गुरुवार, 12 जून 2008

हीरों के बदले सूचना का कारोबार

सुशील झा,बीबीसी संवाददाता, मुंबई

ये कहानी हीरों के एक ऐसे व्यवसायी की है जिन्होंने कारोबार में धोखा खाया तो किसी और रास्ते पर ही चल पड़े।
नया रास्ता भी कारोबार का ही पकड़ा लेकिन यह कारोबार किसी सामान का नहीं बल्कि सूचनाओं का है और इस कारोबार से उन्हें ख़ुद को तो फ़ायदा हो ही रहा है, समाज का भी कुछ भला हो रहा है.
मुंबई के चेतन कोठारी पिछले डेढ़ saaलगभग हर सप्ताह एक आरटीआई यानी सूचना के अधिकार के तहत पूछताछ दर्ज कर रहे हैं।
कोठारी पिछले 16 महीनों में 176 आरटीआई मामले दर्ज कर चुके हैं और इससे कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.
मसलन मुंबई की ट्रेनों में हर दिन औसतन दस लोग दुर्घटना या अन्य कारणों से मरते हैं या फिर राष्ट्रपति भवन का बिजली बिल एक साल में क़रीब डेढ़ करोड़ रुपए का होता है.
ये ऐसे आंकड़ें हैं जो आरटीआई के ज़रिए सामने आए हैं. और सबको चौंकाने वाले हैं.
लेकिन आखिर वो ऐसा करते क्यों हैं?
मुंबई के चर्नी रोड पर अपने छोटे से दड़बेनुमा कार्यालय में बैठे चेतन बताते हैं कि आरटीआई के कारण उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया है.
कभी हीरों के व्यापारी रहे कोठारी कहते हैं, "मैंने अपना 11 लाख रुपए सुमन मोटल्स नाम की कंपनी में लगाया था जिसकी कई स्कीमें चल रही थीं. जब पैसा मैच्योरिटी का समय आया तो कंपनी भाग गई. मेरे जैसे क़रीब 30 हज़ार छोटे निवेशक थे जिनका पैसा डूब गया."
जब पैसा नहीं मिला तो कोठारी अदालत में गए, पुलिस में शिकायत की लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला क्योंकि सुमन मोटल्स के बारे में उनके पास कोई जानकारी नहीं थी.
उन्हीं दिनों आरटीआई बिल आया और कोठारी ने इसके तहत सुमन मोटल्स के बारे में जानकारी मांगी.
इस जानकारी के बारे में वो बताते हैं, "आरटीआई के ज़रिए मुझे पता चला कि इस कंपनी के मालिक पर कई और मामले चल रहे हैं, कई वारंट उनके ख़िलाफ़ जारी हो चुके हैं, और उनका घर है मुंबई में."
"मैंने ये जानकारी कोर्ट में पेश की तो हमारा केस मज़बूत हुआ और हमें लोकल कोर्ट में जीत मिली. अब मामला हाई कोर्ट में है."
जादू की चाबी
लेकिन अपनी इस जीत के बाद कोठारी को मानो जादू की चाबी हाथ लग गई हो.
उन्होंने पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और अन्य समस्याओं पर आरटीआई फाइल करना शुरु किया और इससे मिली जानकारी को मीडिया तक पहुंचाने लगे.
यह पूछे जाने पर कि आरटीआई के तहत सबसे बड़ी जानकारी उन्हें कौन सी मिली, कोठारी कहते हैं, "मुंबई की लोकल ट्रेनों में होने वाली मौतों की जानकारी अचंभित करने वाली थी. पिछले पांच साल में 20,700 लोग मारे गए हैं लोकल ट्रेनों में, मतलब औसतन प्रतिदिन दस लोग. इस जानकारी का न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी इस्तेमाल किया था."
इसके अलावा राष्ट्रपति भवन के बिजली बिल का भी आकड़ा दिलचस्प है. पांच साल में तकरीबन 16 करोड़ रुपए.
चेतन ने मुंबई पुलिस और ट्रैफिक पुलिस से जुड़े कई आरटीआई भी फाइल किए हैं.
लेकिन क्या उनके पास कोई और काम नहीं है आरटीआई फाइल करने के सिवा?
चेतन कहते हैं, "मैं कोशिश करता हूं कि लोगों को जागरुक बना सकूं. मैंने अपना जीवन इसी में लगा दिया है. थोड़ा बहुत पैसा बचा है उसे बैंकों में रखा है. मेरा जीवन चल जाता है. बाकी पूरा समय मैं ऐसी जानकारियां जुटाने में लगा रहता हूं जिनसे समाज को फायदा हो."
लेकिन क्या आरटीआई से जानकारी मिलना इतना सरल होता है?
चेतन कहते हैं, "आपको धैर्य रखना होगा और बार बार अधिकारियों को फोन पर या स्वयं जाकर बताना होगा कि ये जानकारी आपको चाहिए. फॉलो करते रहने पर जानकारी मिल जाती है. कई बार महीने डेढ़ महीने की सीमा में जानकारी नहीं मिलती लेकिन अगर आप कोशिश करते हैं तो जानकारी दे दी जाती है."
चेतन ने एक साल के लिए सेना में कमांडो ट्रेनिंग भी ली थी लेकिन फिर काम नहीं किया.
अब हीरों का व्यापार छोड़ कर सूचना के व्यापार में लग गए हैं.
उनके छोटे से कार्यालय में एक बड़ी सी तिजोरी है जिसमें हीरे होने चाहिए थे लेकिन अब आरटीआई की फाइलें हैं और इससे जुटाए गए आकड़े चेतन के लिए हीरों से कम नहीं हैं.

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