भारत से हर साल करीब सवा लाख लोग हज करने के लिए सऊदी अरब के मक्का जाते हैं। हज के लिए जरूरी है कि उसे मेहनत की गाढ़ी कमाई से किया जाए। लेकिन सूचना के आधिकार के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में पता चला है कि हर साल कम से कम तीस लोग सरकारी खर्चे पर हज करने जाते हैं। हज गुडविल डेलिगेशन नाम के इस जत्थे में शामिल लोग जेब से एक पैसा खर्च किए बिना हज करते हैं। पूरे खर्चे का भुगतान भारत सरकार करती है। इन लोगों का चयन प्रधानमंत्री कार्यालय से किया जाता है। विदेश मंत्रालय इन लोगों के आने-जाने, रहने और खाने-पीने का इंतजाम करता है।
हज गुडविल डेलिगेशन का मकसद था हज के दौरान दो देशों के बीच संबंधों को बेहतर करना। शुरुआत में 4-5 लोग इस डेलिगेशन में जाते थे। बाद में ये लिस्ट बढ़ती गई। अपने खास लोगों को खुश करने का सरकार ने इसे बहाना बना लिया और इस लिस्ट में शामिल हो गए गवर्नर, हाई कोर्ट के जज और यहां तक कि आम पत्रकार।
सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय ने बताया है कि 2005 में 34 लोग हज डेलिगेशन में गए। जिन पर सरकार ने 2 करोड़ 80 लाख रुपया खर्च किया। 2006 में 24 लोग सरकारी खर्च पर हज करने गए। खर्चा आया 2 करोड़ 8 लाख रुपया। 2006 में दोबारा 27 लोग हज पर गए जिन पर 2 करोड़ 39 लाख रुपये खर्च हुए। 2007 में 29 लोग हज डेलिगेशन के तहत मक्का गए। कुल खर्च आया 2 करोड़ 55 लाख रुपये। 2008 में 34 लोग सरकारी खर्च पर हज करने गए, जिन पर 4 करोड़ 37 लाख रुपया खर्च हुआ।
सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर ये जानकारी निकाली है दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के एक छात्र अफरोज आलम साहिल ने। साहिल का मानना है कि आम आदमी के टैक्स का पैसा किसी धार्मिक काम में इस तरह इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। वो कहते हैं कि गरीब आदमी नहीं जा पाता और आम आदमी के पैसे से कैसे कैसे लोग चले जाते हैं। और इतने सारे लोगों के जाने का कोई मतलब नहीं है।
70 के दशक में हज डेलिगेशन की परंपरा ये कहकर शुरू की गई थी कि भारत के कुछ लोग सऊदी अरब जाकर वहां के बादशाह और अधिकारियों को भारत के बारे में बताएंगे। शुरू में इसके लिए दो-चार लोग ही भेजे जाते थे। लेकिन धीरे-धीरे इस परंपरा के नाम पर लोगों का हुजूम सरकारी पैसे से हज करने जाने लगा। इस डेलिगेशन में कौन लोग जाएंगे, और उनका चयन कैसे होगा, इसकी कोई रूपरेखा भी तय नहीं है। ज़हिर है इसका फायदा रसूखदार लोगों और उनके दोस्तों, रिश्तेदारों ने उठाया।
आम हाजी से आठ गुना खर्च करता है सरकारी हाजी
सवाल सिर्फ हज डेलिगेशन जाने का नहीं है। उस पर की जाने वाली फिजूलखर्ची का भी है। आम आदमी एक से डेढ़ लाख रुपए में हज कर आता है। लेकिन हज डेलिगेशन में जाने वाले हर आदमी पर सरकार 8 से 13 लाख रुपए खर्च करती है। चौंकाने वाली बात ये भी है कि इस डेलिगेशन में ज्यादातर राजनेता होते हैं। इनमें से कुछ ने एक बार नहीं, कई बार मुफ्त में हज किया है। आम आदमी से करीब आठ गुना ज्यादा खर्च हो रहा है। वो भी चार साल में डेढ़ गुना हो गया। उधर, जानकार सरकारी पैसे से हज को इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ बता रहे हैं।
अब जरा देखिए हज डेलिगेशन में जाने वाले कौन लोग हैं। 2008 के हज डेलिगेशन में शामिल थे उस वक्त झारखंड के गवर्नर रहे सैयद सिब्ते रजी। गुवाहाटी हाईकोर्ट के जज जस्टिस आफताब हुसैन। सोशलाइट नफीसा अली। रेल राज्य मंत्री ई अहमद तीन बार मुफ्त हज कर चुके हैं। पूर्व एमपी शफीकउर्रहमान बर्क सरकारी पैसे से दो बार हज कर चुके हैं। बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन भी दो बार हज डेलिगेशन में जा चुके हैं।
लेकिन पूछे जाने पर सीधा जवाब न देकर शाहनवाज हुसैन यूपीए सरकार को कोसने लगते हैं। उधर सरकार के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। रेल राज्यमंत्री ई अहमद कहते हैं कि गठबंधन सरकार में कई पार्टियों को संतुष्ट करना पड़ता है इसलिए लिस्ट बढ़ती जा रही है।
अब ये समझना मुश्किल है कि मिलीजुली सरकार का हज से क्या लेना देना है। साफ है कि मामला माल-ए-मुफ्त-दिल-ए-बेरहम वाला है। लेकिन ऐसा करने वाले भूल जाते हैं कि माल-ए-मुफ्त से हज करने वालों को सबाब नहीं मिलता।
1 टिप्पणियाँ:
आप बेहतर लिख रहे हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानदेही करती है कि आप एक जागरूक और प्रतिबद्ध रचनाकार हैं जिसे रोज़ रोज़ क्षरित होती इंसानियत उद्वेलित कर देती है.वरना ब्लॉग-जगत में आज हर कहीं फ़ासीवाद परवरिश पाता दिखाई देता है.
हम साथी दिनों से ऐसे अग्रीग्रटर की तलाश में थे.जहां सिर्फ हमख्याल और हमज़बाँ लोग शामिल हों.तो आज यह मंच बन गया.इसका पता है http://hamzabaan.feedcluster.com/
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