाही देते हैं कि देश में इसकी जड़ें कितनी गहरी हैं। बानगी के तौर पर 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला और आदर्श घोटाले का ज़िक्र किया जा सकता है।

यही वजह थी कि जब अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आमरण अनशन का एलान किया तो लोगों का आक्रोश साफ दिखा। आम लोगों के साथ-साथ सिविल सोसाइटी के सदस्य भी इस आंदोलन से जुड़ते चले गए।

इस मुहिम में ये बात भी देखने को मिली कि किस तरह दो धूरी के लोग मंच साझा करते नज़र आए, हालांकि देश इससे पहले भी इस तरह के नज़ारों का साक्षी रहा है। 1977 के आंदोलन में वामपंथ और दक्षिणपंथ सारथी बने थे, लेकिन इसकी कीमत भी देश को चुकानी पड़ी थी।

ऐसी स्थिति में ये सवाल उठना लाज़मी है कि क्या इतिहास खुद को दोहरा रहा है। ये सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मौजूदा मुहिम के झंडाबरदारों में कईयों के अतीत संदिग्ध हैं। अन्ना हज़ारे हों या बाबा रामदेव अपने-अपने कार्यक्षेत्र के दिग्गज हैं, लेकिन समाजिक समरसता के ताने-बाने को बुनन में इनकी भूमिका नगण्य हैं।



चंद ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब इन झंडाबरदारों से लाज़मी है।

आखिर भ्रष्टाचार की परिभाषा क्या है और क्या अन्ना हज़ारे के सामने केवल वित्तीय अनियमितताएं ही भ्रष्टाचार के दायरे में आती हैं। अन्ना 1975 से ही विभिन्न आंदोलन के अगुवा रहे हैं। लेकिन इस तथाकथित गांधीवादी ने कभी भी किसी सांप्रदायिक दंगों के खिलाफ़ आवाज़ नहीं उठाई। इनके गृह राज्य महाराष्ट्र में ही सैकड़ों ऐसे मामले देखने को मिलते हैं जब हिंदुत्ववादी शक्तियों ने मुसलमानों को निशाना बनाया। इसमें प्रशासन ने भी मुसलमानों के साथ पक्षपात किया, लेकिन इन अत्याचारों के खिलाफ़ अन्ना की आत्मा नहीं जागी।

गुजरात दंगा, मेरठ दंगा, अलीगढ़ दंगा, भागलपुर दंगा, सोहराबुद्दीन फर्ज़ी एनकाउंटर और बटला हाउस फर्जी एनकाउंटर, आदि-अनादि। ये सिर्फ बानगी भर हैं। सच तो ये है कि आजाद भारत ऐसे लाखों मामलों का साक्षी रहा है।

राज ठाकरे को फांसी की मांग क्यों नहीं करते अन्ना.... किसानों के लिए अनशन क्यों नहीं। गांधी आश्रमों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर क्यों नहीं बोलते। नीबू पानी की जगह जिस “निम्बूज़” से उन्होंने अपने साथियों का अनशन खुलवाया वो किस ग्रामोद्योग में बनता है। राम माधव ने विचारधारा की तलवार से क्या इस देश की संस्कृति को भ्रष्ट नहीं किया है।

पैसे से जुड़ा भ्रष्टाचार ही अगर मुद्दा है तो अन्ना की ईमानदारी मैं भी मानता हूं पर ईमानदार आदमी अगर बेइमानों के हाथ इस्तेमाल हो जाए तो इससे खतरनाक क्या होगा और अन्ना इतने नासमझ नहीं कि इन बातों को न जान सकें।

बाबा रामदेव का अतीत तो जगजाहिर है। पारदर्शिता की बात करने वाले इस बाबा के को दामन और भी दाग़ार हैं। कभी हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा को चंदा देते हैं तो कभी साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ गलबहियां करते नज़र आते हैं।

बाबा के अतीत को लेकर सवालों की एक लंबी फेहरिस्त है। पतंजलि योग संस्थान की आय के स्रोतों पर सवाल है। उनके विरोधी उन पर अध्यात्मिक गुरु शंकर देव के कत्ल का इल्जाम भी लगाते हैं। बताया जाता है कि गुरु शंकर देव और बाबा रामदेव एक साथ रहते थे। एक दिन गुरु शंकर देव अचानक गायब हो गए। जिनका पता आजतक किसी को भी नहीं चला। आस्था चैनल को जबरिया हथियाने का आरोप है। उसके हेड सी. मेहता को अगवा करने और जान से मारने की धमकी देने का इल्जाम है। संत समाज के नाम पर राजनीति करने की इच्छा का आरोप है। बाबा के विरोधी उन पर धर्म के नाम पर धंधा करने का भी आरोप लगाते हैं। हाल फिलहाल स्वाभिमान ट्रस्ट के सचिव रहे राजीव दीक्षित की रहस्यमय मौत के सिलसिले में भी बाबा सवालों के घेरे में हैं। राजीव दीक्षित कभी बाबा के स्वदेशी आंदोलन के सबसे बड़े अगुवाकार हुआ करते थे। मगर बाद में स्थितियां बदलती गईं। दोनो के बीच के अंतर विरोध खुले विरोध की कगार पर पहुंच गए।

चार जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में उनके आंदोलन में साध्वी ऋतंभरा का आना बहुत कुछ जाहिर कर देता है।

इस मुहिम के एक और झंडाबरदार अरविंद केजरीवाल जो खुद को पारदर्शिता के चैम्पियन के तौर पर पेश करते हैं, उनके के साथ मेरा तजुर्बा भी कम दिलचस्प नहीं है। यह वही अरविन्द केजरीवाल हैं, जो सुन्दर नगरी की देन की वजह से मैग्सेसे अवार्डी है। अरविन्द तो कहां से कहां पहुंच गए लेकिन ये सुन्दरनगरी वहीं की वहीं है। सुन्दर नगरी खासतौर से मुसलमानों का इलाक़ा है और ये अरविन्द को जानते तक नहीं। (अगर अब मीडिया की वजह से जान गए हों तो अलग बात है।) बिहार में जानकारी कॉल सेन्टर खुलवाने में अरविन्द का बहुत रोल रहा था। इससे सुशासन बाबू नीतिश की छवि काफी बेहतर बनी थी, पर आज कॉल सेन्टर, बस भूल ही जाईए। ऐसा नहीं है कि अरविन्द इस कॉल सेन्टर की सच्चाई से वाकिफ नहीं हैं। आज अरविन्द को आर.टी.आई. के छोटे सेमिनारों में जाना अच्छा नहीं लगता। उनके पास तो लोगों को आर.टी.आई. अवार्ड से फुर्सत नहीं है, और फुर्सत हो भी क्यों, आखिर इस आर.टी.आई. अवार्ड के बहाने इंफोसिस और टाटा फाउंडेशन से चंदा जो लेना है।

ऐसे में ये ज़रूरी हो जाता है कि न केवल भ्रष्टाचार की परिभाषा को व्यापक किया जाए बल्कि इनके पुरोधाओं के अतीत को भी जाना जाए।



अफ़रोज़ आलम साहिल

RTI INFORMATION OF INDIA AGAINST CORRUPTION

FOR ENGLISH STORY:


जन लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल सिविल सोसाईटी के सदस्य वैसे तो बार-बार पारदर्शिता की गुहाई देते हैं और इनमें से कुछ सूचना अधिकार अभियान से भी जुड़े हैं, पर जन लोकपाल बिल के मुद्दे पर ये खुद कोई जानकारी या किसी तरह की पारदर्शिता के लिए तैयार नहीं हैं।

India Against Corruption movement और Public Cause Research Foundation जैसी संस्थाएं जो जन लोकपाल बिल के लिए आंदोलनरत हैं, इस आंदोलन और जन लोकपाल बिल से संबंधित सूचनाएं देने से इंकार कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो बार-बार सरकार से कह रहे हैं कि लोक बिल के मुद्दे पर सरकारी चीज़ों को जनता के सामने सार्वजनिक करे और जन लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग कमिटी के मीटिंगों का प्रसारण कराए। पर ऐसी संस्थाएं सरकार से जो मांग कर रही है, वो उनसे खुद पीछे हट रहे हैं।

खैर, हमने (http://www.beyondheadlines.in/) दिनांक 13.04.2011 को India Against Corruption movement और पब्लिक कॉज़ रिसर्च फाउंडेशन को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन भेजा था। (यह वही संस्था है जिसने “इंडिया अगेंस्ट करप्शन” का कार्यक्रम यानी अन्ना हज़ारे का जंतर-मंतर पर भूख हड़ताल आयोजित किया था।)

आवेदन के जवाब में बताया गया कि मांगी गई सूचना का अधिकांश हिस्सा हमारी वेबसाईट http://www.indiaagainstcorruption.org/ पर उपलब्ध है। साथ ही वेबसाईट के कुछ पन्नों के फोटोकॉपी भी भेजा। अब हम अपने सवाल और उनके जवाब खुद उनकी वेबसाईट से लेकर आपके समक्ष रख रहे हैं। यह उस संस्था का जवाब है जो पारदर्शिता की वकालत करता है। देश में भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहता है। अब आप स्वयं ही तय करें कि इनकी सच्चाई क्या है। यह कितने पारदर्शी है।



1. India Against Corruption movement की स्थापना कब और क्यों किया गया। इसकी स्थापना किस उद्देश्य से की गई है। इसके स्थापना में कितने लोग शामिल रहें, और इनका चयन किस तरह से किया गया।



वेबसाइट से लिया गया उत्तर: India Against Corruption movement is an expression of collective anger of people of India against corruption. We have all come together to force/request/persuade/pressurize the Government to enact the Jan Lokpal Bill. We feel that if this Bill were enacted it would create an effective deterrence against corruption. The following eminent personalities started this movement:

Anna Hazare, Baba Ramdev, Sri Sri Ravishankar, Mahamood Madani, Archbishop Vincent M Concessao, Swami Agnivesh, Kiran Bedi, Syed Rizvi, Mufti Shamoon Qasmi, Mallika Sarabhai, Justice D S Tewatia Kamal Kant Jaswal, Sunita Godhra, B R Lalla, Davinder Sharma, Subhash Chandra Aggarwal, Vishwas Utagi, Sayed Shah Fazlur Rahman Waizi, Pradeep Gupta and Arvind Kejriwal.



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है कि India Against Corruption movement की स्थापना कब किया गया है। इसके स्थापना में कितने लोग शामिल रहें, और इनका चयन किस तरह से किया गया



2. स्थापना से लेकर अब तक इस India Against Corruption movement के द्वारा कितने कार्यक्रम कब-कब आयोजित किए गए। दिनांकवार सूची उपलब्ध कराएं। इन पर आने वाले खर्चों का ब्यौरा भी उपलब्ध कराए।

वेबसाइट से लिया गया उत्तर: Anna Hazare's Revised Travel Plans

Anna-ji’s revised travel plans are as follows:

• May 13: Goa

• May 20: Guwahati

• May 26: Ahmedabad

• May 28: Bangalore

"The Bhubaneshwar meeting scheduled to be held on May 24th has been cancelled due to an important meeting of the core committee members. The Hyderabad meeting to be held on May 27th also stands postponed as of now on request from our friends in the city due to exam season in colleges. Programs for both of these cities would be announced at the earliest. "

Jan Lokpal Janchethana Yathra

Iit will start at 8 am 0n 24th May from Jantar Mantar so please reach before 7.30 am , we will move towards Mathura via NH 2 and will meet people on the way to discuss Draft Jan Lokpal Bill so that more and more people get aware . it will be based on co-operation and sharing basis we will arrange our vehicles by ourself . Volunteers can join it on day to day basis or till they have time . we will try to cover 100 to 120 KM a day but if the villages and towns are more on the way it can be less than 100 km a day. our objective is to meet maximum number of people.

Contact: 9968649410, gautamshriom@gmail.com

Tentative dates for Cities on the way

• Faridabad: 24th

• Mathura: 24th Night and 26th Morning

• Agra: 25th evening and

• Dholpur: 26th

• Morena: 26th

• Gwalior: 27th

• Jhansi: 27th Night

• Lalitpur: 28th

• Bhopal: 30th



Public Consultation/Awareness Program on Jan Lokpal Bill Delhi, May 22, 2011

S.No VENUE ADDRESS TIMINGS CONTACT PERSON MOBILE NO

1 NARELA ARYA SAMAJ MANDIR,, ARYA SAMAJ ROAD, NEAR RAMDEV CHOWK , NARELA. 11.00 AM JOGINDRA DAHIYA 9891973125

2 ROHINI AGRASEN BHAWAN, NEAR PETROL PUMP, SECTOR-8, ROHINI DELHI, Delhi-110085 4PM CHINMOY MOHANTY 9971232920

3 INDIRAPURAM SWARN JAYANTI PARK.INDIRAPURAM,GAZHIABAD, UTTARPARDESH 5PM ANKIT LAL 9958109849

4 SAHADRA CHOUDHARY BUILDERS, B-560, GALI NO-9, MAIN ROAD VIJAY PARK,MAUJPUR,DELHI 11.30AM ANITA JI 9891095884



Public Consultation/Awareness Program on Jan Lokpal Bill Delhi, May 25, 2011

S.No VENUE ADDRESS TIMINGS CONTACT PERSON MOBILE NO

1 Shalimar Bagh East Shalimar Bagh, BC Block, A/95, Near Kela Godam, Delhi 07.00 PM Rishikesh Kumar 9911483629



Events Chart

1. October 29th, 2010: A Press Conference was held at Press Club of India which was addressed by Kiran Bedi, Swami Ramdev (through phone), Arvind Kejriwal and Madhu Trehan. The Conference was held to highlight the fact that Shunglu Committee had inadequate powers to investigate the CWG scam. Click here

2. November 14th, 2010: For registering a complaint regarding corruption in the Commonwealth Games, nearly 10,000 people assembled at the Parliament Street Police Station. Those eminent personalities who were present include Swami Ramdev, Kiran Bedi, Arvind Kejriwal, Swami Agnivesh, Justice Tewatia, Sunita Godhra, Arch Bishop Vincent M Concessao, Devendra Sharma, Anna Hazare, Maulana Mufti Shamoom Kashmi, Maulana Kalve Rizhvi and Subhash Chandra Aggarwal. Click here

3. December 1st, 2010: A Press Conference was held in New Delhi, in which a comprehensive Anti-corruption Bill, Jan Lokpal Bill, was released. A letter was subsequently written to the PM, CJI and all CMs for a strong anti-corruption system, Lokpal/Lokayukta. Click here.

4. December 9th, 2010: A day long seminar was held at IIC on “How effective are our anti-corruption agencies in tackling high level corruption?”

5. January 30th, 2011: Thousands of people marched against corruption in more than 52 cities in India and abroad. Copies of CVC Act, CBI Act and Government’s draft Lokpal Bill were torn by thousands of people all across the country giving a strong message that the people just do not have faith in all these weak and ineffective anti-corruption agencies. A campaign for creating of 'Vote Bank Against corruption' was also launched. Several letters were written for seeking appointments with PM and other prominent political party leaders. Click here

6. On January 31, memorandums were sent to all major political parties, demanding for a string anti-corruption agency.

7. On Feb 2, letters were written to PM, Sonia Gandhi and other key leaders and ministers for seeking an appointment. The letter was signed by Swami Agnivesh, Kiran Bedi, Arvind Kejriwal and Kamal Jaswal.

8. On Feb 14th, Sonia Gandhi writes back to Swami Agnivesh -- an acknowledgement.

9. On Feb 17, Anna sends a memorandum to the PM (in Marathi). In the letter he writes about his intention to go on a fast.

10. On February 26, Anna writes to the PM for setting up a joint drafting committee. He writes about going on an indefinite fast in the letter.

11. In the subsequent month (February) several meetings took place with party bigwigs.

12. On March 7th, Anna met with PM who asked him to wait till May 13th. Anna refuses. He writes a letter on March 8th reiterating his demand for a Joint committee.

13. March 11: All Party meeting at India Islamic Center meeting

(A GOM on corruption is formed meanwhile)

14. On March 21st Anna writes to PM informing him of his reservations of forming a sub-committee consisting only ministers to draft the Lokpal Bill. He again asks for a joint committee, else his fast continues.

15. On 23rd March, V Narayanaswamy writes back seeking to meet Anna ji on 28th March, 2011. Anna did not go for the meeting, and writes a letter to Narayanaswamy on March 24th

o Swami Agnivesh, Justice Tewatia, Sunita Godara and Devinder Sharma go and meet Anna. They ask the civil society to request Anna to not go on a fast. They submit a letter to Antony specifying their demands once again.

16. March 30th, Anna writes to all big leaders and parties to join his fast.

17. April 1: Kapil Dev writes to PM

18. April 4th: Press conference to declare the fast.

19. April 5: Anna sits on an indefinite fast; nearly 500 people sit with him on indefinite fast in Delhi (click here for the list of aamaran anshankaris).

20. On April 6th Anna writes to PM in which he counters the claim that he is being “instigated by people” to sit on fast. He also gives instances of joint committees that were formed in the past for drafting laws.

21. April 6th: Aamir Khan writes to Anna and PM

22. On April 8th: Anna writes to PM and Sonia Gandhi about Swami Agnivesh’s and Arvind’s meeting with Kapil Sibal in which the government agrees for a joint committee.

23. April 9th: Gazzette released Click here

टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है कि इन कार्यक्रमों पर कितना खर्च किया गया है। जबकि इनमें से कई जगहों पर जाने के लिए हवाई यात्राओं तक का सहारा लिया गया है।



3. इस India Against Corruption movement में कौन-कौन से लोग जुड़े हैं। सदस्यों सहित समस्त अधिकारीगण का नाम उपलब्ध कराए।

वेबसाइट से लिया गया उत्तर:

Anna Hazare, Baba Ramdev, Sri Sri Ravishankar, Mahamood Madani, Archbishop Vincent M Concessao, Swami Agnivesh, Kiran Bedi, Syed Rizvi, Mufti Shamoon Qasmi, Mallika Sarabhai, Justice D S Tewatia Kamal Kant Jaswal, Sunita Godhra, B R Lalla, Davinder Sharma, Subhash Chandra Aggarwal, Vishwas Utagi, Sayed Shah Fazlur Rahman Waizi, Pradeep Gupta and Arvind Kejriwal.


4. स्थापना से लेकर अब तक इस India Against Corruption movement को कहां-कहां से कितनी राशि फंड के रूप में मिली है और इन फंड को कहां-कहां खर्च किया गया है। समस्त जानकारी उपलब्ध कराएं। साथ ही Balance Sheet की प्रतिलिपी भी उपलब्ध कराएं।

वेबसाइट से लिया गया उत्तर:

India Against Corruption



Receipt and Expenditure statement



As on April 13, 2011



This statement is for 30th January rally, indefinite fast in April and all activities related to preparations thereof



EXPENDITURE



Particulars Amount

Printing 732624

Traveling And Conveyance 461382

Stationary 6940

Food 81751

Telecom 893938

Tent, Bed, Sound System & Hall Booking 947344

Postage 2405

Video recording 11755

Medical for those on fast 44908

Miscellaneous 86853

Total 3269900





LIST OF DONORS

Name Amount

A. Guruswami 5000

Ace Productions Pvt. Ltd. 10000

Ajay Goyal 5000

Akshar Cultural Trust 100000

Alka Thakran 5000

Amarnath Palacherla 25000

Anand Mahajan 60000

Anil Bhardwaj 50000

Anuj Kumar 10000

Arun Duggal 300000

Arvind Bhai Chimanlal Shah 5000

Arvind Sethi 10000

Ashok Sud 10000

Atul Vijay Vikash Saini 7000

Bala Deshpandey 10000

Carmel Convent School 20000

catalyst developments 10000

Chandrakant DhirajLal Mehtalia 25000

Common Cause 25000

Darshan Singh Pan India 5000

Eicher Goodearth Trust Mr. Vikram Lal 300000

Gupt Daan 5000

Harbachan Singh Bawa 50000

Harish Rangwala 10000

Harsh Kumar Chaturvedi 5000

HDFC Bank Ltd. 50000

Hemlata Investment Pvt. Ltd. 25000

Hitesh Oberoi 25000

Ilengovan Arunachalam 5000

jai Hind vendematram 5000

Jindal Aluminium Ltd/Mr.Sitaram Jindal 2500000

Jyotindra Mani Bhai Trivedi 100000

K v Raju 5000

Kamal K Shah 25000

Ketaki Sood 10000

Krishan Kumar Bansal 11000

Luthra and Luthra Law Office 50000

Luv Vikram Kothari 5000

M/s Enam Securities Pvt. Ltd. 200000

M/s J M Financial Foundation 50000

M/s matrix clothing pvt ltd. 25000

Manon Nalin Shah 5000

Mansukhlal Vasa 10000

Mayur Jay Kumar Vora 5000

Mehta Foundation 10000

Murti Lal Aggrawal 5100

Neeraj Aggarawal 25000

Nilofer R. Rustom Ji 10000

Nimmagadda Foundation 100000

Nirmala 5000

O P Vaish 25000

OM R Barlinge 15000

People Synergy 5000

Premila Nazareth Satyanand 5000

Prince 5000

r d Goyal 20000

R K Gupta Foundation, 10000

R Narayan 6500

Raj Dutta 20000

Rajesh Bhaskar Mandlik 5000

Rajiv Ram Lal Gupta 25000

Rajkumar Aggrawal 10000

Rakshit Jain Era 20000

Ramky (Phani Kumar) 500000

Ravindra Bahl 50000

Reshad Minoo Rustom Ji 10000

Robin Shalabh Chandra 50000

Romesh Sobti 25000

Safexpress Pvt. Ltd. 100000

Sai Shipping Co. (P) Ltd. 5000

Sanjay Malhotra 10000

Sanjeev Anand IndusInd bank 15000

Sanjeev Bikhchandani 50000

Sanjeevan Jyoti Charitable Trust 25000

Santosh Awatramani 25000

Sawan Vinodbhai 51000

Shachindra Nath 20000

Shri Orient Corporation 35000

Shriram Investments 200000

Suraj Agencies 21000

Surender Pal Singh 1000000

Suresh 50000

Suresh Kumar Kannan 9000

Surjeet Singh 50000

Tejveer Singh 5000

Tepflo Pumps (India) Pvt. Ltd. 5000

The Jammu & Kashmir Bank Ltd 10000

The Supreme Industries Ltd. 15000

Triburg sports 9570

V. Rangrajan 100000

V.Malik Associates 21000

Vaibhav Dayal 20000

Vera mahajan 40000

Vijay Thakkar 200000

Vikas Banga 5000

Vikas Mapara 200000

Vimal Shah 5000

Vipin kapur 20000

Virender Kumar Jain 11000

Vishal Vijay Gupta 51000

Vivek Krishna Marla 10000

Mr. Thadani 20000





Apart from the above mentioned donors, 2,871 people donated less than Rs 5000 each, the total of which is Rs 7,34,498.



Donation Received during Rallies held in Other Cities

Date City Donation

29.04.11 Banaras rally 5100

30.04.11 Sultanpur rally 5650

01.05.11 Lucknow rally 31471

06.05.11 Meerut meeting 4699

07.05.11 Ghaziabad meeting 3121

20.05.11 Guwahati rally 33,363

Total 83404

DONATIONS RECEIVED 8287668
BALANCE 5017768

 
टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद यह जानकारी आधी-अधूरी है।



5. स्थापना से लेकर अब तक इस India Against Corruption movement से जुड़े लोगों ने कितनी और कहां-कहां यात्राएं की। इस पर आने वाले खर्चों का ब्यौरा उपलब्ध कराए।

वेबसाइट से लिया गया उत्तर:

Traveling And Conveyance 461382



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है कि इन्होंने कितनी और कहां-कहां यात्राएं की हैं, और इस पर कितना खर्च किया गया है। जबकि इनमें से कई जगहों पर जाने के लिए हवाई यात्राओं तक का सहारा लिया गया है।



6. स्थापना से लेकर अब तक इस India Against Corruption movement की बैठकें आयोजित की गई और इनमें कौन-कौन से लोग शामिल रहें। सारे मीटिंग्स के मिनट्स की कॉपी और फाईल नोटिंग दी जाए।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है। किसी भी मीटिंग्स के मिनट्स की कॉपी और फाईल नोटिंग वेबसाईट पर नहीं है।



7. Jan Lokpal Bill को ड्राफ्ट किसने किया है और इसके लिए कितनी बैठकें आयोजित की गई। इससे संबंधित समस्त कागज़ात और फाईल नोटिंग उपलब्ध कराई जाए।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है। कोई भी फाईल नोटिंग वेबसाईट पर नहीं है।



8. Jan Lokpal Bill को ड्राफ्ट करने के लिए जिस टीम का गठन किया गया, उसमें कौन-कौन से लोग शामिल थे। उनका ब्यौरा उपलब्ध कराए। साथ ही यह भी बताए कि उनको किस आधार पर टीम में शामिल किया गया और उनका बैकग्राउंड क्या है।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।



9. Jan Lokpal Bill को ड्राफ्ट करने के लिए कितनी धन राशि खर्च की गई।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।



10. जंतर-मंतर पर पांच दिन के धरने पर कितनी खर्च की गई है और इसके लिए कहां-कहां से कितना-कितना फंड या donation मिला है। समस्त जानकारी उपलब्ध कराएं, साथ ही Balance Sheet की प्रतिलिपी भी उपलब्ध कराएं।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी अलग से इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।



11. जंतर-मंतर पर इन पांच दिनों में कौन-कौन से संस्था, राजनीतिक दल और बॉलीवुड से लोग आएं। सभी प्रमुख लोगों के नामों की सूची उपलब्ध कराएं।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।



12. Event Management और Media Management का काम किसको सौंपा गया था और इस काम पर कितनी धन-राशि खर्च की गई।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।



13. इस धरने की तैयारी के लिए कितनी यात्राएं की गई और इन पर कितना खर्च आया।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।



14. अप्रैल, 2010 से लेकर इस आवेदन के जमा किए जाने तक Public Cause Research Foundation और India Against Corruption movement से जुड़े पदाधिकारियों और टीम के सदस्यों द्वारा कितनी हवाई यात्राएं की गई। यह किसलिए और कहां-कहां की गई। इनमें से कितनी यात्रा का खर्च संस्था द्वारा स्वयं वहन किया गया और कितनी यात्राओं का खर्च दूसरे संस्थानों ने दिया, पूरा ब्यौरा उपलब्ध कराएं।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।



15. इस आमरण अनशन के विज्ञापन पर कितनी धन-राशि खर्च की गई। साथ ही यह भी बताएं कि इसके लिए पोस्टर, बैनर, होर्डिंग, झंडे, पम्फलेट, स्टेज और अन्य सामाग्रियों पर कितना पैसा खर्च किया गया। सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएं।



टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।



16. Public Cause Research Foundation ने लगातार सूचना के अधिकार और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता को लेकर काम किया है, लेकिन Public Cause Research Foundation अपने स्तर पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने में विश्वास रखता है। अगर हां! तो इस दिशा में अब तक क्या क़दम उठाए गए हैं। सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएं।



टिप्पणी: इस सवाल का कोई जवाब देना इन्होंने मुनासिब नहीं समझा।



17. क्या Public Cause Research Foundation का मानना है कि वो अपने आय व व्यय का ब्यौरा देने और अपने कामकाज की पारदर्शिता सुनिश्चित करना ज़रूरी नहीं समझता? अगर समझता है तो अब तक किए प्रयासों का विवरण उपलब्ध कराएं।



टिप्पणी: इस सवाल का कोई जवाब देना इन्होंने मुनासिब नहीं समझा।

 

Afroz Alam Sahil

Editor (Investigation)


Mob: +91-9891322178.