बुधवार, 29 अप्रैल 2009

मौसम और चुनाव..

मौसम में बढ़ती गर्मी, सूखते बादल और हवाओं का बदलता रूख.... हर तरफ धूल-धक्कड़ और चलती लू के थपेड़े... और फिर प्रतिद्वंद्वियों की चुनौतियों के बीच चुनाव की बढ़ती सरगर्मी और चिलचिलाती धूप.... मौसम की इस बेरुखी ने नेता व जनता दोनों को बेहाल कर रखा है।
जी! चुनाव के इस मौसम में सूरज की तपिश अपने उफान पर है। इसने कई जगह चुनावी गर्मी को ठंडा करने की कोशिश भी की है। चुनाव का द्वितीय चरण भी सूरज की तपिश के कारण फीका ही रहा। अब अगले चरण में दिल्ली की बारी है। जहां चुनावी गर्मी से एक ओर नेता परेशान हैं, तो वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक गर्मी ने आम लोगों का जीना दुभर कर दिया है।
ज़रा सोचिए! यह तो अप्रैल का ही महीना है, और पारा 40-42 के पार जा चुकी है। मई-जून की गर्मी तो अभी बाकी ही है। आगे हमारा क्या हाल होगा, यह उपर वाला ही जानता है।
आखिर यह गर्मी हो क्यों ना...? पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जो जारी है। यदि आंकड़ों की बात करें तो दिल्ली में विभिन्न विकास कार्यो के नाम पर पिछले 5 सालों में लगभग 50 हज़ार पेड़ काट डाले गए। खैर यह आंकड़े तो सरकारी आंकड़े हैं, जिसे सूचना के अधिकार के तहत लेखक को दिल्ली सरकार के वन एवं वन्यप्राणी विभाग ने उपलब्ध कराया है। अवैध रुप से कटने वाले पेड़ों की संख्या तो लाखों में होगी। लेखक ने स्वयं महरौली के आर्कियोलॉजिकल पार्क में हो रही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को देखा है। जंगल के जंगल साफ कर दिए गए हैं। लेकिन इसकी खबर प्रशासन को नहीं है।
सूचना के अधिकार के माध्यम से मिले आंकड़ों के मुतबिक वर्ष 2004-05 में 16,552 पेड़, वर्ष 2005-06 में 10,692 पेड़, वर्ष 2006-07 में 5,627 पेड़, वर्ष 2007-08 में 10,460 पेड़ और वर्ष 2008-09 में 17 अप्रैल तक 2,321 पेड़ काटे गए हैं। यही नहीं, कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर जनवरी 2008 से मार्च 2009 तक 2986 पेड़ काटे गए। वहीं दिल्ली मेट्रो के नाम पर 387 पेड़ों की बलि चढ़ाई गई।
हालांकि विभाग के मुताबिक इन पेड़ों को काटने के बाद पेड़ लगाए भी गए हैं। लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है, ये किसी से छिपा नहीं है। बहरहाल, विभाग के मुताबिक वर्ष 2004-05 में 93,755 पेड़, वर्ष 2005-06 में 3,815 पेड़, वर्ष 2006-07 में 22,723 पेड़ और वर्ष 2007-08 में 10,722 पेड़ लगाए गए हैं। इन में से 12889 पौधे दिल्ली मेट्रो कॉरपोरेशन के शामिल हैं, जिसे ग़ाज़ीपूर- हिंडन कट में लगाया गया है। और दिल्ली मेट्रो ने इस कार्य हेतु 14,92,068 रुपये (चौदह लाख बानवे हज़ार अड़सठ रुपये) खर्च किए। बाकी के पेड़ों को लगाने में कितना खर्च हुआ है, इसका ब्यौरा विभाग के पास मौजूद नहीं है।
बात यहीं खत्म नहीं होती। जहां दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागें विज्ञापन के नाम पर करोड़ों खर्च कर देती हैं, वहीं दिल्ली सरकार के इस विभाग ने लोगों को पर्यावरण के संबंध में जागरुक करने हेतु पिछले 5 सालों में कोई विज्ञापन जारी नहीं किया है।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मसले पर तमाम राजनीतिक दल खामोश हैं। हालांकि इस बार कुछ राजनैतिक विचारधाराओं ने पहली बार जलवायु परिवर्तन के संकट को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया है। भाजपा ने जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण को समुचित महत्व देने का वायदा किया है, लेकिन हिन्दुत्व के शोर में यह मुद्दा भी नदारद हो गया है। दुखद बात तो यह है कि जो विचार और वायदे कांग्रेस, भाजपा, वामपंथी सहित कुछ दलों ने अपने घोषणा पत्रों में दर्ज किए हैं उन्हें मतदाता तक पहुंचाने की कोई जद्दोजहद नजर नहीं आई।जबकि यह घोर चिंता का विषय है कि मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए पर्यावरण के बारे में राजनीतिक दलों को जितनी गंभीरता से सोचना चाहिए, उतनी गंभीरता से नहीं सोचा जा रहा है। शायद राजनीतिक दल यह भूल रहे हैं कि जब मानव का अस्तित्व बचेगा, तभी राजनीति भी हो सकती है अन्यथा वह भी संभव नहीं है।


अफ़रोज़ आलम साहिल
मों. 9891322178.

1 टिप्पणियाँ:

mrit ने कहा…

डिस्कवरी चैनल तो अक्सर कहता है कि कि हर सेकेंड या हर मिनट(मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा)एक फुटबॉल के मैदान के बराबर जंगल कत रहे हैं.हमें जिंदा रहने के लिए ये अत्यंत आवश्यक है कि जितनी जल्दी से जल्दी हो सके जंगलों का नमोनिशान मिटा दिया जाए!!!!!!!!!!!!