रविवार, 7 सितंबर 2008

उम्मीद की किरण.......

मनीष सिसोदिया
जानने का हक आदमी के जीने का हक है. सरकारी संदर्भ को छोड़ कर देखें तो समझ में आता है कि अगर जानने का हक न मिले तो आदमी का वज़ूद ही खतरे में पड़ जाएगा. आदमी की ज़िंदगी और पशुओं की ज़िंदगी में कोई फर्क नहीं रह जाएगा. हम इस मामले में खुद को सौभाग्यशाली समझ सकते हैं कि आज़ादी के बाद बने संविधान में हमें बोलने, यानि खुद को अभिव्यक्त करने और जानने की आज़ादी मूलभूत अधिकार में मिली। इस संविधान को बनने के 55 साल बाद ही सही, लेकिन आज जानने का हक यानि सूचना का अधिकार हमें एक कानून के रूप में मिला है।


एक पत्रकार होने के नाते मुझे हमेशा लगता रहा कि मीडिया लोगों तक सूचना पहुंचाने का काम तो करता है लेकिन वर्तमान में लोगों की जानकारी में किसी घटना, तथ्य या विचार को लोगों तक पहुंचाने में सबसे बड़ी बाधा भी इसी मीडिया ने ही खड़ी की है. कुछ उद्योग समूह या उनके द्वारा व्यापार बढ़ाने के लिए लाखों रुपए के वेतन पर रखे गए लोग यह तय करते हैं कि लोगों को क्या जानना है. महज़ उद्योग को फायदा पहुंचाने वाली सूचनाएं लोगों तक पहुंचाने के इस क्रम में जानकारी के आधार पर होने वाला मानवीय विकास थम गया है. सूचना का अधिकार कानून इस समस्या का कोई व्यापक समाधान तो नहीं देता लेकिन लोकतंत्र प्रणाली को मजबूत करने के लिए लोगों को जिस तरह की जानकारी होनी लाज़िमी है वह इस कानून की मदद से अब फिर से लोगों को उपलब्ध है. सूचना के अधिकार कानून के बाद से अपनी व्यवस्था के बारे में जानने के लिए लोग अब पूरी तरह मीडिया पर निर्भर नहीं रहे हैं. किसी सड़क के बनने के बारे में या किसी स्कूल के खर्चे से लेकर किसी भी योजना के बारे में जानकारी लेने के लिए लोगों को पहले महज़ मीडिया पर निर्भर रहना पड़ता था. अब यह मीडिया कर्मियों की मेहरबानी पर था कि वे उस मुद्दे को खबर बनाएं या नहीं. लेकिन अब अगर कोई इस बारे में वाकई जानने का इच्छुक है तो वह सीधे सरकार से यह जानकारी हासिल कर सकता है. गंभिरता से विचार करते हैं तो समझ में आता है कि यह एक बहुत बड़ा कदम है।


शायद यही वजह है कि आज मेरे जैसे पत्रकारों को लोगों तक सूचना पहुंचाने के अपने नियमित काम की जगह ऐसी व्यवस्था में ज्यादा रुचि हो गई है जो कम से कम सरकारी संदर्भ में सूचना अगर लोगों के बीच किसी माध्यम की मोहताज न हो . यह कहते हुए मेरा दुराग्रह किसी भी तरह मीडिया और पत्रकारों की भूमिका को कम करने का नहीं है वरन नए संदर्भो में परिभाषित करना है जिसमें सूचना का अधिकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

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