शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना


अफरोज आलम ‘साहिल’


खबर है कि केन्द्र सरकार के ढाई करोड़ की राशि से वंचित होने के बाद भी वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना कार्यालय (वाल्मीकीनगर, बिहार) की ओर से वर्ष 2009-10 के लिए नया वार्षिक योजना बनाने की कवायद तेज कर दी गयी है। सूत्रों की मानें वार्षिक योजना पर अंतिम रिपोर्ट अप्रैल माह के अंत तक तैयार कर दिया जायेगा। लगभग 900 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत इस परियोजना क्षेत्र का विकास एवं प्रबंधन वार्षिक योजना की राशि से पूरा किया जाता है। समय पर इस राशि के नहीं मिलने से बाघों की सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ता है।




स्पष्ट रहे कि वर्ष 2008-09 में वार्षिक योजना के रूप में केन्द्र सरकार ने कुल ढ़ाई करोड़ रुपये की स्वीकृति दी थी। यह स्वीकृति जुलाई माह में मिली, लेकिन बिहार सरकार के लापरवाही के चलते समय पर वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना को यह राशि नहीं मिल सकी। इससे जहां एक ओर इतनी बड़ी राशि से टाईगर प्रोजेक्ट को हाथ धोना पड़ा है, तो दूसरी ओर यहां के वनों की सुरक्षा एवं वन प्राणियों के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है। अगर समय रहते राज्य सरकार की ओर से पहल नहीं की जाती है, तो सुबे का एक मात्र टाईगर प्रोजेक्ट कुछ ही दिनों में नष्ट हो सकता है। इतना ही नहीं राज्य सरकार की लापरवाही के वजह से टाईगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन वर्ष 2008-09 के तहत नहीं हो सका है। वनों की सुरक्षा के लिए नियमित गश्ती भी पिछले चार माह से बंद है। जबकि बाघों की सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार के निर्देश पर प्रत्येक टाईगर रिजर्व क्षेत्र में टाईगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन किया जाना है।



आश्चर्य की बात तो यह है कि मानदेय की राशि नहीं मिलने से सुरक्षा के लिए लगाये गये पांच भूतपूर्व सैनिक नौकरी छोड़ दिये। अब दस भूतपूर्व सैनिक ही अपनी सेवा दे रहे हैं। इधर डीएफओ एस. चन्द्रशेखर की माने, तो भूतपूर्व सैनिकों के मानदेय के भुगतान के लिए गैर योजना मद से चार लाख रुपये दिये गये हैं। इससे उनके एक वर्ष में से मात्र आठ माह का ही वेतन भुगतान हो पाया है। इसके अलावा अतिरिक्त राशि की मांग राज्य सरकार से की गयी है। स्पष्ट रहे कि टाईगर प्रोजेक्ट में सुरक्षा सहित विभिन्न योजनाओं का संचालित करने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से प्रति वर्ष वार्षिक योजना की राशि दी जाती है। राशि की स्वीकृति के बाद केन्द्र सरकार के नेशनल टाईगर कंजर्वेशन ऑथारिटी एवं बिहार सरकार के बीच मोड ऑफ अंडरस्टैडिंग कराया जाता है। इसके बाद राशि का इस्तेमाल हो सकता है। आश्चर्य तो यह कि केन्द्र सरकार ने वर्ष 2008-09 के लिए जुलाई 08 में दो करोड़ 50 लाख रुपये स्वीकृत की थी, जिसमें प्रथम किस्त के रूप में उसी माह एक करोड़ रुपये वाल्मीकि टाईगर प्रोजेक्ट को दे दिया गया। लेकिन राज्य सरकार की ओर से एमओयू पर दस्तखत नहीं होने के कारण 31 मार्च बीत जाने के बाद भी उस राशि का इस्तेमाल नहीं किया जा सका। प्रथम किस्त की उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं देने के चलते दूसरी किस्त की राशि से भी हाथ धो लेना पड़ा।




ऐसा नहीं है कि यह घटना पहली बार हुआ। इससे पूर्व भी बिहार सरकार इस तरह की लापरवाही लगातार दिखाती रही है। पिछले आठ वर्षों में केन्द्र सरकार द्वारा जारी फंड और बिहार सरकार द्वारा किए गए खर्चों को देखे तो आश्चर्य होगा। वर्ष 2000-01 में केन्द्र सरकार ने 38.7765 लाख रुपये दिए, पर बिहार सरकार ने सिर्फ 17.73454 लाख रुपये ही खर्च किया। वर्ष 2001-02 में केन्द्र सरकार ने 50 लाख रुपये जारी किए, पर बिहार सरकार सिर्फ 3.75 लाख रुपये ही खर्च कर पाई। वर्ष 2002-03 में केन्द्र सरकार ने 39.15 लाख रुपये उपलब्ध कराए, और बिहार सरकार ने इसे पूरा खर्च कर दिया।
वर्ष 2003-04 में केन्द्र सरकार ने 50 लाख रुपये दिए, और बिहार सरकार ने खर्च किया 77.828 लाख रुपये। वर्ष 2004-05 में केन्द्र सरकार ने 85 लाख रुपये दिए, बिहार सरकार ने सिर्फ 42.7079 लाख रुपये ही खर्च किया। वर्ष 2005-06 में केन्द्र सरकार ने कोई फंड उपलब्ध नहीं कराया, लेकिन बिहार सरकार ने 73.2290 लाख रुपये खर्च किए। वर्ष 2006-07 में केन्द्र सरकार ने 63.9554 लाख रुपये दिए, और बिहार सरकार ने 73.8575 लाख रुपये खर्च किया। वर्ष 2007-08 में केन्द्र सरकार ने 92.810 लाख रुपये दिए, और बिहार सरकार ने 66.9436 लाख रुपये खर्च किया।



यह सारे आंकड़े भारत सरकार के पर्यावरण व वन मंत्रालय के नेशनल टाईगर कंजरवेशन ऑथोरिटी से लेखक द्वारा डाले गए आर.टी.आई. के माध्यम से प्राप्त हुए हैं। मंत्रालय ने यह फंड बिहार के वाल्मीकी टाईगर रिजर्व के विकास एवं संरक्षण हेतु उपलब्ध कराए थे।




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