शुक्रवार, 15 मई 2009












शनिवार, 2 मई 2009

The truth of Bihar's development.

In Bihar, the last phase of the 15th Lok Sabha elections is underway. For the first time, issues of development are prominent. During election campaigns, Chief Minister Nitish Kumar has projected himself as the harbinger of development. And he also rapped the Centre on this issue saying the Central UPA Government is not giving the right attention to Bihar. And UPA leaders are alleging that Bihar’s development is due to the Centre’s money. But Nitish dismisses them as liars.
But the Bihar state government has some papers are stating something else about its achievements. But a reply to an RTI has shown that the Central government has helped the Nitish government more than the erstwhile Lalu-Rabri government in Bihar. Also the information states that international agencies are helping the state government on a big level but still the money is not fully being utilised by the state government.
Under the Right to Information (RTI) Act, the information got from the state government has falsified the campaigning claims of the state government leaders. Statistics show that during the NDA government, between 2003-04, the Bihar government got Rs 1617.62 crores from the Centre. But after the change in power at the Centre, the Centre began to pay double the amount to the state government. In the first financial year 2004-05, the Centre gave an amount of Rs 2831.83 crores to the Bihar state government.
After this, the power changed on the state level, and Mr Nitish Kumar became the Chief Minister of Bihar. This government formed by BJP support, got Rs 3332.72 crores from the Central government during the year 2005-06. During the next financial year, in 2006-07, the amount was increased to Rs 5247.10 crores. The statistics after this are not available by the state government, but officials believe that the Centre has increased help nonetheless. So if we talk of statistics given by the state government, then we find that the present state government has got Rs 8579.83 crores from the Centre, while the last state government got Rs 7984.56 crores from the Centre in the last five years.
There is another element that questions the state government’s activities on development in Bihar. Statistics reveal that the government is not keen on spending the money it receives.
The state government, during the year 2006-07, has got Rs 92.92 lakh rupees from the World Bank, but only Rs 60 lakh rupees were spent. In the next financial year 2007-08, Bihar government got Rs 464.15 crores from the World Bank. But documents reveal that the state government spent only Rs 6.13 crores out of this. Not only this, but there is a ward in Bihar which states in written that during Nitish’s tenure there was no development work there.
The documents by the state government also reveal that the state government has been more intent in promotional activities than in developmental activities. During the year 2005-08, Bihar’s Information & Public Relations Department has issued 28,000 different advertisements and for this purpose, the department has spent Rs 19.56 crores. But it is not only this. The developmental activities for which crores of rupees have been spent is not known to educated people, leave alone the others. For example, to help the indisposed of Bihar, a call centre “solution” was started with the very motive. The government officials however turned out to be the healthiest out of this initiative. And now it is only to see when they will be afflicted by Diabetes.
Anyways, after cutting the harvests and staying in air-conditioned tents and looking out to the conditions of the villages, while riding high on the chariots of his “Nyaya Yatra and Vikas Yatra”, people really expect the Chief Minister to honestly speak in his speeches. Honesty, the word that changed the government in Bihar. The word on which the present government came to power in Bihar.

AFROZ ALAM SAHIL

बिहारः चुनाव प्रचार और सच

पाणिनी आनंद
चुनाव प्रचार के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ख़ुद को राज्य का विकास का पहरुआ बताया है और साथ ही केंद्र को कटघरे में खड़ा किया है, यह कहते हुए कि विकास के लिए बिहार जैसे ग़रीब राज्य को केंद्र पैसा ही नहीं दे रहा.
लेकिन राज्य सरकार के ही काग़ज़ चुनावी मौसम की इस राजनीतिक भाषा की कुछ और चुगली करते नज़र आते हैं.
बिहार सरकार से सूचना का अधिकार क़ानून के तहत मिली जानकारी से यह स्पष्ट दिखाई देता है कि वर्तमान राज्य सरकार को पिछली राज्य सरकार की तुलना में लगभग दोगुना पैसा केंद्र सरकार से मिला है.
इतना ही नहीं, जानकारी यह भी दिखाती है कि पहली बार अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से राज्य को बड़ी मदद मिलनी शुरू हुई है लेकिन विकास के लिए लिया जा रहा पैसा इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है.
सूचना का अधिकार क़ानून के तहत युवा कार्यकर्ता अफ़रोज़ आलम साहिल ने राज्य सरकार से जानकारी मांगी कि पिछले आठ वर्षों में केंद्र सरकार से राज्य सरकार को कितना कितना पैसा मिला है. यह भी पूछा गया कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से कितना अनुदान राज्य सरकार को प्राप्त हुआ है.
राज्य सरकार से लंबे इंतज़ार के बाद जो जानकारी मिली, वो राज्य सरकार के नेताओं की चुनावी प्रचार की भाषा को ग़लत साबित करती नज़र आती है.
केंद्र से मिली राशि
आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2003-04 में राज्य सरकार को केंद्र से 1617.62 करोड़ रूपए मिले थे. पर केंद्र में सरकार बदलने के बाद यूपीए ने राज्य सरकार को लगभग दोगुना पैसा देना शुरू किया.
पहले ही वित्तीय वर्ष यानी वर्ष 2004-05 में केंद्र ने राज्य सरकार को 2831.82 करोड़ रूपए की राशि उपलब्ध कराई.
इसके बाद राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समर्थन से बनी इस राज्य सरकार को वर्ष 2005-06 में 3332.72 करोड़ रूपए केंद्र सरकार से मिले.
इसके अगले वित्तीय वर्ष में यानी वर्ष 2006-07 में यह राशि बढ़ाकर 5247.10 करोड़ कर दी गई. इसके बाद के आंकड़े राज्य सरकार उपलब्ध नहीं करा पाई है पर अधिकारी मानते हैं कि केंद्र से मदद बढ़ी ही है.
राज्य सरकार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने बीबीसी को इस बारे में बताया कि केंद्र का रवैया सौतेला ही रहा है. पिछली सरकार से वर्तमान सरकार की तुलना के आधार पर राज्य के लिए ज़रूरी राशि की बात नहीं करनी चाहिए.
पर चुनाव के दौरान लोगों से यह कहना कि केंद्र ने राज्य सरकार को पैसा नहीं दिया, कहाँ तक सही है.
इसपर सुशील मोदी कहते हैं, "पिछली सरकार विकास के नाम पर कुछ नहीं करती थी. जो पैसा नाममात्र के लिए आता था, उसे भी राज्य सरकार ख़र्च नहीं कर पाती थी. अब विकास का काम शुरू हुआ है तो उसके लिए पैसा चाहिए पर जितना चाहिए, उतना केंद्र से नहीं मिल रहा है."
विश्व बैंक की मदद
लेकिन एक तथ्य और है जो राज्य सरकार के विकास कार्यों पर होने वाले ख़र्च पर सवाल उठा देता है. राज्य सरकार से मिले दस्तावेज़ों में यह जानकारी भी मिली है कि विश्व बैंक से कितना पैसा राज्य सरकार को मिल रहा है और उसमें से कितना ख़र्च हो रहा है.
सुशील मोदी गर्व के साथ बताते हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान ही विश्वस्तरीय एजेंसियों में राज्य सरकार के प्रति विश्वास पैदा हुआ है और सहायता मिलनी शुरू हुई है. पर आंकड़े कहते हैं कि पैसा लेने में चुस्त सरकार, उसे ख़र्च करने में सुस्त है.
राज्य सरकार को वर्ष 2006-07 में विश्व बैंक से ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लिए 92.92 लाख रूपए मिले पर ख़र्च हुए कुल 60 लाख रूपए. अगले वित्तीय वर्ष यानी 2007-08 में ग़रीबी उन्मूलन, लोक व्यय एवं वित्तीय प्रबंधन और बिहार विकास ऋण के लिए राज्य सरकार को 464 करोड़ रूपए मिले पर दस्तावेज़ बताते हैं कि राज्य सरकार ने इसमें से कुछ 6.13 करोड़ रूपए ही ख़र्च किए हैं.
इस बारे में उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी अपने ही विभाग से मिली जानकारी को ग़लत बताते हैं और कहते हैं कि जितना पैसा मिल रहा है, उसका पूरा इस्तेमाल हो रहा है और ऐसा किसी साज़िश के तहत राज्य सरकार को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है.
हक़ीक़त की चुगली
सुशील मोदी कहते हैं, "आपके पास जो भी आंकड़ा है वो ग़लत आँकड़ा है, पहली बात तो विश्व बैंक जो पैसा देता हैं, उनकी अपनी शर्तें हैं, पहले ये संस्थाएँ पैसा नहीं देती थी लेकिन मौजूदा सरकार की कोशश के बाद ऐसा हो सका. इसके लिए इस सरकार ने उन संस्थाओं के सामने अपनी साख बनाई उसके बाद ही ऐसा हो सका है."
मोदी इस मुद्दे पर केंद्र की ओर एक और हमला करते नज़र आते हैं. वो सवाल उठाते हैं बिहार सरकार के बाढ़ राहत के लिए पैदा हुए आर्थिक संकट का.
मोदी कहते हैं, "राज्य सरकार को केंद्र से केवल एक हज़ार करोड़ की मदद मिली थी. वो तत्काल ख़र्च हो गई. उसके बाद कोसी तटबंध और बाढ़ प्रभावित ज़िलों के लिए हमने केंद्र से 14 हज़ार करोड़ की मदद मांगी पर केंद्र राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के बाद भी कोई मदद दे नहीं रही है. यह सौतेला व्यवहार नहीं है तो क्या है."
बाढ़ के मुद्दे पर केंद्र को घेर रही राज्य सरकार काग़ज़ों में सामने आते सच पर साफ़ कुछ नहीं बता पाती. जो बताती है, उसमें और कागज़ों में दर्ज सच में फ़र्क साफ़ है. पर राजनीति में लोगों के सामने सच कितना और किस रूप में आता है, इस बार का चुनाव प्रचार इसका एक सटीक उदाहरण तो है ही.
खेतों को कटवाकर ताने गए वातानुकूलित तंबुओं में ठहरकर गांव की हालत देखते और न्याय यात्रा और विकास यात्रा के रथों पर सवार राज्य के मुख्यमंत्री से शायद लोग भाषा में ईमानदारी की भी उम्मीद करते हैं. ईमानदारी, जिस शब्द से राज्य में सत्ता बदली है. जिस नारे पर वर्तमान सरकार सत्ता में आई है।

शुक्रवार, 1 मई 2009

नीतिश सरकार की इमानदारी....

बिहार में 15वीं लोकसभा चुनाव का अंतिम दौर चल रहा है। पहली बार यहां विकास का मुद्दा हावी है। चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद को राज्य के विकास का पहरुआ बताया है और साथ ही केंद्र को कटघरे में खड़ा किया है, यह कहते हुए कि “केन्द्र की यूपीए सरकार बिहार को वाजिब हक नहीं दे रही है। उल्टे सूबे का विकास केन्द्र की राशि से होने की बात यूपीए के नेता कह रहे हैं। उनकी यह कथनी सरासर झूठ है।”

पर राज्य सरकार के ही कागज़ चुनावी मौसम की इस राजनीतिक भाषा की कुछ और चुगली करते नज़र आ रहे हैं। बिहार सरकार से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी के ज़रिए यह साफ़ दिखाई देता है कि केन्द्र सरकार ने गत दो वर्षों में बिहार के नीतीश सरकार को जितना मदद किया है, उतना लालू-राबड़ी सरकार को 6 वर्षों में भी नहीं। इतना ही नहीं, जानकारी यह भी दिखाती है कि पहली बार अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से राज्य को बड़ी मदद मिलनी शुरू हुई है पर विकास के लिए लिया जा रहा पैसा इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है।

सूचना का अधिकार क़ानून के तहत राज्य सरकार से लंबे इंतज़ार के बाद जो जानकारी मिली है, वो राज्य सरकार के नेताओं की चुनावी प्रचार की भाषा को ग़लत साबित करती नज़र आ रही है।

आंकड़े बताते हैं कि एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2003-04 में राज्य सरकार को केंद्र से 1617.62 करोड़ रूपए मिले थे। पर केंद्र में सरकार बदलने के बाद यूपीए ने राज्य सरकार को लगभग दोगुना पैसा देना शुरू किया। पहले ही वित्तीय वर्ष यानी वर्ष 2004-05 में केंद्र ने राज्य सरकार को 2831.83 करोड़ रूपए की राशि उपलब्ध कराई।

इसके बाद राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए। भाजपा समर्थन से बनी इस राज्य सरकार को वर्ष 2005-06 में 3332.72 करोड़ रूपए केंद्र सरकार से मिले। इसके अगले वित्तीय वर्ष में यानी वर्ष 2006-07 में यह राशि बढ़ाकर 5247.10 करोड़ कर दी गई। इसके बाद के आंकड़े राज्य सरकार उपलब्ध नहीं करा पाई है पर अधिकारी मानते हैं कि केंद्र से मदद बढ़ी ही है। इस प्रकार राज्य सरकार से मिले आंकड़ों की बात करें तो यह बताती है कि वर्तमान राज्य सरकार को मात्र दो वित्तीय वर्ष में ही 8579.83 करोड़ मिले, जबकि पिछले राज्य सरकार को पांच वित्तीय वर्षों में कुल 7984.56 करोड़ ही प्राप्त हुए।

एक तथ्य और है जो राज्य सरकार के विकास कार्यों पर होने वाले खर्च पर सवाल उठा देता है। आंकड़े कहते हैं कि पैसा लेने में चुस्त सरकार, उसे खर्च करने में सुस्त है।

राज्य सरकार को वर्ष 2006-07 में विश्व बैंक से गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लिए 92.92 लाख रूपए मिले पर खर्च हुए कुल 60 लाख रूपए। अगले वित्तीय वर्ष यानी 2007-08 में ग़रीबी उन्मूलन, लोक व्यय एवं वित्तीय प्रबंधन और बिहार विकास ऋण के लिए राज्य सरकार को 464.15 करोड़ रूपए मिले पर दस्तावेज़ बताते हैं कि राज्य सरकार ने इसमें से सिर्फ 6.13 करोड़ रूपए ही खर्च किए हैं। यही नहीं बिहार में एक ऐसा वार्ड भी है जो लिखित रुप में यह कह रहा है कि नीतीश के शासनकाल में विकास का कोई कार्य नहीं हुआ है।

राज्य सरकार से मिले कागज़ के टुकडे यह भी बताते हैं कि वर्तमान राज्य सरकार का काम पर कम और विज्ञापन पर ज़्यादा ध्यान रहा है। बिहार के सूचना एवं जन संपर्क विभाग द्वारा वर्ष 2005-08 के दौरान लगभग 28 हज़ार अलग-अलग कार्यों के विज्ञापन जारी किए गए और इस कार्य के लिए विभाग ने 19.56 करोड़ रुपये खर्च कर दिए। बात यहीं खत्म नहीं होती। जिन विकास कार्य के नाम पर करोड़ों खर्च किए गए हैं, उस विकास कार्य की जानकारी आम लोगों की कौन कहे, यहां के पढ़े-लिखे लोगों तक को नहीं है। जैसे बीमार बिहार के स्वस्थ करने की नियत से शुरु की गई कॉल सेंटर “समाधान” का उदाहरण ही आप देख लीजिए। खैर बिहार की जनता स्वस्थ हो न हो, कम से कम सरकारी अफसर तो इस कार्य से ज़रुर स्वस्थ हो गए हैं। यह अलग बात है कि बाद में कहीं वो डायबटीज़ के पेसेंट न है जाएं।

बहरहाल, खेतों को कटवाकर ताने गए वातानुकूलित तंबुओं में ठहरकर गांव की हालत देखते और न्याय यात्रा और विकास यात्रा के रथों पर सवार राज्य के मुख्यमंत्री से शायद लोग भाषा में ईमानदारी की भी उम्मीद करते हैं। ईमानदारी, जिस शब्द से राज्य में सत्ता बदली है। जिस नारे पर वर्तमान सरकार सत्ता में आई है।

अफ़रोज़ आलम साहिल