ख़बर है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सी बी एस ई के तहत दसवीं व बारहवीं कक्षा के परीक्षार्थी की सुविधा के लिए उन्हें उत्तर पुस्तिकाएं देखने का अधिकार देने का समर्थन किया है। यह मांग नातिजाओं से असंतुष्ट छात्रों के लिए एक बड़ी राहत वाली साबित हो सकती है,क्यूंकि वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने विद्या की अर्थी निकाल दी है। हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी है कि छात्रों की कई वर्षों की मेहनत का मूल्यांकन मात्र तीन घंटो ही कर लिया जाता है। तीन घंटो में तीन-चार हज़ार शब्द लिख मारो या मर जाओ,तीसरा कोई विकल्प छात्रों के पास नही होता। हद तो यह कि जो छात्र साल भर मेहनत व लगन से पढ़ाई करता है और उसका शैक्षिक रेकॉर्ड भी दुसरे छात्रों से बेहतर है, फिर भी वह परीक्षा में फेल है। वहीं वह छात्र जिसे गुंडागर्दी करने से फुरसत ही नही है, वही छात्र परीक्षा का टौपर है। आख़िर ऐसा कैसे सम्भव हो जाता है?
ऐसा इसलिए संभव हो जाता है कि आज शिक्षक वर्ग में भी भ्रष्ट व रिश्वतखोर लोग पैदा होने लगे हैं। सच तो यह है कि परीक्षा प्रणाली में बढे पैमाने पर धांधली होती है, इसका इससे बेहतर प्रमाण क्या हो सकता है कि जब परीक्षा व्यस्था में पारदर्शिता की मांग उठी तो छोटे बढे सभी परीक्षा संस्थान हाय-हाय करने लगे। हर वर्ष जब परीक्षा परिणाम घोषित होने लगता हैं , तो छात्रों व अभिभावकों में भारी असंतोष देखने को मिलता है। विशेषकर पिछले वर्ष मेरठ में तो यह असंतोष कुछ ज़्यादा ही मुखर हो गया और एक बढे आन्दोलन का रूप ले लिया। तेज़ गर्मी को बर्दाश्त करते हुए यह छात्र कई दिनों तक धरना- प्रदर्शन करते रहे।
इस तरह के बहुत सारे विवाद हर वर्ष हमें देखने को मिलते हैं। हर वर्ष यह असंतोष उभरता है और हर साल बहुत सारे छात्र पुनः कॉपी जांच की मांग करते है और मांग भी क्यूँ न करें? छात्रों की कॉपियाँ तो कभी कभी जांच होने के पूर्व ही चूल्हे का इंधन बन जाती हैं।
जी हाँ! पिछले वर्ष ही उत्तर प्रदेश में बोर्ड परीक्षाओं की हजारों उत्तर पुस्तिकाएं मूल्यांकन केन्द्र पर पहुँचने के बजाये बलिया-लखनऊ राजमार्ग के किनारे गुज़र बसर करने वाले गरीबों के चूल्हे की इंधन बन गयी. इस तरह की बेशुमार घटनाओं के बावजूद (जो अपने आप में हमारी परीक्षा प्रणाली पर एक सवालिया निशान है.) हर साल परीक्षाओं से संबंधित अधिकारी एक ही जवाब देते हैं कि उतर पुस्तिकाओं का पुनः मूल्यांकन नहीं किया जाएगा और न ही उत्तर पुस्तिका संबंधित छात्र को दिखाई जाएगी. अधिक से अधिक कुछ स्थानों पर यह व्यवस्था तो कर दी गई है कि किसी उत्तर पुस्तिका के अंकों को एक बार और जोड़ कर देख लिया जाए। (कहीं -कहीं पुनः जांच का सिस्टम भी है ,पर आम तौर पर छात्रों के अंक घटा ही दिए जाते हैं।) इससे अधिक और कोई राहत बेचैन छात्रों को देने को हमारे परीक्षा अधिकारी तैयार नही हैं।
ढाई वर्ष पूर्व "सूचना का अधिकार एक्ट-२००५ के आ जाने से छात्रों में एक नई उम्मीद जगी। छात्रों को एहसास हुआ शायद अब परीक्षा प्रणाली में पारदर्शिता आ जाएगी। लेकिन अधिकारियों को यह कहाँ बर्दाश्त होने वाला था। इसलिए उन्होंने सरकार पर दबाव बनाया कि सूचना के अधिकार में संसोधन कर इसके दायरे से "कॉपी के पुनर्मूल्यांकन" या दुबारा जांच को ही बाहर कर दिया जाए, पर ऐसा हो ना सका।
सवाल यह है कि इन परीक्षा अधिकारियों को उत्तर पुस्तिका दिखाने से इतना परहेज़ क्यों है? लगभग बीस मिनट में एक छात्र या छात्रा को उसकी उत्तर पुस्तिका दिखाई जा सकती है और उसे जो भी शिकायत हो उसकी तसल्ली कि जा सकती है। लेकिन समझ में नही आता पारदर्शिता के लिए बहाल किए गए केन्द्रिया सूचना आयोग को इसमे क्या प्रॉब्लम है?जबकि कई राज्य अपने छात्रों को कॉपी दिखाने का आर्डर दे चुके हैं। ख़ुद केंद्रीय सूचना आयोग के सूचना आयुक्त औ पी केजरीवाल किसलय नामक छात्र की एक अपील पर राष्ट्रीय मुक्त शिक्षा संस्थान को प्राप्तांक दिखाने का आदेश दे चुके हैं।
किसलय राष्ट्रीय मुक्त शिक्षा संस्थान से पढ़ाई कर रहा था और २००५ के अंत में उसने बारहवीं की परीक्षा दी थी। जीव विज्ञान विषय में कम अंक आने पर उसने २००६ में फिर से इस विषय की परीक्षा दी थी। लेकिन २००६ की परीक्षा का अंक नही बताया गया। अंत में किसलय ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए संस्थान से २००६ के परीक्षा का अंक बताने को कहा, जिसे संस्था ने खारिज कर दिया। अंत में किसलय ने केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की।
पिछले दिनों कर्नाटक सूचना आयोग ने भी राज्य लोक सेवा आयोग को कहा कि प्रार्थी के मांगने पर परीक्षाओं कि मूल्यांकित कॉपी की प्रतिया छात्रों को उपलब्ध करे जाए। कर्नाटक सूचना आयोग का यह फैसला ई रामामूर्ति बनाम कर्नाटक लोक सेवा आयोग के मामले में आया।
मणिपुर राज्य सूचना आयोग ने भी एक मामले में उत्तर पुस्तिका दिखाने का अहम् फ़ैसला दिया और २४ वर्षीय परीक्षार्थी सलाम प्रसंता गृह मंत्रालय द्वारा पुस्तिका दिखाए जाने से संतुष्ट भी हुआ। यही नही गुजरात और छत्तीसगढ़ के सूचना आयोग भी अपने राज्यों में उत्तर पुस्तिका दिखाने का आर्डर दे चुके हैं, ताकि परीक्षा में असंतुष्ट छात्र अपने को संतुष्ट कर सकें।
ज़ाहिर है कडी मेहनत करने वाले छात्रों कोअंक यदि उनकी उम्मीद से कम आ जाए तो मन में यह शक पैदा होना स्वाभाविक है कि कही शिक्षक द्वारा उसके साथ अन्याय तो नही किया गया?" कम से कम छात्रों का इतना हक तो बनता ही है कि वे बस एक बार यह देख सके कि उनकी उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन किस तरह हुआ है। आख़िर यह कोई बहुत बडी मांग नही जिसे पूरा न किया जा सके।
एक ओर तो शिक्षक विद्यार्थियों के तनाव पर चिंता प्रकट करते हैं और दूसरी ओर इस तनाव को दूर या कम करने का जो उपाय है उनसे ही दूर भागते हैं, आख़िर ऐसा क्यों? विद्यार्थियों पर बढ़ते तनाव को कम करने के लिए ज़रूरी है कि परीक्षा प्रणाली को पारदर्शी बनाया जाए, और वैसे भी भारतीय लोकतंत्र में जब युवाओं विशेषकर विध्याथिर्यों की अग्रणी भूमिका से इनकार नही किया जा सकता है, तो फिर इनके हितों की अनदेखी कैसे की जा सकती है? छात्रों द्वारा हो रही आत्महत्या और विरोध की घटना को कैसे नकारा जा सकता है? जबकि परीक्षा के परिणामों के आ जाने के बाद यह आंकडे और भी बढ़ जाते हैं।(ओर विरोध भी क्यों न हो? क्या सौ नम्बर लाने का अधिकार सिर्फ़ सी बी एस ई के छात्रों को ही है? दिलचस्प तो यह है कि यहाँ हिन्दी जैसे विषयों में भी सौ अंक दिए जा रहे हैं जो बिहार और उत्तर प्रदेश के सामने कहीं भी नही टिक पाएंगे। कम से कम हिन्दी के मामले में तो ज़रुर....) खैर,ऐसे में छात्रों की उत्तर पुस्तिकायों के मूल्यांकन में हो रही धांधली को देखते हुए सरकार की ओर से ठोस पहल की आवश्यकता है। मीडिया को भी इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है,क्यूंकि परीक्षा मिलने वाले ही अंक ही छात्रों के जीवन की दशा और दिशा तय करते हैं।
1 टिप्पणियाँ:
bahut accha... yah blog nahi bulki ek aandolan hai..... aaj saare blog mauzud hain par zyada tar logon ko manoranjan parosne mein lage hue hai.... par aapka yeh blog in baaton se koso door hai.
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