मंगलवार, 13 जनवरी 2009

वे क्रुर कैसे हो सकते हैं......

आशुतोष कुमार सिंह

यह देश है वीर जवानों का, अलबेलों का, मस्तानों का, इस देश का यारो क्या कहना....... यह देश है सोने का गहना......

जी! सही समझा आपने। मैं भी यही कहना चाहता हूं कि इस देश का यारों क्या कहना।
महान देश के महान नागरिक हैं हम। इस देश को गावों का देश कहा जाता है। बचपन से हम यह सुनते आए हैं कि हमारा देश कृषी प्रधान देश है। वर्तमान समय में भी बङे-बङे सेमीनारों में यह सुनने को मिल जाता है कि देश की 70 फीसद जनता का जीविकापार्जन कृषी पर निर्भर करता है। हमारी जो सरकार है, वह इन्हीं कृषकों की इस लोकतंकत्र में ऩौकरी कर रही है। चौकाने वाली बात यह है कि नौकर अब नौकर नहीं रहें, खुद को मालिक समझ बैठे हैं। और असल मालिकों को मौत के मुंह में मजबूरन जाने के लिए माहौल बनाने में जुटे हैं।
दुखद पहलू यह है कि आज लोकतंत्र की नौकरी कर रहे ये नौकर गत् 11 सालों में देश में ऐसे हालात पैदा किए हैं कि देश के मालिक अन्नदाताओं को मजबूरन आत्महत्याएं करनी पङी है। सन् 1997 से 2007 तक के आंकङे बताते है कि इस सोने के गहने वाले देश में 1 लाख 82 हज़ार 936 किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई जिस राज्य में है, वहां सबसे ज़्यादा किसानों ने आत्महत्याएं की है। यह संख्या 40 हज़ार से ऊपर है तथा देश में किसानों द्वारा किए गए कुल आत्महत्याओं का 38 फीसद है।

अगर 2007 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकङों को देखे तो पूरे देश में 16 हज़ार 632 किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। आंकङों में जो बातें कही जा रही हैं, वह तो समस्या का एक सिम्बोलिक प्रमाण मात्र है। हकीकत की दुनिया में तो देश के मालिकों द्वारा आत्महत्या करने की कहानी तो और भी दर्दनाक है।

कमबख्त भूख न लगती तो कितना अच्छा होता। मेरे दोस्त ने मुझसे कहा। कुछ देर सोचने के बाद मैंने जवाब दिया कि बिल्कुल सही, साली यह भूख न होती तो हमारे लाखों अन्नदाता आत्महत्याएं नहीं करते।

मेरे मन में एक विचार आया...... यह देश है क्रुर अलबेलों का...... इस देश का यारों क्या कहना...... चुप हो जाओ। मेरे अन्दर से आवाज़ आई। मैं सकपकाया। फिर आवाज़ आई। तुम्हें डर नहीं लगता। मैंने पूछा- किससे…? जिन्हें तुम क्रुर कह रहे हो। मैने कहा- नहीं। पुनः धीरे से आवाज़ आई। तम तो मुर्ख हो। मैं भौचक रह गया। अब क्या हुआ। तुमने उन्हें, जिन्होने 10 वर्षों में 2 लाख किसानों का आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया है। वे सिर्फ और सिर्फ क्रुर कैसे हो सकते हैं। वे और भी बहुत कुछ हैं।

एक नज़र
वर्ष 2008 में किसानों की आत्महत्याएं

महाराष्ट्र ५७३

कर्नाटक १५२

गुजरात १२४

आंध्र प्रदेश 112

पिछले दिनों नागपुर अधिवेशन के दौरान 16 किसानों ने आत्महत्या कर ली। उसके बावजूद किसानों की आत्महत्या को लेकर राज्य की आघाड़ी सरकार गंभीर नहीं है।

0 टिप्पणियाँ: