सोमवार, 8 मार्च 2010

वूमेन इम्पावरमेंट वाया आर.टी.आई.

महिला सशक्तिकरणऔर सूचना का अधिकार दो अलग-अलग विषय हैं, पर इन दोनों में करीब का रिश्ता है। अबला नारी को सबल बनाने का कार्य सूचना का अधिकार ही कर सकता है। बशर्ते कि महिलाएं इस अधिकार का इस्तेमाल अपने विकास व रोज़मर्रा के कामों को कराने और अपने साथ हो रहे ज़ुल्म व अत्याचार के खात्मे के लिए करें। ऐसा महीं है कि महिलाएं इसका इस्तेमाल नहीं कर रही हैं, बल्कि इसका इस्तेमाल करके फ़ायदा भी हासिल कर रही हैं। इस सत्य को आगे की कहानियों से बखूबी समझा जा सकता व देखा जा सकता है कि किस प्रकार हिंसा वर्जनाओं की शिकार सभी वर्गों की महिलाएं सूचनाधिकार द्वारा इंसाफ़ पा सकती हैं।

दक्षिण दिल्ली के शेख़ सराय इलाक़े की एक झुग्गी-बस्ती में रहने वाली अशरफी देवी उन करोड़ों वंचितों में से एक नाम है, जिन तक पहुंचने से पहले ही सरकार की तमाम योजनाएं दम तोड़ देती हैं। लेकिन पति की असमय मौत फिर अपने दोनों बेटोंके नाता तोड़ लेने के बाद अशरफ़ी देवी का एकमात्र सहारा ये सरकारी योजनाएं ही बची थीं। अनपढ़ अशरफ़ी ने किसी आदमी की मदद से विधवा पेंशन आवेदन समाज कल्याण विभाग के सरकारी दफ़्तर में जमा करा दिया।

वह इस सपने में थी कि पेंशन मिलने पर बाकी की ज़िन्दगी आराम से गुज़र जाएगी, लेकिन इस सपने का सच होना इतना आसान न था। क्योंकि साल भर वह सिर्फ एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे बाबू के मेज़ पर चक्कर लगाती रही। लेकिन फायदा कुछ भी नहीं। बल्कि अंत में उस बेसहारा को यह बता दिया गया कि उसका आवेदन खारिज कर दिया गया है।

कुछ दिनों के बाद उसे एक बार फिर पता चला कि दिल्ली नगर निगम में भी विधवा पेंशन देने का प्रावधान है। अशरफ़ी ने एक बार फिर आवेदन किया, लेकिन यहां भी सब कुछ पहले की तरह ही हुआ। अंततः अशरफी ने सतर्क नागरिक संगठन की मदद से सूचना के अधिकार का प्रयोग किया और सूचना मिली कि उसकी पेंशन की अर्ज़ी 6 महीने पहले ही मंज़ूर कर ली गई है। पत्र के साथ ही उसे 6 महीने की पेंशन का चेक भी मिल गया।

दिल्ली के कल्याणपुरी इलाक़े में झुग्गियों में रहने वाली रमाबाई अपना आय प्रमाण पत्र बनवाने के लिए 6 महीने तक कार्यालय का चक्कर लगा-लगाकर थक चुकी थी, लेकिन जब उसने परिवर्तन संस्था की मदद से सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया तो महज़ 10 दिनों के भीतर उसे आय प्रमाण पत्र दे दिया गया, यही नहीं उसे अंत्योदय कार्ड बनने में हो रही देरी को भी सूचना के अधिकार से सुलझा लिया।

बंग्लोर में रहने वाली जयलक्षम्मा के पति आयकर विभाग से रिटायर हुए थे और उन्हें 1975 से पेंशन मिल रही थी। पति के मौत के बाद जब उन्होंने पेंशन अपने नाम किए जाने का अनुरोध बैंक को दिया तो उन्हें कर्मचारियों ने परेशान करना शुरू किया। कभी कागज़ों में कमी बताई, तो कभी उनकी असली प्रति लेकर आने के नाम पर उन्हें टाल दिया जाता। अंततः एक सामाजिक कार्यकर्ता के मदद से उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया। इस आवेदन के जमा होने के 15 दिन के अंदर ही पेंशन के तमाम कागज़ात दे दिए गए, साथ ही पेंशन मिलनी भी शुरू हो गई। इस तरह 81 वर्ष की जयलक्षम्मा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक लड़ाई महज़ 15 दिन में ही जीत ली।

रूची मनुज फोणगे, पुणे के साम्बायसिस कॉलेज में पढ़ाती हैं। 1997 में उन्हें यहां अस्थाई रूप से सेवा में रखा गया था, लेकिन 2000 में उनकी सेवा स्थाई कर दी गई तथा कॉलेज में तथा कॉलेज में उन्हें बतौर प्राध्यापक सेवा में लिए जाने का नियुक्ति पत्र भी दे दिया गया। साथ ही उनका वेतन बढ़ने की सूचना भी उन्हें दी गई। लेकिन अगले महीने उन्हें बढ़ी हुई राशि नहीं मिली। रूची ने इस सिलसिले में कई दफ्तरो के चक्कर काटे। इसकी शिकायत शिक्षा निदेशालय से की, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। बार-बार लिखित अनुरोध करने के बाद हार कर उसे सूचना के अधिकार का प्रयोग किया और महज़ 29 दिनों में उनका 4 साल का बकाया वेतन 3 लाख रूपये चैक के रूप में मिल गया।

इस तरह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सूचना का अधिकार न सिर्फ भ्रष्टाचार पर एक तमाचा है, बल्कि व्यवस्था को दुरूस्त करने के नाम पर राजनीतिक रोटी सेंकने वालों के लिए एक सबक भी है। इस अधिकार के द्वारा न सिर्फ मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों एवं किसी जांच प्रक्रिया के पूरे हो जाने पर उसके बारे में उसके बारे में सूचना प्राप्त की जा सकती है, बल्कि ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत , ज़िला पंचायत, नगर पंचायत, विधायक, सांसद, विधान परिषद सदस्य इत्यादि के कार्यों, निधियों एवं आय-व्यय के साथ-साथ महिलाओं के लिए चल रहे विकास कार्यों व योजनाओं का भी ब्यौरा लिया जा सकता है, जिससे महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक मज़बूती का मार्ग प्रशस्त होगा।

अगर इस अधिकार के इतिहास पर नज़र डाली जाए इसे लागू करने में सबसे अधिक भागीदारी महिलाओं की ही है। इसके लिए महिलाओं ने ही सैकड़ों रातें पथरीली सड़कों पर गुज़ारी हैं। पुलिस के डंडे खाए तथा जेल भी गई हैं। नेताओं, अफसरों और यहां तक कि अपराधियों ने उन्हें निशाना भी बनाया। कई महिलाओं पर जानलेवा हमले भी हुए।

इस प्रकार इसमें महिलाओं का अमूल्य व अद्वितीय योगदान रहा है। यही कानून महिलाओं को पूरी तरह सुरक्षा देने में सक्षम हो सकता है। सूचना के अधिकार के माध्यम से महिला सशक्तिकरण अभियान को और सशक्त बनाया जा सकता है। क्योंकि पारिवारिक जीवन से लेकर राष्ट्रीय संदर्भ में महिलाएं इस अधिकार का प्रयोग कर बहुत कुछ प्राप्त कर सकती हैं तथा अपनी ज़िन्दगी को एक नई दिशा दे सकती हैं, जिनसे उनकी दशा में सुधार की कल्पना की सकती है।

1 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

श्री अफरोज आलम साहिल जी एक चुनौतीपूर्ण, किन्तु समाज ओर देश के सुखद भविष्य के लिये जरूरी अभियान के लिये आपके प्रयास सराहनीय हैं। आज मीडिया भी भ्रष्टाचार के गर्त में डूबा हुआ है। यह सबसे बडी समस्या है। कोई भी आन्दोलन बिना मीडिया के सक्रिय सहयोग के आसानी से आगे नहीं बढ पाता है। वर्तमान में मीडिया के लोग भी भ्रष्टाचार में खुलकर और बेधडक डुबकी लगा रहे हैं। इसके बावजूद भी अपनी मुहिम को जारी रखें। शुभकामनाओं सहित।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है। इसमें वर्तमान में ४२८० आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८)