बुधवार, 30 जून 2010

नहीं मिलेगी एमसी शर्मा की ट्रीटमेंट रिपोर्ट!

नई दिल्ली. बाटला हॉउस एनकाउंटर मामले पर लगातार उठ रहे सवालों के बीच अब एक ओर नया बखेड़ा खड़ा हो गया है। सूचना अधिकार के तहत एम्स के जेपी ट्रामा सेंटर की ओर से इंस्पेक्टर एमसी शर्मा की क्लीनिकल ट्रीटमेंट रिपोर्ट उपलब्ध न कराने जाने पर जामिया टीचर्स सोलिडेरिटी एसोसिएशन ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर ही सवालिया निशान लगा दिया है।

एसोसिएशन का कहना है कि आखिरी रिपोर्ट में ऐसा क्या है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। आरटीआई दाखिल करने वाले जामिया छात्र अफरोज आलम ने बताया कि उन्होंने 23 मार्च को एक आरटीआई दाखिल कर एम्स के जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रामा सेंटर से इंस्पेक्टर एमसी शर्मा की क्लीनिकल ट्रीटमेंट रिपोर्ट मांगी थी ताकि पता चल सके कि उनकी मौत किन हालातों में हुई।


इसके अलावा आतिफ अमीन, मो. साजिद व इंस्पेक्टर शर्मा की पोस्टमार्टम के दौरान ली गई फोटो की भी मांग की। ऐसी ही जानकारियों के साथ उन्होंने दस अहम सवाल ट्रामा सेंटर से पूछे। इन सवालों का जवाब 10 अप्रैल को आया और कहा गया कि सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 8 (1) जी (ऐसी जानकारी जिससे किसी के जीवन व शारीरिक सुरक्षा पर खतरे की आशंका हो) व धारा 8 (1) एच (ऐसी जानकारी जिससे किसी आपराधिक मामले की जांच में बाधा पैदा हो) के तहत मांगी गई जानकारी नहीं दी जा सकती है।


अफरोज ने बताया कि ऐसा कोई भी सवाल नहीं पूछा गया है जिससे किसी का कोई नुकसान होता हो और रही बात मामले की जांच की तो वह तो पहले ही पुलिस प्रशासन पूरी कर चुका है।


ऐसे में जानकारी उपलब्ध न कराके प्रशासन कहीं न कहीं उन्हें सूचना अधिकार से वंचित कर रहा है। इस विषय में जामिया टीचर्स सोलिडेटरी ऐसोसिएशन की मनीष सेठी का कहना है कि जिस तरह से प्रशासन जानकारियों को छुपा रहा उससे तो यह ही प्रतीत होता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि सच्चई जग जाहिर हो।

'चुप क्यों है दिल्ली‘

बटला हाउस एनकाउन्टर
आज की रात बहुत सर्द हवा चलती है, आज की रात न फुर्सत से नींद आएगी। सब उठो, मैं भी उठूं, कोई खिड़की इस दीवार में खुल जायेगी‘ मरहूम शायर कैफी आज़मी जब इन जज़्बातों को शब्दों का जामा पहन रहे थे, तो उनके दिमाग में क्या था, ये तो उनके साथ ही चला गया लेकिन उनकी लाइनें आ हिन्दुस्तान के एक बड़े और हिस्से का अनचाहा दर्द बन चली है। बटला हाउस में हुये कथित एनकाउन्टर के बाद जब मुस्लिम घरों में मातम शुरू हुआ तो दिल्ली के कुछ खास चेहरों पर पड़यत्रकारी मुस्कानों ने स्थायी घर बना लिया।
नग्न सियासत की की चालों पर कुर्बान किये आज़मगढ़ के दो नौजवान आतिफ अमीन और मो. साजि़द की कब्र से उठ रही। इन्साफ की आवाजें अब अपना मुकाम बनाने लगी हैं। लगभग ढेढ़ साल से आतिफ अमीन और मो. साजिद की पोस्टमार्टम की मांग नक्कारखाने में तूती की आवाज़ साबित होती रही। एक छोटी सी कोशिश कितने बड़े काम अंजाम दे सकती है, यह एक बार फिर उस समय सच साबित हुआ जब अफरोज आलम साहिल (आर.टी.आई. कार्यकर्ता) के हौसले ने सत्ता प्रतिष्ठोनों के फरेबों को धता बता दिया। कुख्यात आंतकवादी के रूप में दिल्ली पुलिस की खूनी गोलियों का निशाना बनें आतिफ और साजिद की मौत ने मुस्लिम गलियारों में पहले खौफ अब नाइन्साफी के खिलाफ लड़ाई का जज़्बा पैदा कर दिया। यासिर बिन तय्यब की इन लाइनों पर सोचना ही पड़ेगा।

ना अजदाद का निशां होगा
न तारीख का पता होगा
गर झुक गये हम आज
गर रूक गये हम आज
ये कलम शिब्ली और हमीद की
इन्साफ और उम्मीद की
इन्कलाब और हक की
न थकेगी अजाम से पहले

अम्बरीष राय
संपादक
बटला हाउस एनकाउंटर मे मारे गये लोगों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर अबू ज़फ़र आदिल आज़मी की खास पेशकश
क्या कहती है पोस्टमार्टम रिपोर्ट
बटला हाउस एनकाउन्टर के डेढ़ साल बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से एनकाउन्टर कीे न्यायिक जांच की मांग में फिर तेजी आ गई है। मानवाधिकार संगठनों और आम लोग इस एनकाउन्टर पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं और अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने उनके सवालों को अधिक गंभीर बना दिया है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र अफरोज आलम साहिल ने इस तथाकथित एनकाउन्टर से सम्बंधित विभिन्न दस्तावेजों की प्रप्ति के लिए सूचना के अधिकार (RTI) के तहत लगातार विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालयों का दरवाजा खटखटाया किन्तु पोस्टर्माटम रिपोर्ट की प्राप्ति में उन्हें डेढ़ साल लग गए।
अफरोज आलम ने सूचना के अधिकार के अन्र्तगत राष्ट्रीय मानवाधिकर आयोग से उन दस्तावेजों की मांग की थी, जिनके आधार पर जुलाई 2009 में आयोग ने अपनी रिर्पोर्ट दी थी। ज्ञात रहे रहे कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट देते हुए पुलिस का यह तर्क मान लिया था कि उसने गोलियां अपने बचाव में चलाई थी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा भेजे गये दस्तावेजों में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अलावा पुलिस द्वारा कमीशन और सरकार के समक्ष दाखिल किए गए विभिन्न कागजात के अलावा खुद आयोग की अपनी रिपोर्ट भी है।
पोस्मार्टम रिपोर्ट के अनुसार आतिफ अमीन 24 साल की मौत तेज दर्द (Shock & Hemorrhage) से हुई और मुहम्मद साजिद (17 साल) की मौत सर में गोली लगने के कारण हुई है। जबकि इन्स्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा की मृत्यु का कारण गोली से पेट में हुए घाव से खून का ज्यादा बहना बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार तीनों ;अतिफ, साजिद और एम सी शर्माद्ध को जो घाव लगे हैं वह मृत्यु से पूर्व (Antemortem in Nature) के हैं।
रिपोर्ट के अनुसार मोहम्मद आतिफ अमीन के शरीर पर 21 घाव हैं जिसमें से 20 गोलियों के हैं। आतिफ को कुल 10 गोलियां लगी हैं और सारी गोलियां पीछे से मारी गई हैं। 8 गोलियां पीठ पर, एक दांए बाजू पर पीछे से और एक बाई जांघ पर नीचे से। 2x1 सेमी का एक घाव आतिफ के दांए पैर के घुटनों पर है। रिपोर्ट के अनुसार यह घाव किसी धारदार चीज से या रगड़ लगने से हुआ है। इस के अलावा रिपोर्ट में आतिफ की पीठ और शरीर पर कई जगह छीलन है जबकि जख्म न. 20 जो बाएं कूल्हे के पास है, से धातु का एक 3 सेमी टुकड़ा मिला है।
मोहम्मद साजिद के शरीर पर कुल 14 घाव हैं। साजिद को कुल 5 गोलियां लगी हैं और उनसे 12 घाव हुए हैं। जिसमें से 3 गोलियां दांहिनी पेशानी के ऊपर, एक गोली पीठ पर बाएं ओर और एक गोली दाहिने कन्धे पर लगी हैं। मोहम्मद साजिद को लगने वाली तमाम गोलियां नीचे की ओर निकली हैं जैसे एक गोली जबड़े के नीचे से (ठोड़ी और गर्दन के बीच) सर के पिछले हिस्से से और सीने से। साजिद के शरीर से 2 धातु के टुकड़े (Metaiic Object) मिलने का रिपोर्ट में उल्लेख है, जिसमें से एक का साइज 8x1 सेमी है। जबकि दूसरा Metaiic Object(GSW -7) से टीशर्ट से मिला है। इस घाव के पास 5x1.5 सेमी लम्बा खाल छिलने का निशान है। पीठ पर बीच में लाल रंग की 4x2 सेमी की खराश है। इसके अलावा दाहिने पैर में सामने (घुटने से नीचे) की ओर 3.5ग2 सेमी का गहरा घाव है। इन देानों घावों के बारे में रिपोर्ट का कहना है यह घाव गोली के नहीं हैं। साजिद को लगे कुल 14 घावों में से रिपोर्ट में 7 घावों को बहुत गहरा (Cavity Deep) कहा गया है। पीठ पर लगे घाव 
इनस्पेक्टर मोहन चन्द्र शर्मा के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि बाए कन्धे से 10 सेमी नीचे घाव के बाहरी हिस्से की सफाई की गई थी। मोहन चन्द्र शर्मा को 19 सिमम्बर 2008 को एल–18 में घायल होने के बाद निकटतम अस्पताल होली फैमली में भर्ती कराया गया था। उन्हें कन्धे के अलावा पेट में भी गोली लगी थी। रिपोर्ट के अनुसार पेट में गोली लगने से खून का ज्यादा स्राव हुआ और यही मौत का कारण बना। एनकाउन्टर के बाद यह सवाल उठाया गया था कि जब शर्मा को 10 मिनट के अन्दर चिकित्सक सहायता मिल गई थी और संवेदनशील जगह (Vital Part) पर गोली भी नहीं लगी थी तो फिर उनकी मौत कैसे हो गई ? यह भी सवाल उठाया गया था कि शर्मा को गोली किस तरफ से लगी ,आगे से या पीछे से ? क्योंकि यह भी कहा जा रहा था कि शर्मा पुलिस की गोली का शिकार हुए हैं, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर पा रही है। होली फैमली अस्पताल जहां उन्हें पहले लाया गया था और बाद में वहीं उनकी मौत भी हुई, में उनके घावों की सफाई की गई। लिहाजा पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर यह नहीं बता सके कि यह गोली के घुसने की जगह है या निकलने की। दूसरा कारण यह है कि शर्मा को एम्स में सफेद सूती कपड़े में ले जाया गया था और उनके घाव यहीं (Adhesive Lecoplast) से ढके हुए थे। रिपोर्ट में लिखा है कि जांच अफसर (I.O.) से निवेदन किया गया था कि वह शर्मा के कपड़े लैब में लाएं। ज्ञात रहे कि शर्मा का पोस्टमार्टम 20 सित्म्बर 2008 को 12 बजे दिन में किया गया था और उसी समय यह रिपोर्ट भी तैयार की गई थी।
मोहम्मद आतिफ अमीन को लगभग सारी गोलियां पीछे से लगी हैं। 8 गोलियां पीठ में लग कर सीने से निकली हैं। एक गोली दाहिने हाथ पर पीछे से बाहर की ओर से लगी है जबकि एक गोली बांईं जांघ पर लगी है और यह गोली हैरतअंगेज तौर पर ऊपर की ओर जाकर बायें कूल्हे के पास निकली हैं। पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सम्बन्ध में प्रकाशित समाचारों और उठाये जाने वाले सवालों का जवाब देते हुए यह तर्क दिया कि आतिफ गोलियां चलाते हुए भागने का प्रयास कर रहा था और उसे मालूम नहीं था कि फ्लैट में कुल कितने लोग हैं इसलिए क्रास फायरिंग में उसे पीछे से गोलियां लगीं लेकिन एनकाउन्टर या क्रास फायरिंग में कोई गोली जांघ में लगकर कूल्हे की ओर कैसे निकल सकती है? आतिफ के दाहिने पैर के घुटने में 1.5ग1 सेमी का जो घाव है इसके बारे में पुलिस का कहना है कि वह गोली चलाते हुए गिर गया था। पीठ में गोलियां लगने से घुटने के बल गिरना तो समझ में आ सकता है, लेकिन विशेषज्ञ इस बात पर हैरान हैं कि फिर आतिफ के पीठ की खाल इतनी बुरी तरह कैसे उधड़ गई? पोस्मार्टम रिपोर्ट के अनुसार आतिफ के दाहिने कूल्हे पर 6 से 7 सेमी के भीतर कई जगह रगड़ के निशानात भी पाए गए।
साजिद के बारे में भी पुलिस का कहना है कि साजिद एक गोली लगने के बाद गिर गया था और वह क्रास फायरिंग के बीच आगया। इस तर्क को गुमराह करने के अलावा और क्या कहा जा सकता है कि साजिद को जो गोलियां लगी हैं उन में से तीन पेशानी (Fore Head) से नीचे की ओर आती हैं। जिसमें से एक गोली ठोेड़ी और गर्दन के बीच जबड़े से भी निकली है। साजिद के दाहिने कन्धे पर जो गोली मारी गई है वह बिल्कुल सीधे नीचे की ओर आई है। गोलियों के इन निशानात के बारे में पहले ही स्वतन्त्र फोरेन्सिक विशेषज्ञ का कहना था कि या तो साजिद को बैठने के लिए मजबूर किया गया या फिर गोली चलाने वाला ऊंचाई पर था। जाहिर है दूसरी सूरत उस फ्लैट में सम्भव नहीं है। दूसरे यह कि क्रास फायरिंग तो आमने सामने होती है ना कि उपर से नीचे की ओर।
साजिद के पैर के घाव के बारे में रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यह किसी गैर धार वस्तु (Blunt Force by Object or Surface) से लगा है। पुलिस इसका कारण गोली लगने के बाद गिरना बता रही है, लेकिन 3.5x2 सेमी का गहरा घाव फर्श पर गिरने से कैसे आ सकता है? पोस्टमार्टम रिपोर्ट से इस आरोप की पुष्टि होती है कि आतिफ व साजिद के साथ मार पीट की गई थी।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशानुसार इस प्रकार के केस में पोस्टमार्टम की रिपोर्ट, वीडियो ग्राफी रिपोर्ट के साथ आयोग के कार्यालय भेजा जाए। लेकिन एम. सी. शर्मा की रिपोर्ट में केवल यह लिखा है कि घावों की फोटो पर आधारित सी. डी. सम्बंधित जांच अफसर के सुपुर्द की गई।
साल 2008 में होने वाले सीरियल धमाकों के बारे में विभिन्न रायें पाई जाती हैं। कुछ लोग इन तमाम घटनाओं को हेडली की भारत यात्रा से जोड़ कर देखते हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज ने अहमदाबाद धमाकों के बाद सवंाददाताओं से कहा था कि यह सब कांग्रेस करा रही है क्योंकि न्युक्लियर समझौते के मुद्दे पर लोकसभा में नोट की गड्डियों के पहुंचने से वह परेशान हैं और जनता के जेहन को मोड़ना चाहती है। समाजवादी पार्टी से निष्कासित सांसद अमर सिंह के अनुसार सोनिया गांधी बटला हाउस एनकाउन्टर की जांच कराना चाहती थी लेकिन किसी कारण वह ऐसा नहीं कर सकीं लेकिन उन्होंने इस का खुलासा नहीं किया कि वह कारण क्या है?
बटला हाउस एनकाउन्टर की न्यायिक जांच की मांग केन्द्रीय सरकार के अलावा न्यायाल भी नकार चुके हैं। सबका यही तर्क है कि इससे पुलिस का मोराल गिरेगा। केन्द्रीय सरकार और न्यायालय जब इस तर्क द्वारा जांच की मांग ठुकरा रहे थे, उसी समय देहरादून में रणवीर नाम के एक युवक की एनकाउन्टर में मौत की जांच हो रही थी और अंत में पुलिस का अपराध सिद्व हुआ। आखिर पुलिस के मोराल का यह कौन सा आधार है जिस की रक्षा के लिए न्याय और पारदर्शिता के नियमों को त्याग दिया जा रहा है।

सूचना एक्सप्रेस की एक सूचना....

लोक स्वास्थ्य प्रमंडल, औरंगाबाद, बिहार के कार्यपालक अभियन्ता ‘ई. अनिल कुमार’ द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के तहत प्राप्त सूचना के अनुसार इस कार्यालय द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 पर कोई राशि खर्च नहीं की गई है।

मंगलवार, 29 जून 2010

सूचना एक्सप्रेस की सूचना....

कार्यालय ज़िला ग्रामीण विकास अभिकरण, भोजपुर, आरा, बिहार के सहायक परियोजना पदाधिकारी पदाधिकारी द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के तहत प्राप्त सूचना के अनुसार मनरेगा योजना अधिनियम के प्रचार और प्रसार में ज़िला स्तर से अभी तक कोई राशि खर्च नहीं की गई है। 

इस सर्वे पर संदेह करें


अजय प्रकाश


दिल्ली स्थित सर्वे कंपनी ‘मार्केटिंग एंड डेवेलपमेंट रिसर्च एसोशिएट्स’(एमडीआरए)मौलवियों और मुस्लिम युवा धार्मिक नेताओं से एक सर्वे कर रही है.सर्वे कंपनी ने पूछने के लिए जो सवाल तय किये हैं उनमें से बहुतेरे आपत्तिजनक, खतरनाक और षडयंत्रकारी हैं.सवालों की प्रकृति और क्रम जाहिर करता है कि सर्वे  कंपनी के पीछे जो ताकत लगी है उसने मुस्लिम धार्मिक नेताओं की राय पहले खुद ही तय कर ली है और मकसद देश में सांप्रदायिक भावना को और तीखा करना है. नमूने के तौर पर तीन सवालों का क्रम देखिये-

1. क्या आप सोचते हैं कि पाकिस्तानी आतंकवादी आमिर अजमल कसाब को फांसी देना उचित था या कुछ ज्यादा ही कठोर है?

2. क्या आप और आपके दोस्त सोचते हैं कि मुंबई केस में कसाब को स्पष्ट सुनवाई मिली है या यह पक्षपातपूर्ण था?

3. क्या आप सोचते हैं कि मुंबई आतंकवाद के लिए कसाब की फांसी की सजा पर दुबारा से सुनवाई करके आजीवन कारावास में बदल दिया जाये, वापस पाकिस्तान भेज दिया जाये या फांसी की सजा को बरकरार रखना चाहिए?

एमडीआरए सर्वे कंपनी द्वारा पुछवाये जा रहे इन नमूना सवालों पर गौर करें तो चिंता और कोफ्त दोनों होती है. साथ ही देश के खुफिया विभाग की मुस्तैदी पर भी सवाल उठता है कि आखिर वह कहां है जब समाज में एक नये ढंग के विष फैलाने की तैयारी एक निजी कंपनी कर रही है?

कसाब का  प्रश्न इसी पेज पर है.
इन सवालों पर कोई मौलवी या मुस्लिम धर्मगुरु जवाब दे इससे ज्यादा जरूरी है कि सर्वे करने वालों से पूछा जाये कि कसाब से संबंधित प्रश्न आखिर क्यों किया जा रहा है, जबकि मुंबई की एक अदालत ने इस मामले में स्पष्ट फांसी का फैसला अभियुक्त को सुना दिया.तो फिर क्या कंपनी को संदेह है कि धार्मिक नेता अदालत के फैसले के कुछ उलट जवाब देंगे? अगर नहीं तो इन्हीं को इन सवालों के लिए विशेष तौर पर क्यों चुना गया? वहीं कंपनी के मालिकान क्या इस बात से अनभिज्ञ हैं कि एक स्तर पर कोर्ट की यह अवमानना भी है.

दूसरी महत्वपूर्ण बात और इस मामले को प्रकाश में लाने वाले दिल्ली स्थित भारतीय मुस्लिम सांस्कृतिक केंद्र के प्रवक्ता वदूद साजिद बताते हैं-‘कसाब एक आतंकी है जो हमारे मुल्क में दहशतगर्दी का नुमांइदा है.दूसरा वह हमारा कोई रिश्तेदार तो लगता नहीं. रिश्तेदार होने पर किसी की सहानुभूति हो सकती है, मगर एक विदेशी के मामले में ऐसे सवाल वह भी सिर्फ मुस्लिम धार्मिक गुरूओं से, संदेह को गहरा करता है.’

सर्वे कंपनी की नियत पर संदेह को लेकर हम अपनी तरफ से कुछ और कहें उससे पहले उनके द्वारा पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण सवाल यहां चस्पा कर देना ठीक समझते हैं जो देशभर के मुस्लिम धार्मिक गुरूओं और मुस्लिम युवा धार्मिक नेताओं से पूछे जाने हैं.सवालों की सूची इसलिए भी जरूरी है कि खुली बहस में आसानी हो,इस चिंता में आपकी भागीदारी हो सके और ऐसे होने वाले हर धार्मिक-सामाजिक षड्यंत्र के खिलाफ हम ताकत के साथ खड़े हो सकें.

बस इन प्रश्नों के साथ कुछ टिप्पणियों की इजाजत चाहेंगे जिससे हमें संदर्भ को समझने में आसानी हो. ध्यान रहे कि सर्वे टीम ने ज्यादातर प्रश्नों के जवाब के विकल्प हां, ना, नहीं कह सकते और नहीं जानते की शैली में सुझाया है.
प्रश्न इस प्रकार से हैं-

1. न्यायमूर्ति राजेंद्र सच्चर कमेटी रिपोर्ट के बारे में आपकी क्या राय है? क्या यह मुसलमानों की मदद कर रही है या नुकसान कर रही है?
टिप्पणी- जब लागू ही नहीं हुई तो मदद या नुकसान कैसे करेगी. सवाल यह बनता था कि लागू क्यों नहीं हो रही है?

2. आपके समुदाय में धार्मिक नेताओं के प्रशंसक घट रहे हैं, पहले जैसे ही हैं या पहले से बेहतर हैं?
टिप्पणी- धार्मिक गुरु इसी की रोटी खाता है इसलिए कम तो आंकेगा नहीं.बढ़ाकर आंका तो खुफिया और मीडिया के एक तबके की मान्यता को बल मिलेगा जो यह मानते हैं कि मुस्लिम समाज धार्मिक दायरे से ही संचालित होता है. ऐसे में  पुरातनपंथी, धार्मिक कट्टर और अपने में डूबे रहने वाले हैं, कहना और आसान हो जायेगा और  मुल्क के मुकाबले धर्म वहां सर्वोपरि है, का फ़तवा देने में भी आसानी होगी. 

3. आपकी राय में आज मुस्लिम युवा धर्म तथा धर्म गुरुओं से प्रेरित होते हैं या बाजारी ताकतें जिसमें इंटरनेट और टीवी शामिल हैं, प्रभावित कर रहे हैं?
टिप्पणी-यह भी उनके रोटी से जुड़ा सवाल है. दूसरा कि इसका जवाब सर्वे कंपनी के पास होना चाहिए, धार्मिक गुरूओं के पास ऐसे सर्वे का कोई ढांचा नहीं होता.

4. पूरे देश और देश से बाहर मुस्लिम नेताओं से संपर्क के लिए आप इंटरनेट का इस्तेमाल ज्यादा कर रहे हैं या नहीं?
टिप्पणी-कई बम विस्फोटों में जो मुस्लिम पकड़े गये हैं उन पर यह आरोप है कि वे विदेशी आकाओं से इंटरनेट के जरिये संपर्क करते थे। ऐसे में इस सवाल का क्या मायने हो सकता है?

4ए. आपकी राय में समुदाय सामाजिक मामलों में राजनीतिक  नेताओं से ज्यादा प्रभावित है या धार्मिक नेताओं से?
टिप्पणी- इस  प्रश्न का  बेहतर जवाब जनता  दे सकती है.

5. आपकी राय में हिंसा, गैर कानूनी गतिविधियां और आतंकवादी गतिविधियां क्यों बढ़ रही हैं, इस प्रवृति को क्यों बढ़ावा मिल रहा है?

टिप्पणी- सभी जानते हैं कि यह सरकारी नीतियों की देन है, लेकिन मुस्लिम धार्मिक नेता इस बात को जैसे ही बोलेगा तो वैमनस्य की ताकतें ओसामा से लेकर हूजी के नेटवर्क से उसे कैसे जोड़ेंगी? यह तथ्य हम सभी को पिछले अनुभवों से बखूबी पता है.

सच्चर कमेटी रिपोर्ट लागु होने से पहले ही सवाल
 6. क्या आप सोचते हैं कि युवा मुस्लिम को राजनीति में ज्यादा भाग लेना चाहिए या धर्म के प्रचार में सक्रिय रहना चाहिए या दोनों में?
टिप्पणी- यह भी रोटी से जुड़ा सवाल है इसलिए जवाब सर्वे कंपनी को भी पता है और मकसद सबको.

 7. मुस्लिम युवाओं की नकारात्मक छवि हर तरफ क्यों फैल रही है. इसके लिए कौन और कौन सी बातें जिम्मेदार हैं, क्या आप कुछ ऐसी बातें बता सकते हैं?
टिप्पणी- इसका सर्वे कब हुआ है कि मुस्लिम युवाओं की छवि नकारात्मक है.दूसरे बात यह कि अगर सवालकर्ता यह मान चुका है कि छवि नकारात्मक है तो उससे बेहतर जवाब और कौन दे सकता है.

8. कुछ के अनुसार न्यूज मीडिया और विदेशी एजेंसी शिक्षित युवा मुस्लिम को गैर कानूनी गतिविधियों के लिए भर्ती कर रही हैं, क्या इस पर आप विश्वास करते हैं या इस तरह की घटना आपको पता है?

9. क्या इस तरह की गतिविधियां हर तरफ हैं?

टिप्पणी- सर्वेधारी को यह सवाल पहले उन ‘कुछ’ से पूछना चाहिए जिसकी जानकारी सर्वे करने वालों के पास पहले से है. उसके बाद मौलवी के पास समय गंवाने की बजाय सीधे खुफिया आधिकारियों को जानकारी मुहैय्या कराना चाहिए जो करोड़ों खर्च करने के बाद भी मकसद में सफल नहीं हो पा रहे हैं.

10. क्या आप देवबंद द्वारा हाल ही जारी फतवे का समर्थन करते हैं जिसमें उन्होंने मुस्लिम महिलाओं का पुरुषों के साथ काम करने का विरोध किया था,या आप इसे मुस्लिम समाज के विकास में नुकसानदेह मानते हैं?
टिप्पणी -सवाल ही झूठा है, क्योंकि देश जानता है देवबंद ने ऐसे किसी बयान से इनकार किया है.

11. भारत 21 मई के दिन आतंकवाद के खिलाफ (आतंकवादी निरोधी दिन) मनाता है. आपकी राय में इसको मनाने का क्या कारण है?
टिप्पणी- फर्ज करें अगर जवाब यह हुआ कि इससे देश की सुरक्षा होगी, तब तो सुभान अल्लाह. अन्यथा इसके अलावा मौलवी जो भी जवाब देगा जैसे यह खानापूर्ति है, इससे कुछ नहीं होता आदि,तो उसकी व्याख्या कैसी होगी इसको जानने के लिए जवाब की नहीं,बल्कि मुल्क में मुसलमानों ने ऐसे भ्रम फैलाने वालों के नाते जो भुगता है उस पर एक बार निगाह डालने की दरकार है.

12. क्या आप सोचते हैं कि बिना सबूत के भारत में मुसलमानों को हिंसा और आतंक के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है?
टिप्पणी- पिछले वर्षों से लेकर अब तक आतंक के नाम पर जो गिरफ्तारियां हुई हैं और उसके बाद आरोपितों में कुछ बाइज्जत छूटते रहे हैं उस आधार पर तो यह कहा जा सकता है, मगर इस कहने के साथ जो दूसरा जवाब जुड़ता है वह यह कि सरकार यानी संविधान की कार्यवाहियों पर मुस्लिम धर्मगुरुओं का विश्वास नहीं है. ऐसे में यह परिणाम तपाक से निकाला जा सकता है कि जब गुरुओं का विश्वास नहीं है तो समुदाय क्यों करे, जबकि समुदाय तो मौलवियों की ही बातों को तवज्जो देता है.

13. क्या आप कुछ लोगों के विचार से सहमत हैं कि वैश्विकी जिहाद का भारत में कोई स्थान नहीं है या आपके विचार इससे भिन्न हैं?

14. कुछ लोगों का कहना है कि आइएसआइ (पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी) जैसी एजेंसी हाल में युवाओं को भारत में आतंकवादी गतिविधियों के लिए भर्ती कर रही है, क्या आप इस बात से सहमत हैं?

टिप्पणी- अब तो हद हो गयी. सवाल पढ़कर लगता है कि एमडीआरए एक सर्वे कंपनी की बजाय सांप्रदायिक मुहिम का हिस्सा है. एमडीआरए वालो वो जो ‘कुछ’ मुखबीर तुम्हारे जानने वाले हैं उनसे मिली जानकारी को गृह मंत्रालय से साझा क्यों नहीं करते कि देश आइएसआइ के आतंकी चंगुल से चैन की सांस ले सके.और अगर जानकारी के बावजूद (जैसा कि सर्वे के सवालों से जाहिर है) नहीं बताते हो तो, देश आइएसआइ से बड़ा आतंकी तुम्हारी कंपनी को मानता है, जो सरकार को सुझाव देने की बजाय मौलवियों से सवाल कर देश की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं.


भरे तो फंसे
बहरहाल इन प्रश्नों के अलावा दस और सवाल जो सर्वे कंपनी ने मौलवियों और मुस्लिम युवा धार्मिक नेताओं से पूछे हैं,उन प्रश्नों की सूची देखने के लिए आप रिपोर्ट के साथ चस्पां की तस्वीरों को देख सकते हैं.

अब जरा एमडीआरए के सर्वे इतिहास पर नजर डालें तो इसकी वेबसाइट देखकर पता चलता है कि यह कंपनी मूलतः बाजारू मसलों पर सर्वे का काम करती है जिसके कई सर्वे अंग्रेजी पत्रिका ‘आउटलुक’में प्रकाशित हुए हैं. कंपनी के बाकी सर्वे के सच-झूठ में जाना एक लंबा काम है,इसलिए फिलहाल मोहरे के तौर पर अलग तेलंगाना राज्य की मांग, महिला आरक्षण पर मुस्लिम महिलाओं की राय और नक्सलवाद के मसले पर एमडीआरए के सर्वे को देखते हैं जो आउटलुक अंग्रेजी पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं.

पत्रिका के जिस मार्च अंक में अरूंधति राय का दंतेवाड़ा से लौटने के बाद लिखा लेख  छपा है उसी में महिला आरक्षण को लेकर मुस्लिम महिलाओं की राय छपी है.पत्रिका और एमडीआरए के संयुक्त सर्वे ने दावा किया है कि 68 फीसदी मुस्लिम महिलाएं महिला आरक्षण के पक्ष में हैं. कई रंगों और बड़े अक्षरों में सजे इस प्रतिशत से जब हम हकीकत में उतरते हैं तो कहीं एक तरफ प्रतिशत के अक्षरों के मुकाबले बड़ी हीन स्थिति में सच पड़ा होता है। पता चलता है कि इस विशाल प्रतिशत का खेल मात्र ५१८ महानगरीय महिलाओं के बीच दो दिन में खेला गया है जो महिला मुस्लिम आबादी का हजारवां हिस्सा भी नहीं है.

सर्वे खेल का दूसरा मामला नक्सलवाद को लेकर है जो इसी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.लंबी दूरी की एक ट्रेन, एक समय में जितनी आबादी लेकर चलती है उससे लगभग एक चौथाई यानी ५१९ लोगों से राय लेकर पत्रिका और एमडीआरए ने दावा किया कि प्रधानमंत्री की राय यानी ‘नक्सलवाद आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है’,पर अस्सी फीसदी से ज्यादा लोग सहमत हैं.यानी बेकारी,महंगाई और बुनियादी सुविधाओं से महरूम जनता के लिए माओवाद ही सबसे बड़ा खतरा है.

तीसरा उदाहरण अलग तेलंगाना राज्य की मांग का है. तेलंगाना राज्य की मांग के सर्वे के लिए कंपनी ने हैदराबाद शहर को चुना है जिसमें छः सौ से अधिक लोगों को सर्वे में शामिल किया गया है.पहली बात तो यह है कि सर्वे में तेलंगाना क्षेत्र में आने वाले किसी एक जिले को क्यों नहीं शामिल किया गया? दूसरी बात यह कि करोंड़ों की मांग  को समझने के लिए कुछ सौ से जानकारी के आधार पर करोड़ों की राय कैसे बतायी जा सकती है, आखिर यह कौन सा लोकतंत्र है?

बहरहाल,अभी मौजूं सवाल सर्वे कंपनी एमडीआरए से ये है कि  मौलवियों और युवा धार्मिक नेताओं के हो रहे इस षड्यंत्रकारी सर्वे का असली मकसद क्या है?


कंपनी के शातिरी के खिलाफ निम्न पते, ईमेल, फ़ोन पर विरोध दर्ज कराएँ.

Corporate Office:

MDRA, 34-B, Community Centre, Saket, New Delhi-110 017
Phone +91-11-26522244/55; Fax: +91-11-26968282
Email: info@mdraonline.com

सोमवार, 28 जून 2010

Police Theories Encountered


The official narration is shooting holes into their own story on the Delhi operation, triggering demands for an inquiry
SHOBHITA NAITHANI
New Delhi
IT’S 11 AT night on September 22. Sombre activity is in progress at the Nizamuddin burial ground, but a stunned, occasionally resentful uncertainty pervades the air. A group of some 150 armed policemen stand round, keeping grim watch over a gathering of over 250 people. Some of those attending the funeral are irate. They are questioning the veracity of the rationale that brings them to the burial of Atif, alias Bashir, and Mohammed Sajid, blamed for the September 13 New Delhi blasts and shot dead three days earlier in a police encounter in New Delhi’s Jamia Nagar. Now the two are being buried in the presence of the Shahi Imam of the Delhi Jama Masjid, Syed Ahmed Bukhari, local politicians and numerous Muslims visiting the city to mark Ramzan. Speaking at the funeral, Bukhari reiterated what many civil society organisations have been saying since September 19, the day of the encounter: “The police cannot label anyone a terrorist. It’s for the courts to decide whether a person is guilty.”
Has A Cover-Up Begun?
AIIMS doctors say crucial evidence may have been lost during Inspector MC Sharma’s operation
HIS COLLEAGUES call him the bravest. But his death during the Jamia Nagar encounter has raised uncomfortable questions. In a startling disclosure, a senior doctor who conducted the postmortem on Inspector MC Sharma at the All India Institute of Medical Sciences spoke to TEHELKA of the damage to his vital organs. “It was difficult to establish the entry and exit points of the bullet because conclusive evidence had been wiped out by the interventions of the doctors at Holy Family [where Sharma was rushed to].
Once considered the right-hand man of late ACP Rajbir Singh, another encounter specialist, Sharma was instrumental in the killing of 35 alleged terrorists and the arrest of 80 supposed others. It is believed that Sharma also killed 120 gangsters in a career just short of two decades. A close Special Cell colleague said there was a time when Sharma and Singh were measured on the same notoriety scale. “But post-2003, once the two encounter specialists fell out, Sharma sorted his ways.”
Jamia Nagar residents want to know how a veteran officer could make the mistake of not wearing a bulletproof vest to an encounter site. Senior officers have varying answers. “He probably wanted to garner all the credit,” said one, who requested anonymity. According to another, “He was under tremendous pressure as his son was suffering from dengue.” Least satisfactory was the response from Deputy Com missioner of Police (Special Cell) Alok Kumar, who said, “He must have wanted to maintain secrecy in a cramped area like Batla House.” Why then could he not have worn the vest under his shirt?
(Rohini Mohan contributed to this story)
There are two versions of the events of that day. Badr Taslim, 48, a long-time resident of L-17, Batla House, the building adjacent to the one where the ‘terrorists were holed up’, first heard the sounds of gunfire at about 11am and after that a scream. Soon, armed men rushed to the spot and told him to get inside his house. Taslim ran to the flat opposite his and saw two men coming down from the fourth floor of L-18, supporting Inspector Mohan Chand Sharma by his arms. Sharma would die later that night of wounds sustained during the operation. But Taslim is unsure how serious Sharma’s injuries were. “A small stain of blood was visible under his right arm,” he says. “There was no wound in the front of his body. There was no blood on the staircase either.”
Some residents recall the sequence. Several gunshots, the police said 30, audible till about 11:40am. Then, the silence. Finally, the bodies of two ‘terrorists’ — 23-year-old Atif and 17-yearold Sajid — carted away. Taslim didn’t see the police arresting Saif, who is suspected to have planted the Regal Cinema bomb that was defused. Masih Alam, a lawyer who lives in the flat opposite L-18, agrees with Taslim’s version.
In the police story, Atif was the Indian Mujahideen mastermind who designed and coordinated the five blasts that went off in three crowded New Delhi shopping centres. Sajid was supposedly Atif’s close aide. The police claim the Special Cell team had received information that two of those suspected in the blasts were at Jamia Nagar. At about 10:30am, a subinspector posing as a Vodafone salesman knocked on the door of the fourth-floor flat in L-18 Batla House. The residents of the house said they didn’t want the Vodafone offer. As was arranged, the sub-inspector sent a signal to Sharma by giving him a missed call. Minutes after getting the cue, Sharma was up the stairs with six other officers. As he entered the flat, men rushed out of another room and opened fire at him. Sharma fell to the ground, and the bullet aimed at him hit a constable. The shootout continued. Sharma was pulled out and taken to the Holy Family Hospital, closeby. The police later said Sharma was bleeding heavily. By then, the police had taken over the area and cordoned it. Later, the police claimed that the shootout had accounted for three terrorists: two dead, one arrested. The police said two others escaped. An AK-47 assault rifle along with two .30 pistols and a computer were recovered from the alleged hideout, a seizure the police would have to prove once the trial starts.
Over the weekend, the police claimed that two more terrorists were on the run along with the two from Batla House. So, that made it four on the run. The police claimed that an additional four — Zeeshan, Zia-ur-Rehman, Saquib Nissar and Mohammad Shakeel — were arrested by September 21. Zeeshan was the first of these four to be arrested on September 19. But before that, Zeeshan had appeared on a news channel, after he saw his name flash on television as a suspect. On television, Zeeshan said he wasn’t involved. Hours later, the police picked him up and claimed he had confessed.
IN THE aftermath, the loopholes in the police theory are becoming evident. Why weren’t the policemen in bulletproof jackets? Eyewitness Taslim wonders how the two terrorists who managed to escape got away, considering that L-18 not only has just one entrance and exit, but also has a gap between its terrace and the roof of the next house. “The only option was to jump. Had they done so, they would have died,” Taslim says. The alleged terrorists had also applied for tenant verification on August 21, with their personal details, including permanent addresses, driving license details, and the address of their previous residence. “Why would those involved in the Ahmedabad blasts in July and those preparing to bomb Delhi in September give their verification to the police?” asks Asif Mohammad, a former councillor of the area.
Civil rights lawyer Prashant Bhushan, who is leading an independent fact-finding mission into the incident, feels that the police did not set out for Batla House thinking they were after terrorists. They would have planned the operation better, Bhushan said. And therefore, he says, the police story describing the dead men’s role in the blasts is false. “This is clear from several facts. Their tenant verification is authentic. Zeeshan was taking an MBA exam. Atif is a registered Jamia Millia Islamia student. All these point to the fact that there is something amiss in the police theory,” says Bhushan.
But the big question is: How did Sharma die? Bhushan says there are three possibilities: those inside the house were armed and fired at Sharma, or he fell victim to a form of ‘friendly fire’, having been accidentally shot by a police gun. The last and most sinister, utterly cynical possibility is that he was shot by his colleagues, perhaps a bitter fallout of his chequered career.
So, while the Delhi Police are buoyant after the ‘cracking’ of the terror module, a section of the media and civil rights activists like Shabnam Hashmi, John Dayal and Yogendra Yadav doubt the police theory. For now, there is a demand for a fair, impartial and independent probe into the puzzling incident.
WRITER’S E-MAIL
shobhita@tehelka.com

From Tehelka Magazine, Vol 5, Issue 39, Dated Oct 04, 2008

Batla Panel in communal web


By: Amit Singh




Three non-Muslim members of  
fact-finding team appointed by Delhi Minorities council refuse to visit area

FACT is stranger than fiction. Even as the Batla House encounter of September 19, 2008 continues to intrigue the nation there seems little possibility of the truth coming out any time soon.

A fact-finding team was appointed by the Delhi Minorities Commission to analyse actions of the police subsequent to the gun battle and to assess and scrutinise the communal atmosphere prevailing in the south Delhi colony.

Hide
Truth hurts: The fact-finding mission alleged step-motherly treatment
by the government. The panel was appointed to probe into the allegations
that the Batla House encounter was fake.  file pic


Fear reigns
But the team, which was formed on November 5, 2008, got mired in communal web as three non-Muslim delegates of the four-member panel refused to visit the area.
"The communal tension that erupted after the encounter scared my colleagues so much that they refused to even visit the locality and asked me to do all the groundwork," Maqsood Ahmad, a member of the team, told MiD DAY.

The tension was so palpable that there were rumours as to how several police officials posted in the area actively sought transfers. "As I was the only Muslim member my colleagues asked me to go and analyse the situation and write the report. They said they were ready to sign the report but were not prepared to go with me," Ahmad said.

The committee was asked to submit its report within a month but they have not been able to reach a conclusion till date. The panel members, however, put the onus on the government saying they were left in the lurch. "They treated us like orphans. We were clueless about our mandate. The government did not even provide us with basic necessities like office space and stationery," said Ahmad.
"No funds were released from their side. Also, we were not introduced to top police officials investigating the matter," Ahmad added.

Mum's the word
When MiD DAY tried to contact the other three members of the panel - DK Pandey, Dr. Mahender Singh, and Rev. Manoj Malaki - they refused to comment on the issue.
"We did a lot of probing but have been unable to submit our report. We were called by the chief minister several times and asked to aggressively carry out the work. But what went wrong at the last moment is still a mystery," Ahmad alleged.

When MiD DAY questioned Kamal Farooqui, who was chairman of the DMC till a week ago, he said the fact-

Batla update
Delhi Police has sought that the trial in the Batla House encounter and September 13 serial blasts cases of 2008 be conducted simultaneously. The cops claimed there was overlapping evidence in the cases at the time of filing chargesheet against two Indian Mujahideen (IM) suspects - Shahzad Ahmad and Salman Ahmad - in a city court.
finding committee didn't do their work as per directives.   
When asked why the commission did not initiate any action, Farooqui said: "I am no more the chairman, you will have to speak to the commission about it."

I have been pursuing the matter, thanks to the Right To Information Act. In response to an RTI plea, the Delhi Minorities Commission had revealed that the fact-finding team is yet to submit it's report.
- Afroz Alam, RTI activist
This committee shall record the statements of the witnesses and immediate residents of the area individually, analyse them and hold further inquiries for corroboration/derogative of the statements. The committee shall also obtain the version of the Delhi Police. - The order by which Delhi Minorities Commission formed the fact-finding team
OUT OF THE BOX
The highly secretive autopsy report, which the Special Cell of the Delhi Police refused to make public despite repeated demands by civil society groups, and which finally came out of the closet on March 17, after sustained efforts by RTI activist Afroz Alam Sahil, further strengthens the barrage of uncanny questions raised from all quarters challenging the authenticity of the September 19, 2008 police encounter in which the two youngsters from Azamgarh were killed. Special Cell cop MC Sharma too was killed in the 'encounter'. His post-mortem report has also been disclosed. The post-mortem reports of the two youths, Atif Ameen, 24, and Mohd Sajid, 18, were provided by the NHRC.
Some points revealed by the RTI
* The four-page autopsy reports reveal that Atif Amin and Mohammad Sajid had suffered injuries from a blunt object apart from gunshot wounds.
* Eight out of 10 bullet entry wounds on the body of Atif are on the backside, in the region below the shoulders and at the back of the chest, which point to the fact that he was repeatedly shot from behind.
* Sajid's post-mortem report says there were two wounds on his body which were not caused by a firearm. These injuries were antemortem in nature i.e caused before his death.
* Sajid was shot three times in the head with the bullets travelling downwards.

Bihar youth stopped from taking flight at Delhi Airport, twice in 15 days

By Mumtaz Alam Falahi, TwoCircles.net,
Patna: A 28-year-old man from Sitamadhi district in Bihar is a lot disturbed now. In a short period of 15 days Ataur Rahman @ Chand has been stopped from taking flight at Indira Gandhi International Airport in New Delhi by immigration officials at the behest of Special Cell of Delhi Police. Father of an 8-month-old babygirl and son of a Bihar police officer Chand, a non-matric, has no idea why it is happening to him.
An electrician by training, Chand was all set to take a flight for Doha (Qatar) on May 27 at IGI Airport. When he approached the Immigration desk for clearance, the officials at the desk stopped him and took him aside. When he asked why he was not being cleared he was taken to a room and asked to sit. An hour or two later some Delhi Police officials entered the room and began questioning him.


“I was dumbstruck at the very first question: what kind of weapons you have learned to use,” recalls Chand talking to TwoCircles.net from Delhi. “What are you saying, Sir?” he says he asked. “I have not got any training in weapons. I am an electrician, and going there on a visa for the job,” he said. The police officials interrogated him about 8 hours at the airport, and then allowed him to go. Chand says the police officers told him they have got some email about him for his alleged connection to terror activities. He vehemently denied this, and said the email could be a mischievous act to not let him go for job abroad.
Chand has lived in Saudi Arabia for four years, five years ago. Then he worked as unskilled labor in Riyadh. His two elder brothers are also working there. His father known as Annu Sipahi is a constable in Bihar Police, and posted in Purnea. He married about two years ago, and now has a baby of eight months. His younger brother is studying in Delhi. Chand gave all details to the interrogators.
After some days when he got normal he took new ticket for June 11, thinking the earlier incident was just incident and he has been cleared by the police as they did not take him into custody or file any case.
But again on June 11, he was stopped by the Immigration officials at the airport. The officials allegedly also used filthy language against him and said how he dared to come again so soon. After much persuasion he was told to approach Foreigner Regional Registration Office in Delhi.
When Chand reached FRRO office in R K Puram, he was told Delhi Police has asked them not to give him clearance. Feeling helpless, Chand has submitted an application with FRRO and Delhi Police to allow him to fly as his job visa will soon become invalid.
TCN called FRRO Delhi to know more but in vain. Repeated calls went blank.

शुक्रवार, 25 जून 2010

सूचना एक्सप्रेस की एक सूचना....

ज़िला ग्रामीण विकास अभिकरण, खगड़िया, बिहार के लेखापाल द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम -2005 के तहत प्राप्त सूचना के अनुसार मनरेगा योजना के अन्तर्गत प्रारंभ से अब तक प्रचार-प्रसार पर कुल 2,81,170/- रूपये (दो लाख एकासी हज़ार एक सौ सत्तर रुपये) खर्च किए गए हैं।

गुरुवार, 24 जून 2010

सूचना एक्सप्रेस की एक सूचना...

कार्यालय कार्यक्रम पदाधिकारी, सिमरी (बक्सर), बिहार द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के तहत प्राप्त सूचना के अनुसार इस प्रखंड में विभिन्न प्रकार के योजनाएं जैसे रोड, नाली, बांध तथा वानिकी आदि में कुल 429.11 लाख रूपये खर्च किया गया है। 

बुधवार, 23 जून 2010

A malicious survey questionnaire about Muslim youths

By Mumtaz Alam Falahi, TwoCircles.net,
Patna: An eminent marketing research and consulting organization is conducting a survey in the country to know about the condition, rather, thinking of the Muslim youths and students. For this, the organization is approaching Muslim community and religious leaders with a very malicious and close-end questionnaire. Just have a glance at the questions, and you will conclude the move is not to know about Muslim youths rather to malign them.
Do Muslim youths get inspired by religious leaders or by market forces? Are you using Internet more than before or less to establish contact with Muslim leaders in India and abroad? Should Muslim youths take more interest in politics or preaching of religion? With a set of 25 such questions, a representative of Delhi-based Marketing & Development Research Associates (MDRA) approached Sirajuddin Qureshi, President, India Islamic Cultural Centre in Delhi, on June 10, 2010. But he could not meet him and the representative was sent to Qureshi’s media advisor Wadood Sajid.


MDRA survey on Muslim youth

“The questions were set to get intended response. They were very objectionable and malicious in nature,” Sajid told TwoCircles.net on phone from New Delhi. There were 25 questions in the form, all sought answer in one syllable. “The nature of the questions, the hurriedness the representative was showing to get yes-no answer and his word that his company asked him not to leave the form with anyone created doubt in my mind about the real intention of the surveyor company or those hired it for this work,” added Sajid. Sajid responded all questions one day later in the prescribed form with raising question over some questions.
Of 25 questions, three were related to Ajmal Amir Kasab, the lone terrorist captured alive during Mumbai terror attack and after a trial of one year recently awarded death sentence. The questions related to Kasab wanted the responders show sympathy with Kasab. Is capital punishment to Kasab justified? Should it be turned into life sentence through fresh hearing? Does your friend think Kasab had not got fair trial?
The beginning of the questionnaire form reads: “I am from MDRA, a leading research and consulting organization. At present MDRA is carrying out a study among religious leaders on their opinion on current plight of students and youth. We request you to cooperate with us by providing the information requested in the questionnaire. We assure you that the information collected will be kept confidential and only aggregate data would be used for analysis purpose.”


Have a look at some questions:
1: Is Sachar Committee report benefiting Muslims or harming them?
2: Is the number of fans of religious leaders increasing or decreasing?
3: Do Muslim youth get inspired by religious leaders or by market forces?
4: Are you using Internet more than before or less to establish contact with Muslim leaders in India and abroad?
5: In social issues, does your community follow political leaders or religious leaders?
6: In your view, why are violence, illegal and terror activities spreading? Do you think this thinking is getting support?

7: Should Muslim youth take more interest in politics or in preaching of religion?
8: Did you see film My Name Is Khan or have heard about it

9: If saw, what is its message?
10: Some say TV channels are keeping Muslim youth away from religion. What do you think?
11: Is religion becoming weaker or more extremist?
12: Why is there negative image of Muslim youths all around?
13: Some people say news media and foreign agency are recruiting educated Muslim youth for illegal activities. Do you believe it? Is there any such incident in your knowledge?
14: Is capital punishment to Kasab justified?
15: Should it be turned into life sentence through fresh hearing?
16: Does your friend think Kasab had not got fair trial?
17: What do you think about the Deoband fatwa that prohibits women from working in office with men?
18: Do you think Muslims are being blamed for terror in India without any evidence?
25: Some say ISI is recruiting Indian Muslim youth for terror activities. Do you agree with it?
Reacting on the Q. No. 4 (Are you using Internet more than before or less to establish contact with Muslim leaders in India and abroad?), Wadood Sajid says the question is misleading and questionable. “We do not need to contact foreign Muslim leaders. “The question exposes the mindset of the survey company about the Muslims. They have assumed Muslim youth of India are in contact with foreign Muslim leaders and getting instruction from them. Now they want to know if modern technology is being used to spread terrorism.”


On questions related to Kasab, Sajid says he wrote in the response sheet that this is a legal issue, court has given verdict on the basis of evidence and Muslims respect court. “This is not the business of Indian Muslims to think whether he faced fair trial or not, Kasab is not a relative of Indian Muslims that they should think of lessening his punishment. He has been described as terrorist and you want Muslims support him.”
Answering the last question (Some say ISI is recruiting Indian Muslim youth for terror activities. Do you agree with it?) Sajid wrote if the surveyor has such information, he should immediately inform the Home Ministry.
Talking to TCN, Sajid says: This survey is part of a big conspiracy to implicate Muslim youth. I ask the government and Home Ministry if they are not aware of such surveys. Has any non government organization such right to do such survey on sensitive issues within a particular community?
TCN sent a query to MDRA and we got a confirmation of the receipt of our message but no reply to it.
The website of MDRA says about the company: “Marketing and Development Research Associates (MDRA) is a premier marketing research and consulting organization in India with focus on quantitative and qualitative research. We provide strategic business planning solutions based on research findings and historical data analyses of our clients’ business. Over the years, MDRA has strived to help organizations bring vital market data into their strategic planning processes in order to improve customer satisfaction and enhance competitive advantage. Our research provides an in-depth insight, which helps companies in knowing the market and their customers better.”
http://www.mdraonline.com/index.aspx

मंगलवार, 22 जून 2010

Jamia alumni in Riyadh raise Batla issue with ex-Okhla MLA

By TCN News,

Riyadh (Saudi Arabia): The Riyadh chapter of Jamia Millia Islamia Alumni Association raised the issue of Batla House encounter with visiting ex-Okhla MLA and present Member of Rajya Sabha (the Upper House of Indian Parliament) Parvez Hashmi. Hashmi was MLA of the area when the Batla shootout took place. The Association demanded CBI enquiry into the encounter.
A delegation comprising office bearers and founder members of Jamia Millia Islamia Alumni Association, Riyadh chapter met Parvez Hashmi, who is also secretary of All India Congress Committee, in Riyadh on Friday. The delegation was led by the President of the Association Mr. Murshid Kamal. The delegation held talks with the visting guest on issues like Batla House encounter and minority character of Jamia Millia Islamia. Hashmi, a former Transport Minister in Delhi government and four times MLA from Okhla constituency, was in the limelight in the last Assembly election after the notorious Batla House encounter (September 19, 2008) in which two Jamia students were killed and a police inspector had lost his life.
Welcoming Mr. Hashmi in the Kingdom Mr. Murshid Kamal, President of the Association, recalled his student days. He was always there for the support of students of Jamia and stood by the side of students union in their just demand for University special buses. Murshid, himself a former student union leader, said that on many occasions Mr. Hashmi helped him organizing rallies and demonstration by allowing him to have free access to as many as transport busses as he needed.
Mr. Laique Ahmad Azmi, Vice President of the Association briefed the visiting Member of Parliament about the social, cultural & philanthropic activities of the Association. Mr. Hashmi was highly impressed to know that Jamia Association is one of the few expatriates Association in the Kingdom which is elected through a truly democratic process after every two years.
Murshid Kamal raised the issue of Batla House encounter in which two students of Jamia belonging to Azamgarh were killed and others were arrested. He reiterated his demand for a CBI enquiry into the incident and speedy trials for the accused who are languishing in jail. Mr. Murshid also demanded the Congress led government for a legislation to amend Jamia Act 1988 which abolished the minority character of Jamia Millia Islamia.
Mr. Hashmi said, his government is serious about the social and educational upliftment of the muslims and he himself is in favor of restoration of minority character of Jamia Millia Islamia. Hashmi promised the delegation to convey the demand of the association to the concerned ministry.
Prominent among those present at the occasion were General Secretary of the Association Dr. Tanseer Ahmad, Joint Secretary Asif Equbal, founder members, Mohammed Shahabuddin, Khursheed Anwar, Aftab Nizami and Advisory member Mohammed Naushad.

शुक्रवार, 18 जून 2010

Rs one lakh a month on newspapers!

That's PMO's expenditure on subscription of 45 magazines and 43 daily newspapers, shows a reply to an RTI request


Author Profile


The Prime Minister office (PMO) spent Rs. 11,92,910 on subsriptions of 45 magazines and 43 daily newspapers for the year 2009-10, according to information released under the RTI Act.

The expenditure on magazines and newspapers in the last financial year, which comes to more than Rs 99,000 per month, is little less than Rs 12,09,505 spent in 2008-09,shows the official response to an RTI request made by Afroz Alam Sahil, an information seeker.

Out of the 45 magazines, which have been subscribed by the PMO, most are in Hindi and English language; there is one in Bengali. Daily newspapers are mostly in English, Hindi and Urdu and one each in Marathi, Malayalam, Bengali, Gujarati and Punjabi language.

पीएमओ ने अखबारों पर खर्च किए 12 लाख रुपये


 प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने अपने अधिकारियों के लिए लिए जाने वाले अखबारों और पत्रिकाओं पर वर्ष 2009-10 के दौरान करीब 12 लाख रुपये खर्च किए हैं। सूचना का अधिकार कानून के तहत अफरोज आलम साहिल नाम के एक कार्यकर्ता की ओर से दायर अर्जी के जवाब में यह खुलासा हुआ है।

पीएमओ ने कहा है कि यह हिंदी और अंग्रेजी समेत विभिन्‍न भाषाओं के 43 अखबार और 45 पत्रिकाएं सब्‍सक्राइब करता है। कार्यकर्ता ने पूछा था कि पीएमओ कितने अखबार और पत्रिकाएं सब्‍सक्राइब करता है और इसने पांच वर्षों में इन पर कितने खर्च किए हैं। साहिल ने यह भी पूछा था कि अखबारों और पत्रिकाओं पर पीएमओ का सालाना खर्च क्‍या है।

सालाना खर्च के जवाब में पीएमओ का कहना है कि अखबार और पत्रिकाएं सेंट्रल न्‍यूज एजेंसी से खरीदी जाती हैं जिसे 2009-10 के दौरान करीब 1.19 मिलियन रुपये दिए गए। पीएमओ ने कहा कि वर्ष 2005-06 में इसने 908,735 रुपये, 2006-07 में 1.01 मिलियन रुपये, 2007-08 में 1.03 मिलियन रुपये और 2008-09 में 1.20 मिलियन रुपये खर्च किए गए।

PMO spent Rs.1.2 million on newspapers in '09-10

NEW DELHI: The Prime Minister's Office (PMO) spent around Rs.1.2 million during 2009-10 on newspapers and periodicals that it subscribes to for its officials.The disclosure was made by the PMO in response to an application made under the Right to Information (RTI) Act by activist Afroz Alam Sahil.In response to Sahil's plea, the PMO said it subscribes to 43 newspapers and 45 periodicals in various languages, including Hindi and English.Sahil had asked how many newspapers and periodicals the PMO subscribed to and how much it spent on them in the last five years. The RTI activist had also asked for the annual expenditure on newspapers and periodicals by the PMO.Responding to the question on annual expenditure, the PMO said the newspapers and periodicals were bought from the Central News Agency, which was paid nearly Rs.1.19 million in 2009-10.The PMO said it paid Rs.908,735 in 2005-06, Rs.1.01 million in 2006-07, Rs.1.03 million in 2007-08 and Rs.1.20 million in 2008-09.

नई दुनिया से क्यों नाराज है पीएमओ?

Wednesday, 16 June 2010 07:50 B4M भड़ास4मीडिया - प्रिंट
जो अखबार मंगाए जाते हैं उनमें नई दुनिया, राजस्थान पत्रिका, प्रभात खबर आदि अखबारों के नाम नहीं : अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं से खास प्रेम है प्रधानमंत्री कार्यालय को : पीएमओ उर्फ प्रधानमंत्री कार्यालय 45 पत्रिकाएं खरीदता है जिसमें 3 हिंदी की हैं. पीएमओ कुल 43 अखबार मंगाता है जिसमें अंग्रेजी के 23 और हिंदी के दस अखबार हैं. उर्दू के चार, मराठी के दो, मलयालम, पंजाबी, बांग्ला और गुजराती का एक-एक अखबार खरीदा जाता है.

सूचना के अधिकार के तहत अफरोज आलम साहिल द्वारा हासिल की गई जानकारी के मुताबिक पत्र-पत्रिकाओं पर खरीद पर वर्ष 2009-10 में पीएमओ ने करीब 12 लाख रुपये खर्च किए. हिंदी के जो अखबार पीएमओ मंगाता है, उसमें कुछ तो ऐसे हैं जिनकी प्रसार संख्या बेहद कम है. सूची में कई ऐसे अखबारों के नाम नहीं हैं जो अपने-अपने इलाकों के सरताज हैं और टाप टेन अखबारों में शुमार किए जाते हैं. उदाहरण के तौर पर प्रभात खबर, नई दुनिया, राजस्थान पत्रिका आदि अखबार पीएमओ की अखबारों की सूची से गायब हैं. तो इसे क्या माना जाए? क्या इन अखबारों से पीएमओ को कोई नाराजगी है?

नई दुनिया का नाम पीएमओ द्वारा खरीदे जाने वाले अखबारों की सूची में न होने से नई दुनिया प्रबंधन भी दुखी है. इसका पता उस खबर से चलता है जो आज नई दुनिया, दिल्ली में प्रथम पेज पर प्रकाशित हुई है. भाषा सिंह की बाइलाइन इस खबर में पीएमओ के अधिकारियों, प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार, सूचना एवं प्रसारण मंत्री सभी को लपेटा गया है. खबर में यहां तक कहा गया है कि हजार से कम सरकुलेशन वाले अखबार तो सूची में शामिल हैं पर कई बड़े हिंदी अखबार इस लिस्ट से गायब हैं. नई दुनिया में प्रकाशित खबर भी सूचना के अधिकार के तहत अफरोज आलम साहिल द्वारा मांगी गई जानकारी पर आधारित है.