शनिवार, 3 जुलाई 2010

आज़ाद के परिवार को एन्काउंटर का अंदेशा था

आज़ाद के परिवार को एन्काउंटर का अंदेशा थाआंध्र प्रदेश पुलिस भले ही यह दावा कर रही हो कि नक्सली नेता आज़ाद की मौत पुलिस मुठभेड़ में हुई है लेकिन पुलिस के इस बयान पर शक करने के लिए परिवार और बाकी लोगों के पास पर्याप्त कारण भी हैं।
पाणिनि आनंद
विशेष संवाददाता

आज़ाद के परिवार को सरकार और पुलिस की नीयत पर पहले से ही शक था।
शायद इसी वजह से आज़ाद की माँ ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को कुछ महीने पहले ही एक पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि उनके बेटे यानी नक्सली नेता आज़ाद को पुलिस के हाथों फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मारे जाने से रोका जाए।

आज़ाद की मां ने इसी वर्ष 20 मार्च को अपने एक पत्र में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन को लिखित अनुरोध किया था कि उनके बेटे को पुलिस का निशाना बनने से बचाया जाए।

सूचना का अधिकार क़ानून के तहत सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कार्यालय से लिए गए इस पत्र में नक्सली नेता चेरुकुरी राजकुमार उर्फ़ आज़ाद की 75 वर्षीय माँ ने लिखा है, “जब भी लोगों को बिना न्यायालय में पेश किए हुए या बिना घोषणा किए हुए हिरासत में लिया जाता है, उनकी एन्काउंटर के नाम पर हत्या कर दी जाती है। मैं अपने बेटे की सुरक्षा और जीवन के बारे में बहुत चिंतित हूँ।”

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पत्र के जवाब में कोई कार्यवाही करने से मना कर दिया था क्योंकि आज़ाद की मां चेरुकुरी करुणा ने मुसारामबाग, हैदराबाद के पते से भेजे इस पत्र को बिना हस्ताक्षर किए हुए मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा था।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस पत्र पर की गई टिप्पणी में लिखा है कि अपीलकर्ता का पत्र किसी जनहित याचिका के दायरे में नहीं आता और न ही इस पत्र पर अपीलकर्ता के हस्ताक्षर हैं इसलिए इसपर कोई कार्यवाही नहीं हो सकती।

पर इस पत्राचार के तीन महीने, 10 दिन बाद ही पुलिस मुठभेड़ में शीर्ष नक्सली नेता आज़ाद की मौत हो गई। आंध्र प्रदेश मे शुक्रवार तड़के पुलिस के साथ मुठभेड़ में जिन दो नक्सलियों के मारे जाने की जानकारी मिली थी, उनमें से एक चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद भाकपा (माओवादी) की केंद्रीय समिति के सदस्य एवं प्रवक्ता थे।
दूसरे मारे गए नक्सली की पहचान हेमचंद्र पांडे उर्फ़ हेमंत पांडे के रूप में की गई है। आज़ाद के बारे में बताया जाता है कि वो पार्टी में ऊपर से तीसरे नंबर के नेता थे।

जहाँ एक ओर पुलिस ने नक्सली नेता आज़ाद की एन्काउंटर में हुई मौत को नक्सली आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका बताया है, वहीं दूसरी ओर कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और नक्सलवाद समर्थक लोगों का दावा है कि पुलिस इस घटना से जुड़े तथ्य छुपा रही है।उनका दावा है कि इन नेताओं को हिरासत में लेकर फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मारा गया है।

उधर राजधानी दिल्ली में शनिवार की शाम मारे गए दूसरे नक्सली व्यक्ति हेमचंद्र पांडे की पत्नी बबिता ने पत्रकार वार्ता कर पुलिस पर सीधा आरोप लगाया है कि उनके पति की फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हत्या की गई है।
प्रेस क्लब में पत्रकारों से बातचीत करते हुए बबिता ने कहा कि उनके पति एक स्वतंत्र पत्रकार थे जिन्हें पुलिस ने फ़र्जी मुठभेड़ में मार दिया है. वो इसके खिलाफ़ मुक़दमा लड़ेंगी और दोषियों को सज़ा दिलाएंगी।

बबिता ने बताया कि उनके पति किसी ख़बर के सिलसिले में नागपुर गए थे और 30 जून तक उनसे बबिता का फोन संपर्क बना रहा लेकिन 30 जून के बाद से दोनों की कोई बातचीत नहीं हो सकी थी और उनके फोन पर संपर्क की कोशिशें बेकार जा रही थीं।
नैनीताल समाचार नाम के समाचारपत्र के संपादक राजीव लोचन शाह ने इस प्रेस वार्ता में बताया कि बबिता, उनके पति और परिवार के कुछ अन्य सदस्य पेशे से पत्रकार हैं। पत्रकार हेमचंद्र उर्फ़ हेमंत पांडे की फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हत्या की उन्होंने भर्त्सना की।

बबिता ने इस मामले में अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर अंदेशा जताया है।

नक्सली नेता आज़ाद की मां का तीन महीने पहले लिखा पत्र और अब मुठभेड़ में नक्सली नेता के मारे जाने के बाद दूसरे मृतक व्यक्ति की पत्नी की ओर से मुठभेड़ की सत्यता पर उठाई जा रही उंगली से आंध्र प्रदेश पुलिस को परेशान होना पड़ सकता है।

कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और नक्सलवादी आंदोलन के समर्थकों का कहना है कि जहाँ एक ओर प्रधानमंत्री बातचीत के ज़रिए समस्या के समाधान की बात कह रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पुलिस फर्जी मुठभेड़ के चलते ऐसी किसी गुंजाइश को और कमतर, कमज़ोर करती जा रही है।

वहीं सूचना का अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट से आज़ाद की मां का पत्र निकलवाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अफ़रोज़ आलम साहिल मानते हैं कि नक्सलियों का अपराध कम करके आंकने की ज़रूरत नहीं है लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि समाज में अपराध से निपटने के लिए पुलिस महकमा क़ानून का कम, फ़र्ज़ी मुठभेड़ों का ज़्यादा सहारा लेता है।
ऐसे कितने ही मामले हैं जिनमें पुलिस मुठभेड़ का खाका लोगों के सामने रखती है लेकिन सच्चाई पुलिस के हाथों हत्या की होती है। 

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2 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

एक माओवादी के मरने से इतना दुख 1 तब कहा थी उसकी मा जब माओवादियो स्कुलो को बम से उङा देते हैँ लोगो को जान से मार देते है



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बेनामी ने कहा…

जैसे हमारे देश में कुछ दिनों पहले साम्प्रदायिकता का बीज बोया गया था वैसे ही अब माओवाद का बीज बोया जा रहा है
अब देखिये इस पौधे को पनपाने के लिए कितने सिरों की खाद डाली जायेगी
और माओवाद एक समस्या हो जायेगा.