शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

नीतीश की परी कथा का सच

विकास की नीतीश कथा बांचते हुए बिहार के मुख्यमंत्री प्रचार की भाषा में केवल उन बातों को शामिल करते चल रहे हैं जिनसे शुद्ध रूप से उनका ही मतलब सधता है। जिस विकास की गंगा से राज्य को सींचने का दावा नीतीश कुमार कर रहे हैं, उसमें केन्द्र का पानी कितना है और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का कितना?  यह जानना दिलचस्प होगा।

यह सरकारी सच है कि नीतीश कुमार को विकास और योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए  राज्य में पिछली सरकारों से ज़्यादा केन्द्र से पैसा मिला है। सूचना का अधिकार कानून के तहत  सामाजिक कार्यकर्ता अफरोज आलम साहिल ने पिछले कुछ वर्षों में केन्द्र सरकार से राज्य सरकार को मिली आर्थिक मदद की जानकारियां जुटाई हैं।

सरकारी कागज़ों में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शासनकाल में वर्ष 2003-04 में राज्य सरकार को 1617.62 करोड़ रूपये मिले थे। इसके बाद सरकार बदली और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए-1 फिर यूपीए-2 आई। यूपीए सरकार ने वर्ष 2005-06 में 3332.72 करोड़ रूपये दिए। यह राशि एनडीए के समय के अनुदान से दोगुनी थी। वित्तीय वर्ष 2006-07 में 5247.10 करोड़, वर्ष 2007-08 में 5831.66 करोड़ और फिर वित्तीय वर्ष 2008-09 के लिए केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार को 7962 करोड़ रूपये का अनुदान दिया है। यहां स्पष्ट कर दें कि यह सहायता राशि ही है और इसमें राज्य सरकार को केन्द्र सरकार से मिलने वाला कर्ज या अग्रिम अनुदान शामिल नहीं है।

इतना ही नहीं, बिहार सरकार को विश्वबैंक से मिल रहे अनुदान में भी कई गुना की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2006-07 में विश्वबैंक से 92 लाख मिले। इसमें से 60 लाख लाख खर्च भी हुए। वर्ष 2007-08 में यह राशि बढ़कर 464 करोड़ हो गई। खर्च सिर्फ छह करोड़ रूपये ही हुए।

वर्ष 2008-09 में 18 करोड़, वर्ष 2009-10 में 552 करोड़ रूपये और इस वित्तीय वर्ष में 15 अगस्त, 2010 तक नीतीश सरकार को विश्वबैंक 74 करोड़ दे चुका है। जनकल्याण तो जो हुआ प्रचार में नीतीश सरकार तत्पर दिखी। और वैसे भी नीतीश मीडिया और प्रचार तंत्रों के दोहन की कला में माहिर है। इतनी माहिर कि योजना मद में दिए जा रहे विज्ञापनों से कहीं ज़्यादा पैसा गैर-योजना मद के विज्ञापन पर बिहार सरकार ने खर्च कर दिए हैं। सिर्फ वर्ष 2009-10 में नीतीश सरकार ने योजना मद में विज्ञापनों पर 1.69 करोड़ रूपये खर्च किए, वहीं गैर-योजना मद में यह राशि 32.90 करोड़ है। इस वित्तीय वर्ष यानी 2010-11 के शुरूआती तीन महीनों में ही यानी चुनाव से ठीक पहले राज्य सरकार समेकित रूप से 7.19 करोड़ विज्ञापनों पर खर्च कर चुकी है।

लेखक: निर्गुन   (आउटलुक, नवम्बर अंक से साभार) 
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2 टिप्पणियाँ:

एक बिहारी ने कहा…

नितीश कुमार का भंडा फूट चूका है. वो एक शातिर *^@%*/# है . उसे हराना मतलब बिहार से अंग्रेजी और जुल्मी सरकार को बिदाई देना है. लालू पर हम ये इलज़ाम तो लगा सकते हैं की वो विकास के कार्यों के प्रति थोड़े लापरवाह थे. परन्तु वो नितीश कुमार की तरह जनता की गर्दन पर छुरी नहीं चलाते थे. नितीश कुमार ने ना सिर्फ लोकतंत्र का वरन कानून का भी जम कर दुरुपयोग किया है.

मंगेश पाण्डेय ने कहा…

पुरे बिहार में कहीं भी इ-किसान भवन का निर्माण नहीं किया गया है. सारे के सारे पैसे नितीश कुमार और उसके चमचों के पेट में चला गया है.