“सत्ता संभालते ही नीतिश कुमार ने राज्य में शिक्षा की दरकती दीवार को मज़बूती प्रदान करते हुए इसके आधारभूत ढांचा को मजबूत करते हुए एक नयी संस्कृति की शुरुआत की। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च और तकनीकी शिक्षा तक में गुणात्मक सुधार हेतु त्वरित कार्रवाई की, जिसके सार्थक परिणाम आने लगे हैं। आज बिहार में शिक्षा के विकास के चलते दूसरे प्रदेशों में चलने वाली शिक्षा की दुकानें लगभग बंद हो गई हैं। आज अभिभावकों के कड़ी मेहनत के पैसों का उपयोग बिहार में ही हो रहा है और बच्चे समयानुसार परीक्षा देकर दूसरे राष्ट्रीय संस्थानों में अच्छा स्थान प्राप्त कर बिहार का नाम रौशन कर रहे हैं...... ”
ज़रा ठहरिए! ये आप क्या पढ़ रहे हैं...? ये पंक्तियां मेरे आलेख का हिस्सा नहीं हैं। ये मैं नहीं लिख रहा हूं, बल्कि ये बिहार सरकार द्वारा अपने कार्यकाल के चार साल पूर्ण होने के उपलक्ष्य में देश के कई प्रमुख अखबारों में छपे आठ पृष्टों के विज्ञापन का एक अंश है, जिसे मैंने दिनांक 24 नवंबर 2009 को नई दिल्ली के दैनिक हिन्दुस्तान में पढ़ा। इन पंक्तियों का सच के साथ कोई विशेष रिश्ता नहीं है। क्योंकि मेरे अनुभव तो यही बता रहे हैं, जिसे मैंने स्वयं बिहार के चम्पारण ज़िले में अभी जाकर महसूस की। आईए! इन सच्चाईयों से आप भी रूबरू हो जाईए। ये सच्चाईयां बिहार के उन दो ज़िलों के हैं, जहां नीतिश जी के अधिक संख्या में अपने विधायक व सांसद हैं।
पश्चिम चम्पारण ज़िले के कई मध्य विध्यालय प्रधानाध्यापक विहीन हैं। इस बात की पुष्टि खुद ज़िला शिक्षा अधीक्षक अमित कुमार कर रहे हैं। उनका कहना है कि ‘कई स्कूलों के हेडमास्टर नहीं होने के कारण सभी योजनाओं को लक्ष्य पर पहुंचाने में ग्रहण लग रहा है।’ ज्ञातव्य हो कि ज़िले में करीब अठारह सौ मध्य विध्यालय हैं जिनमें लगभग 60 फीसद मध्य विध्यालय बिना हेडमास्टर के चल रहे हैं।
पश्चिम चम्पारण ज़िले के योगापट्टी के लक्ष्मीपुर उच्च विध्यालय के 800 छात्र महज़ सात शिक्षक के भरोसे हैं। यह विध्यालय कभी ज़िले के गिने-चुने विध्यालयों में आता था, मगर वर्तमान में इसकी स्थिति दयनीय बनती जा रही है। परिसर में लगा पुआल का पुंज विध्यालय की शोभा बढ़ा रहा है। अगर क्षेत्र के बुद्धिजीवियों की बात मानें तो इस विध्यालय में करीब 40 एकड़ ज़मीन है, जो कि संभवतः राज्य के सभी उच्च विध्यालय के परिसंपत्तियों से ज़्यादा है। खुद यहां के प्रभारी प्रधानाध्यापक श्री निवास सिंह का कहना है कि ‘कहने को तो यह विध्यालय संपत्तिशाली है, मगर शिक्षा के नाम पर यहां संसाधनों का टोटा है।’
पश्चिम चम्पारण ज़िले के ही रामनगर का एकमात्र कन्या उच्च विध्यालय +2 शिक्षा संस्थान के रूप में उत्क्रमित तो हुआ लेकिन मामला बस वहीं तक रह गया। यहां एक तरफ शिक्षकों का अभाव है, तो दूसरी ओर नव निर्मित वर्ग कक्षों में ब्लैक बोर्ड का नहीं बनना छात्राओं के लिए अभिशाप साबित होने लगा है। आलम यह है कि कुल 15 सेक्शन में बंटी विध्यालय की वर्ग व्यवस्था के लिए सिर्फ 14 शिक्षक फिलवक़्त यहां पदस्थापित हैं। इनमें से एक इसी माह तथा दो अन्य अगले तीन माह में सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
पश्चिम चम्पारण के ज़िला मुख्यालय बेतिया का सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित व ऐतिहासिक महारानी जानकी कुंअर महाविध्यालय में तो बगैर शिक्षक के ही एमए, बीए व इंटर की पढ़ाई हो रही है। चौकिए मत! सिर्फ पढ़ते ही नहीं, बल्कि अच्छे नंबरों से परीक्षा पास भी कर जाते हैं। इस महाविध्यालय में एक-दो विषयों को छोड़कर बाकी सभी विषयों में ही शिक्षकों की भारी कमी है। भूगोल की पढ़ाई के लिए पूरे विश्वविध्यालय में एमजेके कॉलेज की एक अपनी अलग पहचान थी, बल्कि मात्र आरडीएस और एमजेके कॉलेज में ही इस विषय की पढ़ाई होती थी। आज यह विभाग पूरी तरह शिक्षक विहीन है, जबकि एमए भूगोल में छात्र-छात्राओं की संख्या 31 है। महाविध्यालय में अंग्रेज़ी, संस्कृत, उर्दू, रसायनशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और इतिहास जैसे विषयों के लिए सिर्फ एक-एक शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि भूगोल, संगीत और दर्शनशास्त्र के लिए कोई शिक्षक बहाल नहीं है। इस प्रकार बेतिया के सारे कॉलेजों में बस नामांकन व परीक्षा फॉर्म ही भरा जाता है। पढ़ाई तो छात्र घर पर ही करते हैं। ज़्यादा परेशानी पर वे प्राईवेट कोचिंग का सहारा लेते हैं। वैसे भी नंबर की कोई चिंता होती नहीं। परीक्षा बाद जुगाड़ व कुछ पैसे लगा कर अच्छे नंबर आ ही जाते हैं। एमजेके कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आर. एन. राय बताते हैं- ‘कई बार कॉलेज में रिक्त पदों पर शिक्षकों की बहाली तथा दूसरे जगहों से प्रतिनियुक्त करने के लिए विश्वविध्यालय को लिखा गया है। परंतु आज तक इस पर कोई विशेष कार्रवाई नहीं हुई। शिक्षकों की कमी से छात्रों का भविष्य खराब हो रहा है। इसमें कोई संशय नहीं है।’
यही नहीं, बेतिया में गर्वेंट मेडिकल कॉलेज खोलने की पहल नीतिश कुमार जी ने की। यहां तक कि बड़े ताम-झाम के साथ बेतिया के महाराजा स्टेडियम में ही शिलान्यास हुआ। लेकिन आज तक कोई भी काम आगे नहीं बढ़ सका।
बात अगर पूर्वी चम्पारण ज़िले की करें तो वहां भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। मोतिहारी के ज़िला स्कूल में तो +2 की पढ़ाई बगैर किसी शिक्षक के ही चल रही है। यहां +2 के प्रथम वर्ष यानी ग्यारहवीं क्लास में विज्ञान के 75 छात्र हैं और कला के 20, जबकि बारहवीं में विज्ञान के 65 और कला के 45 छात्र हैं, लेकिन इन्हें पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक मौजूद नहीं हैं। दसवीं तक के छात्र इस स्कूल में करीब 800 हैं और इनके लिए शिक्षकों का तादाद वर्तमान में सिर्फ 7 है। मातृभाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत व इतिहास के एक भी शिक्षक नहीं हैं। हॉस्टल के चार कमरों पर एसटीएफ का कब्ज़ा है। विध्यालय में वायरिंग खराब होने के कारण बिजली की आपूर्ति तक नहीं है। जबकि वर्ष 1867 में ज़िला मुख्यालय मोतिहारी में बना यह ज़िला स्कूल कभी शिक्षा जगत में ज़िले का शान समझा जाता था। इस संबंध में डीईओ महेश चन्द्र पटेल का कहना है कि ‘ज़िला स्कूल के मॉडल स्कूल का दर्जा होने के कारण उसमें वर्तमान नियमावली बनेगी। तत्काल प्रतिनियोजन से शैक्षणिक कार्य चलाने हेतु प्राचार्य को संचिका बढ़ाने का निर्देश दिया गया है।’
मोतिहारी शहर का मंगल सेमिनरी विध्यालय भी शिक्षको की कमी से जुझ रहा है। यहां +2 में 10 शिक्षक हैं जिनमें 1 स्थायी व 9 नियोजित शिक्षक हैं। +2 में वनस्पतिशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, गृहविज्ञान, कामर्स व संगीत के शिक्षक नहीं हैं। लाइब्रेरियन का पद रिक्त है। वहीं सेकंडरी में शारीरिक शिक्षक नहीं है। यहां प्राचार्या मीना कुमारी ने छात्रों को लैब कराए जाने की बात कही, जबकि लैब की सामग्रियों पड़े धूलकण व रखे गए अन्य सामान दूसरी ही कहानी बयां कर रहे हैं। वहीं शिक्षको के झारखंड स्थानांतरित हो जाने की वजह से व्यवसायिक कोर्स की पढ़ाई बाधित हो गई है। विदित हो कि यहां ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग, हाउस होल्ड वायरिंग व रेडियो एंड टीवी टेक्नोलॉजी व्यवसायिक पाठ्यक्रम संचालित होता है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि व्यवसायिक कोर्स के लिए बनने वाला कर्मशाला सह प्रशिक्षण केन्द्र का निर्माण कार्य करीब 15 वर्ष पूर्व अधूरा छोड़ दिया गया जिस कारण आज यह ध्वस्त होने के कगार पर है। यहां आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि विगत 4 जून 2005 को तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा सचिव नवीन वर्मा ने पत्रांक 106 के द्वारा डीएम से कर्मशाला निर्माण से संबंधित उपयोगिता मांगा था। इधर, विध्यालय में पिछले दो साल के अंदर निर्मित भवनों की स्थिति राशि के बंदरबांट का संकेत देती है। मसलन +2 के अतिरिक्त कक्ष निर्माण के लिए मिली 26 लाख की राशि से निर्मित दो मंज़िला नए भवन की ज़मीन में उदघाटन के बाद ही दरारें आ गई। इस संबंध में डीईओ महेश चन्द्र पटेल का कहना है कि ‘द्वितीय चरण के नियोजन से शिक्षकों की कमी बहुत हद तक दूर हो जाएगी। प्रायोगिक कक्षाएं चलाने का पूर्व में सभी +2 स्कूलों को निर्देश दिया जा चुका है। लैब नहीं चलने की शिकायत मिलने पर जांच कर कार्रवाई होगी। भवन निर्माण में अनियमितता की जांच होगी।’
तो ये थी दो ज़िलों की कुछ छोटी-छोटी बातें। बाकी का अंदाज़ा आप खुद लगा सकते है। अंत में नितिश जी से यही कहना चाहुंगा कि नीतिश जी बिहार के जनता को कब तक आप धोखा देते रहेंगे। अब जनता आपके झूठे विज्ञापन व वादों के चक्कर में नहीं पड़ने वाली, क्योंकि वो अब आपके शासनकाल में कुछ ज़्यादा ही समझदार हो गई है और शिक्षा के स्तर को उपर उठाने हेतु आप बड़े-बड़े संस्थान तो खोल ही रहे हैं।
अफरोज़ आलम साहिल
1 टिप्पणियाँ:
BHAI SAHEB! AAP TAARIF KAR RAHE HO YA NITISH KI LE RAHE HO...?
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