रविवार, 16 मई 2010

मीना गोला कांड....


नैनीताल में मेरा पहला दिन था। छत पर बैठा अखबार में निरुपमा कांड की खबरे पढ़ रहा था। अभी इसके बारे में सोचना शुरू ही किया था कि बाहर दूर से कहीं नारों की आती आवाज़ मेरे कानों में गुंजने लगी। कुछ ही पलों में मैं भी सड़कों पर था। वहां देखा कि महिलाओं व कुछ मर्दों ने रैली निकाली थी। मैं उस रैली को बगैर समझे उसकी तस्वीरें लेने लगा। धीरे-धीरे पूरी कहानी मेरे समझ में आने लगी। साथ ही और भी जानने की उत्सुकता भी बढ़ने लगी।
दरअसल, क्रालोस, पछास, इमके, आर.डी.एफ., उत्तराखंड लोक वाहिनी, बोरारो विकास संघर्ष समिति, महिला एकता परिषद द्वाराहाट, जनमैत्री संगठन द्वारा बनाए गए दमन विरोधी मोर्चा के बैनर तले दर्जनों मांगों को लेकर सैकड़ों कार्यकर्ता पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत मल्लीताल में एकत्र हुए थे। वहां से माल रोड होते हुए कमिश्नरी तक यह जुलूस निकाला था। इस जुलूस में कई सारे मुद्दे थे। कई मांगें थी। जैसे, छेड़छाड़ के दोषी सिरोही को गिरफ्तार करो... फर्जी मुकदमों, गैंगस्टर में बंद श्रमिक, नेताओं व उनके समर्थकों को रिहा करो... श्रम कानून लागू करो... पुलिस प्रशासन प्रबंधन के इशारे पर नाचना बंद करो... मजदूरों को संगठित करना और उनकी यूनियन बनाना जायज़ कानूनी अधिकार है, इसका हनन बंद करो... आदि-अनादि...
इन सब मुद्दों में एक कहानी ऐसी भी थी, जो निरुपमा कांड से मिलती जुलती है।
मीना गोला कांड.... परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास) की सक्रीय कार्यकर्ता मीना गोला का उसके परिजनों ने गांव के कुछ दबंगों के साथ मिलकर 4 अक्टूबर, 2009 को हत्या कर दी थी। दरअसल, मीना के घर वाले उसकी शादी अपने किसी जानने वाले से कराना चाहते थे, पर मीना तैयार न थी।
मीना की दोस्त रजनी जोशी बताती हैं कि हत्या के बाद से ही पछास और महिला उत्पीड़न विरोधी संयुक्त मोर्चा मीना के हत्यारे परिजनों को सज़ा दिलाने के लिए आंदोलन करते रहे हैं। इसी क्रम में 15 व 16 जनवरी, 2010 को धरना, 18,19 व 20 जनवरी को क्रमिक अनशन एवं 21 से 25 जनवरी तक आमरण अनशन किया, जिसके बाद 26 जनवरी को प्रशासन से समझौता हुआ कि 2 माह के भीतर पूरी जांच कर आवश्यक कार्यवाही की जाएगी। (लेखक के पास समझौता-पत्र मौजूद है।) लेकिन दो माह बाद जब मोर्चा के पदाधिकारी एस.डी.एम. से मिलने गए तो उन्होंने जांच पूरी न होने की बात कह कर समझौते को तोड़ दिया। इस प्रकार अपने लिखित समझौते से मुकर कर प्रशासन ने एक बार फिर अपराधियों को बचाने का प्रयास किया है, और अभी तक भी जांच पूरी नहीं हुई है।
रजनी जोशी बताती हैं कि इस प्रकरण में पुलिस व प्रशासन की भूमिका हत्या के दिन से 6 माह तक हत्यारों को बचाने की रही है। 4 अक्टूबर, 2010 को जब फोन पर हत्या की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस घटना-स्थल पर नहीं पहुंची। शाम को जब लिखित तहरीर कुण्डा थाने में देने गए तो पुलिस ने तहरीर रिसीव नहीं की। घटना के 21 दिन बाद जब डी.जी.पी. काशीपूर में जनता दरबार में आए तो पछास कार्यकर्ताओं को डी.जी.पी. से मिलने से रोकने में पुलिस अपना पूरा ज़ोर लगा दिया। काफी संघर्ष के बाद पछास कार्यकर्ता डी.जी.पी. से मिले, तब जाकर पुलिस ने मात्र आत्महत्या को उकसाने व साक्ष्य मिटाने का मुकदमा मीना के परिजनों पर लगाया, लेकिन उनको गिरफ्तार फिर भी नहीं किया। आमरण अनशन के दौरान भी मित्र पुलिस अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आई। वह रात में आकर आंदोलनकारियों को धमका रही थी। अनशन पर बैठे लोगों को जबरन उठाकर अस्पताल ले जाकर अनशन तुड़वाने की कोशिश की गई। पुलिस-प्रशासन की शह पाकर दबंगो द्वारा आंदोलनकारियों पर झूठे आरोप लगाए। जब महिला एकता मंच 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मीना के गांव बैंतवाला में सभा करने जाने लगे तो प्रशासन पूरे फोर्स के साथ जुलूस को रोकने का प्रयास करती है, और बैंतवाला गांव इस कार्यक्रम के लगे पोस्टरों को फाड़ दिया जाता है। 8 मार्च के ही दिन बैंतवाला गांव में लाठी-डंडों-पत्थरों से लैस दबंग लोग जो महिला एकता मंच के कार्यकर्ताओं पर हमला करने को तैयार थें, पर उन पर पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं किया।
पछास कार्यकर्ता मुकेश के मुताबिक इस मामले में पुलिस के चरित्र को उजागर करने की लंबी फेहरिस्त है। जिससे साफ तौर पर ज़ाहिर होता है कि पुलिस हत्यारों को बचाने के पूरे प्रयास में है। स्थानीय सांसद महोदय भी इस घटना से न सिर्फ वाकिफ हैं, बल्कि आमरण अनशन पर आकर उन्होंने हत्यारों की गिरफ्तारी का वचन भी दिया। लेकिन जैसा कि हमेशा होता है, जनता से किए अनेक वायदों से मुकरने की तरह वे इस वायदे से भी मुकर गए।
इस मामले में पछास कार्यकर्ताओं ने सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 का इस्तेमाल भी किया, लेकिन इन्हें कोई भी संतोषजनक सूचना प्राप्त नहीं हुई। यही नहीं, इस मामले में कई पत्र व आवेदन विभिन्न अधिकारियों को सौंप चुके हैं, पर कोई सुनवाई व कार्यवाही नहीं हुई। इस मामले में एक Fact Finding Team की एक रिपोर्ट भी मुझे प्राप्त हुई है, जिसे बहुत जल्द सूचना एक्सप्रेस के माध्यम से आपके समक्ष पेश करूंगा। उससे भी दिलचस्प बात यह है कि जब मैं इस मामले के संबंध में कुछ कागज़ात फोटो-कॉपी करा रहा था तो कुछ लोगों ने मुझे इस मामले से दूर ही रहने की सलाह दी। खैर, सच्ची पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों से निवेदन है कि इस मामले को परखने के बाद अपनी भी कलम चलाने की कृपा करें। इस संबंध में कई कागज़ात मुझसे भी प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए आप हमें afroz.alam.sahil@gmail.com पर मेल भी कर सकते हैं या +91-9891322178 पर फोन भी कर सकते हैं। खैर नैनीताल की मेरी और यादों को पढ़ने के लिए पढ़ते रहिए http://suchnaexpress.blogspot.com

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