बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

फासीवाद के बढ़ते कदम और न्याय की अवधारणा


  राष्ट्रीय मानवाधिकार जनसम्मेलन      
स्थान- संजरपुर, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश
                    तिथि- 20 फरवरी 2010, रविवार
             
         समय- 10 बजे से 5 बजे तक


    पिछले दिनों एक के बाद एक आए न्यायालयों के फैसलों के चलते मानवाधिकार आंदोलन के सामने एक चुनौती आ गई है कि जब लोकतंत्र में न्याय पाने के एक मात्र संस्थान न्यायालय भी सत्ता के दबाव में निर्णय दे रहें हैं तो ऐसे में नागरिकों के मानवाधिकार को कैसे सुरक्षित रखा जाए। वरिष्ठ मानवाधिकार नेता और पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनायक सेन को जिस तरह बिना ठोस सुबूत के रायपुर की एक अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई या फिर पिछले साल पांच फरवरी 2010 को उत्तर प्रदेश की पीयूसीएल की संगठन मंत्री सीमा आजाद को माओवाद के नाम पर गिरफ्तार किया गया, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम बेहैसियत लोगों को आतंकवादी या नक्सलवादी बताकर जेलों में सड़ा देना हमारे तंत्र के लिए किताना आसान होता है।

हम आजमगढ़ के लोग जिन्होंने अपने कई निर्दोष बच्चों को बाटला हाउस से लेकर विभिन्न मामलों में फर्जी एनकाउंटर में कत्ल किए जाते, जेलों में सड़ाए जाते और न्याय मिलने की आस में जब न्यायलय पहुंचे अपने वकीलों को पीटे जाते देखा है और खुद इसके कहीं न सुने जाने वाले गवाह हैं। देश में मानवाधिकार रक्षा के लिए बने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका को भी देख चुके हैं कि किस तरह उसने हमारे मासूमों जो बाटला हाउस में मारे गए पर फर्जी जांच रिपोर्ट पेश कर एनकाउंटर के नाम पर सत्ता द्वारा ठंडे दिमाग की की गई हत्या को जायज ठहराया। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट तक को झूठे तर्को के आधार पर लंबे समय तक छुपाया गया। इस दहशत और आतंक के माहौल में पिछले दो सालों से हमारे दर्जनों लड़के लापता हैं और एक आशंका लगातार बनी रहती है कि अगला नंबर किसका है।

इन साझा अनुभवों ने हमारे सामने स्पष्ट कर दिया है कि अब इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त की जा चुकी है। जिसके सबसे ज्यादा शिकार समाज के सबसे दबे-कुचले समूह और उनके सवाल उठाने वाले लोग हो रहे हैं। इस सिलसिले में सबसे अधिक दुखद न्यायालय के राजनीतिक दुरुपयोग है। जिसने देश के अंदर राज्य प्रायोजित आतंकवाद को वैधता देने के लिए यहां तक तर्क दिए हैं कि अगर फर्जी एनकाउंटरों पर न्यायिक जांच होगी तो पुलिस का मनोबल टूट जाएगा। यानी न्यायपालिका अब खुद ही भारत को एक लोकतांत्रिक देश से सैन्य राष्ट् में तब्दील करने की फासिस्ट मुहीम की अगुवाई करने लगी है। अयोध्या मुद्दे पर तथ्यों के बजाय धर्मोन्मादी आस्था के आधार पर फैसला हो या बाटला हाउस एनकाउंटर पर जांच की मांग से इसकी पुष्टि होती है कि यह फासीवाद सिर्फ चुनावी रास्ते से नहीं बल्कि कानूनी रास्ते से स्थापित किया जा रहा है।
     
ऐसे में हम आजमगढ के लोग जिन्होंने बाटला हाउस और उसके बाद हुए विभिन्न कथित आंतकवादी वारदातों अपने लोगों और अपने शहर के प्रति सरकार, नौकरशाही और न्यायपालिका के फासीवादी व्यवहार को देखा है, आज इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि लोकतंत्र में न्याय की पूरी अवधारणा पर ही नए सिरे से बहस जरुरी हो जाती है। इसलिए लंबे समय से राज्य प्रायोजित मानवाधिकार हनन का केंद्र बन चुके आजमगढ़ में हम पूरे देश में चल रहे मानवाधिकार हनन और उसमें न्यायपालिका के राजनीतिक राष्ट्रीय इस्तेमाल पर एक राष्ट्रीय जनसम्मेलन आयोजित कर रहे हैं। इस महत्वपूर्ण आयोजन में हम आपसे शामिल हाने का आग्रह करते हैं।


संपर्क सूत्र- मसीहुद्दीन संजरी (09455571488), शाहनवाज आलम (09415254919), राजीव यादव (09452800752), तारिक शफीक (09454291958), रवि शेखर (09369444528), विनोद यादव (09450476417)

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

bahut ajha kam kar rahe hai aap