मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

वर्तमान बिहार चुनाव: लोकतंत्र की अग्नि परीक्षा


बिहार चुनाव की तारीख़ें जैस-जैसे नज़दीक आती जा रही है, वर्तमान राजनीति के काले बादल गहराते जा रहे हैं। सिद्धांतविहीन, सत्तालोलुप अवसरवादिता, आचारसंहिता के उल्लंघन का अंतहीन सिलसिला वाद-ए-माशूक़ की तरह राजनीतिक आश्वासन और चुनाव में बाज़ी मारने के सारे आज़मूदा फार्मूले साम, दाम, दंड, भेद का जमकर प्रयोग आदि वर्तमान चुनावी परिदृश्य के विभिन्न पहलू हैं... यही है लोकतंत्र का महापर्व... फिर भी गर्व से हम यह कहते नहीं थकते कि भारत है विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र...

बिहार का गिरता राजनैतिक स्तर और चुनावी परिदृश्य चिंतनीय विषय है। हालांकि बिहार ही वो राज्य है जिसका आरंभ से ही भारतीय राष्ट्रीय राजनीति में केन्द्रीय स्थान रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर आजतक यहां से देश को न केवल बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ मिले हैं, बल्कि राजनीतिक मार्गदर्शन भी मिलता रहा है। दरअसल, यह वही धरती है जहां लोकतंत्र का जन्म हुआ। वैशाली विश्व का पहला लोकतांत्रिक राज्य था। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान राजनीति में अहिंसा का अध्याय यहीं जुड़ा। चम्पारण का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है। स्वतंत्रता के दो दशक बाद जब देश में लोकतंत्र के आधारभूत मूल्यों पर कुठाराघात हुआ तो सम्पूर्ण स्वतंत्रता के लिए क्रांति का बिगुल यहीं फूंका गया। 70 के दशक में जे.पी.मूवमेंट का अभिकेन्द्र बिहार ही था। कैसी विडंबना है कि आज उसी बिहार में वर्तमान राजनीति, सिद्धांत और नैतिक चेतना से खाली होती जा रही है। पग-पग पर लोकतंत्र का मखौल उड़ाया जा रहा है। बिहार की जनता खामोश तमाशाई बनी हुई है। ऐसा लगता है कि जातीय संकीर्णता, तुच्छ व सीमित उद्धेश्य और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के भ्रम जाल ने हमारी चेतना और विवेक का अपहरण कर लिया है।

ऐसी स्थिती में बिहार का यह चुनाव लोकतंत्र के लिए अग्नि परीक्षा की घड़ी है। हमें यह तय करना होगा कि हम लोकतंत्र को मज़बूत देखना चाहते हैं या इसकी ताबूत में एक कील और.... हमें यह भी तय भी तय करना होगा कि लोकतंत्र की राह में बड़े अवरोधक तत्व साम्प्रदायिकता और अपराधिकता को कैसे चुनैती दी जाए। इसके लिए हमारे बुद्धिजीवियों और समाज के भविष्य छात्र समुदाय को जनजागरण के लिए खुलकर सामने आना होगा। यही समय की पुकार है तथा उपयुक्त अवसर और अनुकूल मौसम भी।

अंततः हमारा बिहार-वासियों से यही अनुरोध है कि अपना क़ीमती वोट किसी भी नेता को देने से पहले यह शपथ ले लें कि हम अपना क़ीमती वोट दे रहे हैं तो ज़रूरत पड़ने पर हिसाब भी लेंगे, क्योंकि आपके पास सूचना का अधिकार जो मौजूद है।
The Witmark Demos: 1962-1964 (The Bootleg Series Vol. 9)

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