शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

पैसा बोलता है.....

राजनीति और धनबल एक-दूसर के पर्याय बन चुके हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि पार्टियां जमकर चंदा उगाहती हैं और फिर चुनावी फायदे के लिए इसे दोनों हाथों लुटाती हैं। यह जानना तो मुश्किल है कि चंदा देने वाले संगठनों या कारोबारी समूहों ने बदले दलों से क्या फायदा उठाया पर सूचना अधिकार के कानून ने पार्टियों के बही-खातों की ताकझांक के जरिये जनसेवकों के असली चेहर सामने लाना मुमकिन बना दिया है। अफ़रोज़ आलम साहिल की रिपोर्ट

हमारे देश में जितनी भी राजनीतिक पार्टियां हैं, उन्हें अपना जनसेवा और राजनीति का कारोबार चलाने के लिए पैसा चाहिए। और पैसा भी खूब चाहिए। जलसा, सम्मेलन, चुनाव और प्रचार में उड़ते विमान-हेलीकॉप्टर, धरना, प्रदर्शन, रैली हर चीज पैसे से ही चलती है। इसके लिए ये पैसा चाहे जहां से मिले, बस मिले। यह कहां से आता है। कौन देता है। इससे पार्टी को कोई मतलब नहीं। और वैसे भी पैसे की न कोई पार्टी होती है न विचारधारा। पैस के मामले में किसी को किसी से कोई भेदभाव, परहेज नहीं। पार्टियां हाथ फैलाए खड़ी हैं और देने वाला खुशी-खुशी दिए जा रहा है। आखिर ये दानी कौन है। इस बात से जनता वाकिफ नहीं है। पर सूचना क्रांति के इस युग में वर्तमान भारत सरकार ने शायद गलती से ही सही जनता के हाथों में सूचना के अधिकार के रूप में एक ऐसा हथियार मुहैया करा दिया जो बही-खातों और फाइलों के बीच के घपलों को जनता के बीच लाकर इन तथाकथित जन-सवकों की असलियत जनता के सामने रखने लगी है।
निर्वाचन आयोग से मिली जानकारी के मुताबिक सात राष्ट्रीय पार्टियों, 41 क्षेत्रीय पार्टियों और 949 गैरमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में से सिर्फ 18 पार्टियों ने 2007-08 में फॉर्म 24-ए भरा है। जबकि वर्ष 2004 से लेकर 2007 तक फॉर्म 24-ए भरने वालों की संख्या 16 रही है। यही नहीं जिन पार्टियों ने फॉर्म 24-ए भरा है, उनके दानदाताओं की सूची भी काफी चौंकाने वाली है। कई माइनिंग कंपनियां, प्रापर्टी-रियल एस्टेट कंपनियां, ट्रस्ट, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशंस, निर्यातक व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ-साथ शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले प्राइवेट स्कूल व शैक्षणिक संस्थान भी दानदाताओं की सूची में शामिल हैं। राजनीतिक पार्टियों के दानदाताओं की सूची कई सवाल खड़े करती हैं। इस सूची में देखा गया कि कई औद्योगिक घराने और व्यापारिक प्रतिष्ठान व समूह जैसे आदित्य बिड़ला समूह से संबंधित जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट, वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड, गोवा की डेम्पो इंडस्ट्रीज वीएस डेम्पो, डेम्पो माइनिंग, सेसा गोवा, वीएम सालगांवकर एंड ब्रदर्स आदि ने भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों को चंदा दिया है। पार्टियों को मिले चंदे पर नजर डालें ता कुछ पार्टी ता करोड़ों रुपये लेकर काम करती नजर आती हैं लेकिन कुछ दल ऐसे हैं जिनको मिले चंदे की ओर नजर डालें और फिर उनके खर्चों पर तो लगता है कि मामला आमदनी अठन्नी, खर्चा रूपइया जैसा है।
मसलन, सपा को 2007-08 के दौरान केवल 11 लाख रुपये मिले, इन्हें चंदा देने वाल केवल तीन लोग हैं जिनमें से दो संस्थाएं हैं। एआईएडीएमके को इस वित्तीय वर्ष में केवल 1.08 लाख चंदा मिला है। जनता दल (यू) भी सिर्फ एक ही व्यक्ति की कृपा पर चल रहा है। इस वित्तीय वर्ष में पार्टी को सिर्फ 21 लाख मिले हैं और यह दान वसंतकुंज, नई दिल्ली के रवेन्द्रण एम. नायर ने दिया है। शरद पवार की एनसीपी भी तीन लोगों के रहमा-करम पर चल रही है। वीडियोकॉन ने पार्टी को एक करोड़ दिया है, तो गिरीष गांधी ने दो लाख तथा शार्पमाइंड मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड ने 25 हजार। कांग्रेस, सीपीएम, भाजपा, सपा जैसे बड़े-बड़े दलों को उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों से नाममात्र चंदा मिला है जबकि कांग्रेस और भाजपा को गोवा जैसे छोटे से राज्य से पर्याप्त पैसा मिला है। और तो और, गोवा के अधिकतर दानदाता ऐसे हैं जो दोनों ही दलों को मोटा चंदा देते रहे हैं। ये दानदाता बिल्डिंग, कंस्ट्रक्शन और खनन से जुड़ी हुई संस्थाएं हैं। शिवसेना को भी चंदा देने वाले अधिकतर लाेग बिल्डर या बड़े व्यावसायिक उपक्रम चलाने वाले लोग हैं। भारतीय जनता पार्टी ‘पार्टी विथ द डिफरंस’ का नारा देती रही है। लकिन जब ‘सूचना के अधिकार अधिनियम के माध्यम से पार्टियों के दानदाताओं की सूची से राज खुला तो ‘पार्टी विथ द डिफरंस’ की भी पोल खुल कर रह गई। विचारधारा और नीतियों की पार्टी अर्थात भारतीय जनता पार्टी कभी भोपाल गैस कांड की दोषी कम्पनी की घोर विरोधी थी, पर लगता है अब विरोध खत्म हो चुका है। इसलिए उसने यूनियन कार्बाइड के नए मालिक ‘डाआ केमिकल्स’ से भी वर्ष 2006-07 में एक लाख रुपया चंदा लेने में कोई परहेज नहीं किया। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस दूध की धुली है। सच्चाई तो यह है कि ‘हमाम’ में सभी नंगे हैं, क्या कांग्रेस और क्या भाजपा? बात अगर कांग्रेस की करें तो पार्टी से जुड़े लोग दिल खोल कर चंदा देते हैं और खूब देते हैं। खुद सोनिया गांधी ने दो वर्षों में 67467 रुपये और डॉ. मनमोहन सिंह ने 50 हजार रुपये चंदा दिए हैं। इसके अलावा पिछले वर्ष इनके दानदाताओं में पब्लिक स्कूलों की भी अच्छी खासी तादाद है।
वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज लिमिटेड द्वारा वर्ष 2007-08 में 2 करोड़ और पिछले वर्ष एक ही दिन 50-50 लाख के छह अलग-अलग चेक देना, आदित्य बिड़ला समूह का वर्ष 2007-08 में 25 लाख एवं पिछले वर्ष 10 करोड़ तथा वीडियोकॉन द्वारा वर्ष 2007-08 में भारतीय जनता पार्टी को 2 करोड़ 50 लाख का चंदा दिया जाना कुछ सवाल तो खड़े करता ही है। उद्योगपति, व्यवसायी व बिल्डर माफिया तो इन राजनैतिक पार्टियां को परंपरा के मुताबिक हमेशा से चंदा देते आए हैं, पर अब अकीक एजुकेशन सेन्टर का सच हमारे सामने है, जहां न कोई शिक्षा है और न ही शिक्षा देने वाला काेई शिक्षक और न ही उसकी हालत चंदा देने लायक है। ये तो एक साधारण सा घर है। पर इसने भाजपा को एक ही बार में नौ चेकों की मदद से 75 लाख रुपये दे डाले। इसके पिछले वर्ष भी यह 66 लाख रुपये चंदा भाजपा को दे चुकी है। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के नियमित दानदाता बहुत कम हैं। अर्थात जो एक बार दे दिया दोबारा देना मुनासिब नहीं समझता। यदि कभी सच सामने आ सके तो यह जानना दिलचस्प हाेगा कि जिस-जिस साल में जाे बड़ा व्यापारी चंदा देता है, वह उस साल क्या फायदा हासिल करता है?
क्या है कानून: जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में 2003 में किए गए संशोधन के बाद धारा 29 (सी) की उपधारा (1) के तहत सभी दलों के लिए हर वित्तीय वर्ष में फॉर्म 24 (ए) भरना अनिवार्य है। इसमें राजनीतिक दलों को यह बताना होता है कि उन्होंने पूर साल के दौरान कहां-कहां से और कितना चंदा हासिल किया है। हालांकि इस नियम के तहत 20 हजार से ज्यादा चंदा राशि का ही ब्योरा देना होता है।
किसने दिखाया खाता: भाजपा, कांग्रेस, भाकपा, माकपा, एनसीपी, एडीएमके, सपा, जद (यू), टीडीपी, एमडीएमके, शिवसेना, असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, मातृभक्त पार्टी, राष्ट्रीय विकास पार्टी, भारतीय विकास पार्टी, मानव जागृति मंच, भारतीय महाशक्ति मोर्चा, समाजवादी युवा दल, सत्य विजय पार्टी, जनमंगल पक्ष, लोकसत्ता पार्टी, थर्ड व्यू पार्टी ने बताया कितना मिला चंदा।
किसने दिखाया अंगूठा: राजद, बसपा, बीजद, शिरोमणि अकाली दल, पीएमके, झामुमो, डीएमके, लोजपा, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लाक, जनता दल (एस) राष्ट्रीय लोकदल, आरएसपी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, नेशनल कांफ्रेंस, केरल कांग्रेस, ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल, मुसलमीन, तृणमूल कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, मिजो नेशनल फ्रंट, नगालैंड पीपुल्स फ्रंट, आरपीआई जैसे दलों ने चुनाव आयोग को नहीं भेजा फॉर्म 24 (ए)।

1 टिप्पणियाँ:

media narad ने कहा…

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