निठारीकांड में फांसी की सज़ा सुनाए जाने की खबर से सुरेन्द्र कोली के गांव मंगरूखाल के लोग सदमे में हैं। मुफलीसी में जीवन जी रहा सुरेन्द्र के परिवार को अब उपरवाले पर ही भरोसा है। अपने मायके पौड़ी ज़िले के वीरोंखाल ब्लॉक के जमरिया गांव में रह रही उसकी पत्नी शांति देवी को अपनी 6 वर्षीय लड़की व ढ़ाई वर्षीय पुत्र के भविष्य की चिंता सताने लगी है।
तीन साल से अपने बेटे का इंतज़ार कर रही 70 वर्षीय मां कुन्ती देवी की आंखे पथरा गई हैं। बूढी मां कुन्ती देवी सुरेन्द्र को बेगुनाह मानते हुए कहती हैं कि ऊपरवाला उन्हें न्याय देगा।
शांति देवी पिछले तीन वर्षों से पहाड़ सा दर्द झेलते हुए न्याय की उम्मीदों के साथ जी रही हैं। घर में खाने के लाले पड़ना रोज़ाना की बात हो गई है। साथ ही दो बच्चों के भविष्य की चिंता भी है। लेकिन अदालत के फैसले के बाद उसका कानून पर से भरोसा टूट चुका है। नम आंखों व रुंधे गले से शांति कहती हैं कि कानून सिर्फ अमीरों के लिए ही बना है।
सुरेन्द्र की सज़ा से उसकी पत्नी शांति टूट चुकी हैं। शांति को 26 दिसंबर 2006 का दिन याद है। इसी दिन गांव आए सुरेन्द्र को कुछ लोग दिल्ली बुलाकर ले गए थे। इसके बाद उसने पति के निठारी कांड में शामिल होने के बारे में सुना।
शांति को अब भी न्याय की उम्मीद है, पर कानून पर से उसका भरोसा उठ चुका है। शांति का कहना है कि अगर मेरा पति दोषी है तो सज़ा ठीक है, लेकिन इस मामले में शामिल अन्य लोगों को सज़ा क्यों नहीं मिली..? उसका सवाल है कि पैसे वालों के लिए जेलें नहीं बनी हैं क्या..?
वास्तव में ये वो सवाल हैं जिनका जवाब हम सब को मिलकर तलाशना ही होगा। नहीं तो देश के समस्त कानूनों पर से गरीबों का भरोसा उठ जाएगा और कानून अमीरों की रखैल बन कर रह जाएगी।
तीन साल से अपने बेटे का इंतज़ार कर रही 70 वर्षीय मां कुन्ती देवी की आंखे पथरा गई हैं। बूढी मां कुन्ती देवी सुरेन्द्र को बेगुनाह मानते हुए कहती हैं कि ऊपरवाला उन्हें न्याय देगा।
शांति देवी पिछले तीन वर्षों से पहाड़ सा दर्द झेलते हुए न्याय की उम्मीदों के साथ जी रही हैं। घर में खाने के लाले पड़ना रोज़ाना की बात हो गई है। साथ ही दो बच्चों के भविष्य की चिंता भी है। लेकिन अदालत के फैसले के बाद उसका कानून पर से भरोसा टूट चुका है। नम आंखों व रुंधे गले से शांति कहती हैं कि कानून सिर्फ अमीरों के लिए ही बना है।
सुरेन्द्र की सज़ा से उसकी पत्नी शांति टूट चुकी हैं। शांति को 26 दिसंबर 2006 का दिन याद है। इसी दिन गांव आए सुरेन्द्र को कुछ लोग दिल्ली बुलाकर ले गए थे। इसके बाद उसने पति के निठारी कांड में शामिल होने के बारे में सुना।
शांति को अब भी न्याय की उम्मीद है, पर कानून पर से उसका भरोसा उठ चुका है। शांति का कहना है कि अगर मेरा पति दोषी है तो सज़ा ठीक है, लेकिन इस मामले में शामिल अन्य लोगों को सज़ा क्यों नहीं मिली..? उसका सवाल है कि पैसे वालों के लिए जेलें नहीं बनी हैं क्या..?
वास्तव में ये वो सवाल हैं जिनका जवाब हम सब को मिलकर तलाशना ही होगा। नहीं तो देश के समस्त कानूनों पर से गरीबों का भरोसा उठ जाएगा और कानून अमीरों की रखैल बन कर रह जाएगी।
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