गुरुवार, 26 जनवरी 2012

मैं ख्वाब में भी जामिया को बदनाम नहीं कर सकता...

कई दिनों से खुद से ही एक अजीब सी जंग लड़ रहा हूं. हर रोज़ एक सवाल मेरे सामने आता है कि क्या मैं जामिया पर कोई दाग लगा सकता हूं? मेरे लिए होश में ऐसा ख्याल लाना तो दूर की बात है मैं बेहोशी के आलम में भी ऐसा नहीं सोच सकता.
जामिया से मेरा रिश्ता सात जनम का तो नहीं लेकिन सात साल का ज़रूर है. जामिया की तालीम ने ही मेरे ख्यालों को रौशन किया है. यहां की आबो-हवा में ही मेरे जज्बे ने मज़बूती पाई है. मैं जो हूं उसके लिए जामिया का शुक्रगुजार हूं और हमेशा रहूंगा. जामिया ने ही मुझे जीने का मकसद और इंसाफ के लिए लड़ने का हौसला दिया है.
19 सितंबर 2008 को जब बटला हाउस में हुए पुलिस एनकाउंटर में जामिया के छात्रों की मौत और कई गिरफ्तारियां हुईं तो उसके बाद जामिया कई सवालों के घेरे में आ गई, तब मैंने जामिया पर लगे दागों को धोने को अपनी जिंदगी का मक़सद बना लिया. मैं उस वक्त पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था. मैंने एक सवाल खुद से किया कि अगर मैं इंसाफ के लिए आज आवाज़ नहीं उठा सकता तो कल किसी भी मामले पर लिखने कैसे बैठ सकता हूं? 
जामिया पर गहरे दाग़ लगे थे. अख़बारों की सुर्खियां जामिया के छात्रों को आतंकी बता रही थी. बटला हाउस का सच ही जामिया पर लगे दागों को धो सकता था और मैंने अपना सबकुछ बटला हाउस एनकाउंटर का सच सामने लाने में लगा दिया. इसलिए नहीं कि मारे गए या गिरफ्तार हुए छात्र मेरे क़रीबी थे या उनसे मेरा कोई भी रिश्ता था, हादसे से पहले मैं उनके नाम तक से वाकिफ़ नहीं था,  बल्कि सिर्फ इसलिए क्योंकि वो जामिया के छात्र थे.
ये जिक्र करना ज़रूरी नहीं है कि बटला हाउस मामले के सच को सामने लाने के लिए मैंने क्या-क्या किया है लेकिन ये जिक्र करना ज़रूरी है कि मैंने ऐसा क्यों किया है. सत्य, अहिंसा, आपसी सौहार्द और देश प्रेम जैसे लोकतांत्रिक मूल्य जामिया में पढ़ाई के दौरान ही मैंने खुद में विकसित किए. यहां की तालीम ने ही मुझे हक़ के लिए लड़ना सिखाया. मैंने जामिया में जो कुछ भी किताबों में पढ़ा उसे अपने चरित्र का हिस्सा बना लिया.
मैं बटला हाउस एनकाउंटर के सच को सामने लाने की लड़ाई इसलिए लड़ रहा हूं क्योंकि मैं उन सवालों का जवाब चाहता हूं जो अक्सर मुझे बैचेन करते हैं. क्योंकि मैं जानना चाहता हूं कि मेरे हमवतनों को किन से ज्यादा ख़तरा है. यह हक़ की लड़ाई है, यह जिंदगी की लड़ाई है. अगर बटला हाउस एनकाउंटर सही साबित हुआ तब भी मुझे सुकून मिलेगा क्योंकि इससे हमारी सरकार और सुरक्षाबलों में मेरा विश्वास और भी ज्यादा बढ़ जाएगा.  और अगर यह फर्जी साबित हुआ तो देश की जनता को पता चल जाएगा कि किन से उन्हें ज्यादा ख़तरा है. मैं तब तक यह लड़ाई लड़ता रहूंगा जब तक सच को जानने की बैचेनी मुझमें रहेगी. और मैं यह मानता हूं कि लोकतंत्र में मुझे सच जानने का उतना ही अधिकार है जितना की खुली हवा में आजादी से सांस लेने का. 
मैं बटला हाउस के लिए हर मंच से तब तक आवाज़ उठाता रहूंगा जब तक सच सामने नहीं आएगा. हाल ही मैं एनडीटीवी इंडिया में हुई एक बहस में दिए गए मेरे एक बयान पर मेरी खुद की जामिया ने मुझे जामिया को बदनाम करने का कानूनी नोटिस भेजा है. मेरे लिए यह बहुत दुख की बात है कि जिस संस्थान पर लगे दागों को धोने के लिए मैंने जिंदगी के तीन साल लगा दिए वो ही मेरे इरादों पर शक करता है. हो सकता है कि कानूनी रूप से मेरा बयान गलत हो लेकिन मेरा इरादा कभी भी जामिया को बदनाम करने का नहीं था. यदि फिर भी जामिया को लगता है कि मैंने जान-बूझकर यह बयान दिया तो मुझे इस बात का अफ़सोस है और मैं बिना किसी शर्त के अपना बयान वापस लेता हूं.
जिन सिद्धांतो और मूल्यों पर जामिया की बुनियाद है, मैं भी उन्हीं पर खड़ा हूं. मैं एक बार फिर दोहराता हूं कि मैं ऐसा कुछ भी न कर सकता हूं और न करूंगा जिससे जामिया पर कोई धब्बा लगे. 
                                                        अफ़रोज़ आलम साहिल

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