मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

भारत-नेपाल

विगत दशक में भारत ने नेपाल को दिये 7 अरब अनुदानः

क्या यह वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंचा भी?
भारत नेपाल को अपना निकटतम पड़ोसी ही नहीं, बल्कि सहोदर भाई मानता है। परिणामस्वरुप भारत की हमेशा पहल रही है कि नेपाल के आर्थिक विकास में ज्यादा से ज्यादा सहायता दी जाय। 1950 की भारत-नेपाल संधि के समय से ही भारत नेपाल की प्रगति के लिए आकाश पाताल एक करता रहा है। अरबों रुपयें अनुदान में दिये हैं। फिर भी नेपाल के प्रबुद्ध नागरिक तथा भारत-नेपाल की आर्थिक सहयोग प्रक्रिया को नजदीक से देखने और जानने वालों का दावा है कि भारत सरकार का नेपाल को मदद देने की पवित्र मंशा के बावजूद नेपाल को दिये गये अकूत धन का कुछ खास लोगों द्वारा बंदर बाॅंट कर लिया जाता रहा है तथा विकास की कागजी खानापूर्ति की जाती रही है। यानि भारतीय दूतावास के निचले स्तर से लेकर शीर्ष पर बैठे पदाधिकारी नेपाली सरकारी एवं गैर सरकारी दलालों से सांठ गाठ कर भारत द्वारा प्रदत राशि को ड़कारते रहे हैं।

भारतीय राजनयिकों के बारे में काठमांडू स्थित एक भारतीय पत्रकार कहते हैं कि इनको अपने तीन साल के कार्यकाल में तीन स्तरों से गुजरना पड़ता हैं: पहला वर्ष लर्न यानि सीखना, दूसरा वर्ष अर्न यानि कमाना तथा तीसरा वर्ष रिटर्न यानि देश वापस हो जाना। इसके अतिरिक्त इन राजनयिकों का कोई कार्य न भारत हित में, न नेपाल की गरीब जनता के हित में होता है। आश्चर्य तो इस बात की है कि भारत द्वारा दी गयी विशाल सहायता राशि का उपयोग विरले ही नेपाल के तराई यानि मधेश क्षेत्र में विकास कार्य सम्पन्न कराने में होता हो।

जानकारों के अनुसार पूरी राशि का करीब 90 प्रतिशत पहाड़ी इलाकों में खर्च करने की दावा की जाती रही है, जबकि भारतीय मूल के नेपाली मधेशियों के लिए बहुत ही कम खर्च किये गये है। इसका कारण कदापि यह नहीं रहा है कि भारतीय राजनयिक पहाड़ी मूल के लोगों की गरीबी से ज्यादा द्रवित होते रहे हैं,बल्कि यह कि पहाड़ों में किये गये कागजी कार्यों का सत्यापन असंभंव रहा है, खासकर विगत दश वर्षों में जब वहाॅं माओवादियों का गुरिल्ला साम्राज्य कायम रहा। परन्तु नेपाल की तराई में किया गया कोई भी कागजी विकास कार्य का आसानी से भंड़ाफोड़ होने का खतरा बना रह सकता है। अतः भारतीय दूतावास में स्थित नेपाल के उद्धारकत्र्ता पहाड़ों के प्रति असीम कृपा प्रदर्शन करते रहे हैं तथा बड़े ही आराम से विकास राशि को बिना ढ़कारे ही ड़कारते रहे हैं।

दिल्ली स्थित तराई तरंग के सम्पादकीय सलाहकार अफरोज आलम ‘साहिल‘ द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1998 से 2008 के बीच भारत ने नेपाल को करीब 700 करोड़ यानि 07 अरब रुपये विकास सहायता राशि मद में दिया है। परन्तु स्मरण रहे कि इस अकूत राशि का विकास कार्यों में खर्च नेपाल सरकार के लोगों द्वारा नहीं किया जाता, वरन भारतीय दूतावास के राजनयिकों के इशारे पर होता है। अतः इन भारतीय विभूतियों को मलाई चाभने का काफी अवसर मिल जाता है। वैसे भी यह राशि अगर नेपाल सरकार के पदाधिकारियों के हाथों में भी जाती तो इसका परिणाम दूसरा कुछ नहीं होता। अतः भारतीय दूतावास के लोग अच्छा ही करते हैं कि भारत का धन किसी तरह से पुनः भारत वापस ले आते हैं।

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