सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

भारत के खिलाफ आग उगल रहे माओवादी


अनिर्बन राय / समनवय डेस्क
काठमांडू, २ फरवरी


माओवादियों को नेपाल की सत्ता पर काबिज हुए छह माह हो चुके हैं, लेकिन उन्होंने भारत के खिलाफ अपना ‘जिहाद’ छोड़ा नहीं है। इसकी एक नजीर तब देखने को मिली जब वरिष्ठ माओवादी नेता मोहन वैद्य ने आरोप लगाया कि भारत नेपाल को तोड़ने की साजिश रच रहा है। उन्होंने कहा कि भारत के इस नापाक इरादे को नेपाल बिल्कुल भी सफल नहीं होने देगा।


वैद्य ने कहा कि भोजपुरी और मैथिली बोलने वाले मधेशियों को हथियार बनाकर नेपाल को विखंडित करने की कोशिशें हो रही हैं। इसके लिए देश की दक्षिणी सीमा के तराई क्षेत्र में राष्ट्रविरोधी तत्वों को हवा दी जा रही है। उन्होंने कहा कि यूपी और बिहार से लगे सीमावर्ती जिलों में दो साल से भारी अशांति छाई हुई है और मैथिल व भोजपुरिया लोग अपने लिए आत्मनिर्णय की मांग कर रहे हैं। यही नहीं, मधेशियों का एक हथियारबंद गुट तो अलग राज्य की मांग को लेकर भूमिगत संघर्ष छेड़े हुए है। माओवादी नेता ने कहा कि हम नेपाल को विछिन्न करने के भारत के इस नापाक इरादे को ध्वस्त करने में जीजान लगा देंगे।


गौरतलब है कि मोहन वैद्य को वर्ष 2003 में भारत में गिरफ्तार कर तीन साल के लिए पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी जेल में रखा गया था। उनका भारत विरोधी रवैया जग जाहिर है। वह पिछले कुछ माह के दौरान तब भी भारत के खिलाफ आग उगलते देखे गए जब खुद उनकी माओवादी सरकार भारत के साथ रिश्तों को सहज करने की कोशिश करती दिखाई दी। माओवादियों ने यहां तक कहा कि उसे भारत-नेपाल मैत्रि संधि-1950 को समाप्त करने की कोई जल्दी नहीं है।


दूसरी ओर भारत सरकार नेपाल के विकास और नेपाली जनता की जरूरतों के अनुरूप वहां की सरकार को अपनी मदद जारी रखे हुए है। सरकार का कहना है कि पड़ोसी मुल्क को सहायता मुहैया कराने के पीछे मकसद यही है कि उसके सामाजिक-आर्थिक विकास में हाथ बंटाया जा सके।


यह जानकारी नई दिल्ली के अफरोज आलम ‘साहिल’ को सूचनाधिकार कानून के तहत विदेश मंत्रालय ने भेजी है। इसमें कहा गया है कि भारत सरकार की ओर से दी जाने वाली सहायता राशि का कोई भी हिस्सा नेपाल के किसी गैर-सरकारी संगठन अथवा व्यक्ति विशेष को नहीं दिया जा रहा है।


विदेश मंत्रालय द्वारा दी गई सूचना के मुताबिक, वर्ष 1998-99 में नेपाल को जहां 64.37 करोड़ की सहायता राशि मुहैया कराई गई, वहीं वर्ष 2007-08 में यह 100.46 करोड़ पहुंच गई है। बीच के वर्षों में इस मद में उतार-चढ़ाव का क्रम जारी रहा।


मसलन, वर्ष 1999-2000 में यह 42.39 करोड़ थी जबकि वर्ष 2001-2002 में घटकर 39.53 करोड़ रह गई। वर्ष 2002-03 से पुनः इसे बढ़ाते हुए 45.93 करोड़ कर दिया गया। तब से इसमें निरंतर इजाफा हुआ है। वर्ष 2006-07 में यह सर्वाधिक यानी 186.40 करोड़ थी।

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