मंगलवार, 30 मार्च 2010

विज्ञापन बाबा की जय...


हाल में विकास की जो तस्वीर मीडिया ने बिहार व देश की जनता के सामने पेश की है, वो बिल्कुल सच नहीं है। दरअसल, नीतीश सरकार ने बिहार के ज़्यादातर मीडिया संस्थानों की आर्थिक नस दबा रखी है। इसके लिए सरकारी विज्ञापनों को जरिया बनाया है। क्योंकि राज्य सरकार से मिले कागज़ के टुकडे यह बताते हैं कि वर्तमान राज्य सरकार का काम पर कम और विज्ञापन पर ज़्यादा ध्यान रहा है। बिहार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा वर्ष 2005-10 के दौरान 28 फरवरी 2010 तक यानी नीतिश के कार्यकाल के चार सालों में लगभग 38 हज़ार अलग-अलग कार्यों के विज्ञापन जारी किए गए और इस कार्य के लिए विभाग ने 64.48 करोड़ रुपये खर्च कर दिए, जबकि लालू-राबड़ी सरकार अपने कार्यकाल के 6 सालों में सिर्फ 23.90 करोड़ ही खर्च किए थे।

सूचना के अधिकार के ज़रिए सूचना एवं जन-सम्पर्क विभाग से मिले जानकारी बताती है कि वर्ष 2009-10 में 28 फरवरी 2010 तक 19,66,11,694 रूपये का विज्ञापन इस विभाग के द्वारा जारी किए गए हैं, जिसमें 18,28,22,183 रूपये प्रिन्ट मीडिया पर और 1,37,89,511 रूपये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर खर्च हुआ है।

जानकारी यह भी बताती है कि नीतिश सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर एक ही दिन 1,15,44,045 रूपये का विज्ञापन 24 समाचार पत्रों को जारी किया गया है, जिसकी सूची आप नीचे देख सकते हैं।

1. हिन्दुस्तान (पटना+भागलपुर+मुजफ्फरपुर+दिल्ली)— (9 पृष्ठों का विज्ञापन)— 37,09,162 रूपये

2. दैनिक जागरण (पटना+भागलपुर+मुजफ्फरपुर+दिल्ली)— (9 पृष्ठों का विज्ञापन)— 27,89,835 रूपये

3. आज, पटना— (5 पृष्ठों का विज्ञापन)— 3,66,546 रूपये

4. प्रभात खबर, पटना— (9 पृष्ठों का विज्ञापन)— 3,89,622 रूपये

5. राष्ट्रीय सहारा, पटना— (5 पृष्ठों का विज्ञापन)— 1,52,132 रूपये

6. टाईम्स ऑफ इंडिया, पटना— (5 पृष्ठों का विज्ञापन)— 1,80,850 रूपये

7. हिन्दुस्तान टाईम्स, दिल्ली— (3 पृष्ठों का विज्ञापन)— 15,80,640 रूपये

8. इंडियन एक्सप्रेस, दिल्ली— (3 पृष्ठों का विज्ञापन)— 1,15,784 रूपये

9. दैनिक भास्कर, भोपाल— (एक पृष्ठ का विज्ञापन)— 1,30,486 रूपये

10. सन्मार्ग, कोलकाता— (एक पृष्ठ का विज्ञापन)— 63,916 रूपये

11. इकोनॉनिक्स टाईम्स, कोलकाता— (पांच पृष्ठों का विज्ञापन)— 2,17,845 रूपये

12. पंजाब केसरी, दिल्ली— (एक पृष्ठ का विज्ञापन)— 1,91,543 रूपये

13. बिजनेस स्टेण्डर्ड, दिल्ली— (दो पृष्ठों का विज्ञापन)— 50,643 रूपये

14. बिजनेस स्टेण्डर्ड, मुंबई— (एक पृष्ठ का विज्ञापन)— 25,321 रूपये

15. प्रातः कमल, मुज़फ्फरपुर— (एक पृष्ठ का विज्ञापन)— 38,595 रूपये

16. कौमी तंज़ीम, पटना— (सात पृष्ठों का विज्ञापन)— 2,70,162 रूपये

17. फारूकी तंज़ीम, पटना— (सात पृष्ठों का विज्ञापन)— 2,70,162 रूपये

18. पिन्दार, पटना— (सात पृष्ठों का विज्ञापन)— 2,51,580 रूपये

19. संगम, पटना— (सात पृष्ठों का विज्ञापन)— 2,70,162 रूपये

20. इन्कलाब-ए-जदीद, पटना— (एक पृष्ठ का विज्ञापन)— 38,595 रूपये

21. प्यारी उर्दू, पटना— (दो पृष्ठों का विज्ञापन)— 71,880 रूपये

22. राजस्थान पत्रिका, जयपुर— (एक पृष्ठ का विज्ञापन)— 1,86,642 रूपये

23. अमर उजाला— (एक पृष्ठ का विज्ञापन)— 88,829 रूपये

24. रोजनामा राष्ट्रीय सहारा, उर्दू, पटना— (छह पृष्ठों का विज्ञापन)— 93,117 रूपये

तो ज़ाहिर है कि नीतिश के कार्यकाल में सबसे ज़्यादा फायदा यहां के मीडिया उधोग को हुई है। इसलिए वो विकास के पीछे के सच को जनता के सामने लाना मुनासिब नहीं समझते। इन्हें इस बात का डर है कि अगर इन सच्चाईयों पर से पर्दा उठा दिया तो सरकारी विज्ञापनों से हाथ धोना पड़ सकता है। (क्योंकि राज्य विज्ञापन नीति ( स्टेट एडवर्टिजमेंट पॉलिसी)- 2008 के तहत अगर किसी मीडिया संस्थान का काम राज्य हित में नहीं हैं तो उसे दिये जा रहे विज्ञापन रोके जा सकते हैं। उसे स्वीकृत सूची से किसी भी वक़्त बाहर किया जा सकता है।)






3 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

afroz bhai..
aap to bawal kiye hue hain...
kya bihar mein election ladhne ka plan hai kya...?

Chandan Singh ने कहा…

very good..

Ye jo jankari apne published kiya hai hai wo kabile tarif hai...ye dhoungi Baba ne pure media samaj ko hi kharid liya hai..

ynha ki media purn rupen bik chuki hai..

एक बिहारी युवा ने कहा…

प्यारे अफरोज आलम ,
आपने जो नितीश सरकार का काला चिठ्ठा जनता के सामने रखा है वो निःसंदेह काबिले तारीफ़ है. ये सच है की बिहार की प्रिंट मीडिया (अखबार वाले ) नितीश कुमार की रखैल बन चुकी है. ये सिर्फ वही छाप रहे हैं हैं जो नितीश सरकार चाहती है. दरअसल नितीश सरकार ने भ्रष्टाचार की तमाम सीमाएं तोड़ दी है. हरेक डिपार्टमेंट को नितीश सरकार ने बेच दिया है. और ये अखबार वाले उनकी सभी काली करतूतों पर पर्दा डाले हुए है. हालांकि ऐसा नहीं है की बिहार की जनता मुर्ख है और वो इन अखाबारबाज़ियों के पेंच को नहीं समझ रही है. बिहार में सच्चाई को दबा कर सिर्फ झूठ छाप देने से बिहारवासियों के मन में अब ये बात पूरी तरह से बैठ गयी है कि बिहार में सिर्फ सरकारी विज्ञापन के जरिये ही विकास का झूठा नारा दिया जा रहा है और अन्दर अन्दर भ्रष्टाचार के जरिये गरीब बिहार का अरबों रुपया स्विट्जर्लैंड के बैंक में जमा हो रहा है. नितीश कुमार के इस पाप का घड़ा भरा चुका है. अब वो कभी भी दुबारा सत्ता में नहीं आ सकते हैं. वो खुद तो डूबेंगे ही साथ ही साथ जेडीयू के कुछ इमानदार नेताओं का भी भविष्य हमेशा के लिए खराब कर देंगे. मुझे लगता है कि आज बिहार का हर नागरिक नितीश सरकार से मुक्ती पाने के लिए उतना ही छटपटा रहा है जितना भारतवासी कभी अंग्रेज के शासन काल से अंग्रेजों सेमुक्ती पाने के लिए छटपटा रहे था.