आजमगढ़-उत्तरप्रदेश: इसे व्यवस्था का नाकारापन कहें या राजनीतिक नेताओं की विश्वसनीयता का संकट, लेकिन एक चीज साफ होती जा रही है कि आम आदमी अब अपने हक की लड़ाई खुद ही लड़ने के मूड में है। इसके लिए उसे सूचना के अधिकार के रूप में एक कारगर हथियार भी मिल गया है। इस हथियार की ताकत को वर्तमान व्यवस्था के पैरोकार बखूबी समझते हैं। यही कारण है कि वे एक ओर जहां इस हथियार को भोथरा और निष्प्रभावी बनाना चाहते हैं, वहीं सूचना मांगने वालों को प्रताड़ित करने की भी हर मुमकिन कोशिश की जाती है।
सूचना मांगने वालों को प्रताड़ित करने की घटनाएं अब आम हो चुकी हैं। पिछले साल 26 दिसंबर को आजमगढ़ जिले के मार्टिनगंज ब्लाक स्थित ग्रामसभा देहदुआर-कैथौली में दो ग्रामीणों को केवल इसलिए जेल में ठूंस दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने गांव में आ रहे पैसे का सूचना के अधिकार के तहत हिसाब-किताब मांगा था। उनपर आरोप लगाया गया कि उनकी संस्था पंजीकृत नहीं है। इंद्रसेन सिंह और अंशुधर सिंह नामक जिन दो ग्रामीणों ने अपने गांव में आ रहे पैसे का हिसाब मांगा था, वे दो महीने जेल में बिताने के बाद तब बाहर आ सके जब उच्च न्यायालय ने उन्हें जमानत दी। प्रशासन ने उन्हें जमानत दिए जाने का जिला न्यायालय और उच्च न्यायालय में भरपूर विरोध किया। यद्यपि दोनों ग्रामीण जेल से बाहर हैं, लेकिन उनके खिलाफ अभी भी मुकद्दमा चल रहा है। जिस सूचना के लिए यह सब हुआ, वह सूचना भी उन्हें नहीं मिली। हालात यह है कि एक ओर उन्हें अपने मुकद्दमें की पैरवी के लिए अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं तो दूसरी ओर सूचना हासिल करने के लिए लखनऊ में सूचना आयोग की परिक्रमा करनी पड़ रही है।
जब सूचना मांगने वाले ग्रामीणों को जेल भेजा गया तो इसकी मीडिया में उस समय खूब चर्चा हुयी। इसी का प्रभाव था कि तत्कालीन जिलाधिकारी विकास गोठलवाल को गांव में हुए विकास कार्यों की बी.डी.ओ. से जांच करवानी पड़ी। बी.डी.ओ ने अपनी जांच में ग्राम प्रधान सहित कुछ अन्य अधिकारियों को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के 77,307 रुपए के गबन का दोषी पाया और आवश्यक कार्रवायी हेतु अपनी रिपोर्ट (पत्रांक संख्या 539 शि.लि.पं./जांच/देहदुआर/07-08 दिनांक 04.02.2008) जिलाधिकारी को सौंप दी। इसी बीच पूर्व जिलाधिकारी का तबादला हो गया। वर्तमान जिलाधिकारी से ग्रामीणों ने कई बार मिलकर बी.डी.ओ. की जांच रिपोर्ट पर कार्रवायी करने का निवेदन किया, लेकिन उन्होंने आरोपियों के खिलाफ कुछ भी करने से मना कर दिया। यह घोर आश्चर्य का विषय है कि प्रशासन ने एक ओर तो दो ग्रामीणों को केवल इसलिए जेल भेज दिया क्योंकि वे एक ऐसी संस्था के तहत गांव के विकास कार्यों की जानकारी मांग रहे थे, जो पंजीकृत नहीं है। वहीं दूसरी ओर उसी गांव के ग्राम प्रधान और अन्य पंचायत कर्मियों को गबन करने का दोषी पाए जाने के के पांच महीने बाद भी कोई कार्रवायी नहीं की गयी।
ग्रामीणों ने जिलाधिकारी पर आवश्यक कार्रवायी के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से जब बसपा के स्थानीय नेताओं से संपर्क किया तो उन्हें एक और कड़वी सच्चाई मालूम हुयी। पता चला कि मायावती के एक अत्यंत निकट सहयोगी जो पड़ोस के बड़गहन गांव के रहने वाले हैं और सरकार में एक जिम्मेदार पद पर आसीन हैं, वो खुद आरोपियों को संरक्षण दे रहे हैं। यहां यह बताना आवश्यक है कि आरोपी ग्रामप्रधान और उसके परिवार के लोग समाजवादी पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बसपा और सपा के बीच दुश्मनी की खबरों के बीच ऐसे तथ्य जमीनी स्तर पर एक अलग ही तस्वीर पेश करते हैं।
हालांकि मौजूदा व्यवस्था में अपनी समस्याओं का हल ढूंढने की ग्रामीणों की हर कोशिश अभी तक बेकार ही साबित हुयी है। फिर भी उनका हौसला नहीं टूटा है। सूचना मांगने के जुर्म में दो महीने जेल काट चुके इंद्रसेन सिंह अब अपनी लड़ाई को एक गांव तक सीमित नहीं रखना चाहते। वे इसे पूरे जिले में फैलाना चाहते हैं। उनका प्रयास है कि हर गांव से लोग अपने गांव के पैसे का हिसाब किताब मांगें। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर आसपास के गांव वालों को जागरूक करना शुरू कर दिया है। आजमगढ़ शहर, लखनऊ और दिल्ली में काम कर रहे विभिन्न संगठनों से भी संपर्क साधा गया है। परिवर्तन संस्था के अरविंद केजरीवाल, जिन्हें हाल ही में मैग्सैसे पुरस्कार मिला है, उनसे मिलने के लिए वो अपने साथियों के साथ दिल्ली आए। यहां के.एन. गोविन्दाचार्य सहित कई अन्य वरिष्ठ लोगों से भी उनकी मुलाकात हुयी। आजमगढ़ और लखनऊ में भारत रक्षक दल जैसे कई संगठन उनकी मुहिम में शामिल हो चुके हैं।
ग्रामीणों की कोशिश है एक साझा मंच बनाने की। एक ऐसा मंच जो व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को जंतर-मंतर पर लड़ने की बजाय गांव-देहात में लोगों को साथ लेकर लड़े। वो चाहते हैं कि गांव वालों को यह बताया जाए कि समस्याओं के समाधान के लिए अधिकारियों और नेताओं की चिरौरी करने की बजाय उनकी आंखों में आंख डालकर सवाल पूछने की जरूरत है। इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए आजमगढ़ जिले में सूचना के अधिकार को लेकर एक अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान का पहला मकसद है जनता के बीच नौकरशाही के खौफ को कम करना। इसके लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है कि वे नौकरशाही के मुखिया यानि जिलाधिकारी से सीधे सवाल पूछें और उनसे काम का ब्यौरा मांगें।
अभियान की शुरुआत करते हुए दिनांक 13 अगस्त, 2008 को आजमगढ़ के कुछ प्रबुध्द नागरिकों और दिल्ली के कुछ पत्रकारों ने जिलाधिकारी से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सवाल पूछा है कि पिछले चार महीनों में जिलाधिकारी को जनता की ओर से कुल कितने आवेदन प्राप्त हुए? इसी के साथ पूछा गया है कि आवेदन किसकी ओर से और कब दिया गया? आवेदन में क्या मांग की गयी? आवेदन पर जांच करने की जिम्मेदारी किस अधिकारी को और कब दी गयी? अंत में जिलाधिकारी से प्रत्येक आवेदन पर की गयी कार्रवायी का संक्षिप्त विवरण मांगा गया है। इसी तरह जिलाधिकारी को प्राप्त शिकायती पत्रों के बारे में भी जानकारी मांगी गयी है। जिलाधिकारी से सवाल पूछने का यह सिलसिला 29 अगस्त, 2008 तक चलेगा।
आजमगढ़ के कोने-कोने से लोग सूचना के अधिकार के तहत यही सूचना जिलाधिकारी से मांग रहे हैं। सूचना के अधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे देश भर के कार्यकर्ताओं ने भी इस अभियान को अपना समर्थन दिया है। 29 अगस्त को श्री अरविन्द केजरीवाल एवं रामबहादुर राय सहित देश भर के कई सामाजिक कार्यकर्ता जिला मुख्यालय में जाकर जिलाधिकारी से वही सवाल पूछेंगे जो सवाल जिले की जनता जिलाधिकारी से इन दिनों पूछ रही है। इससे पहले 28 अगस्त को ये लोग जिले के मार्टिनगंज ब्लाक में भी जाएंगे सूचना के अधिकार के लिए संघर्षरत मार्टिनगंज के कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए उन्हीं के क्षेत्र में एक जनसभा आयोजित की जा रही है।
सूचना मांगने की जो मुहिम आजमगढ़ में शुरू हुयी है, उससे एक ओर जहां जनता में उत्साह है, वहीं भ्रष्टाचारी तत्वों में बेचैनी भी साफ दिखायी दे रही है। वे इस अभियान को रोकने लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। भय, प्रलोभन और राजनीतिक दबाव जैसे सारे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। जिले के भ्रष्टाचारी तत्वों और जागरूक जनता के बीच की लड़ाई बड़े नाजुक दौर में है। जिस प्रकार भ्रष्टाचारी तत्व लामबंद हो रहे हैं, उसे देखते हुए जनता के हक की लड़ाई लड़ने वाले भी इकट्ठा हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि आजमगढ़ में इस व्यवस्था को सुधारने का एक नया प्रयोग शुरू हो चुका है।
विमल कुमार सिंह
संपादक : भारतीय पक्ष-मासिक पत्रिका
(अभियान के समन्वय का दायित्व)
मोबाइल - 9868303585
ईमेल : vimal.mymail@gmail.com
शनिवार, 23 अगस्त 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
3 टिप्पणियाँ:
लेख पढ़कर अच्छा लगा। जन्माष्टमी की बहुत बहुत वधाई!
प्रशासन की यह कार्रवायी उसकी हताशा को दर्शाती है। प्रशासन में बैठे लोग नहीं चाहते कि जनता उनसे सवाल पूछे। लेकिन वो भूल जाते हैं कि वे जनता के अधिकार को जितना दबाएंगे, लोगों में उसका उपयोग करने की इच्छा उतनी ही बलवती होती जाएगी।
AB JANATAA JAAG GAII HAI> JAAGANAA HII PADEGAA.
aapke lekh ke madhyam se jana ki suchna ke liye sanghars abhi tak chal raha hai
badhai ke patr hain wolog jo ab tak sangharsh kar rahe hain, mansik roop se main unke sath hun
एक टिप्पणी भेजें