दिल्ली स्थित सर्वे कंपनी ‘मार्केटिंग एंड डेवेलपमेंट रिसर्च एसोशिएट्स’(एमडीआरए)मौलवियों और मुस्लिम युवा धार्मिक नेताओं से एक सर्वे कर रही है.सर्वे कंपनी ने पूछने के लिए जो सवाल तय किये हैं उनमें से बहुतेरे आपत्तिजनक, खतरनाक और षडयंत्रकारी हैं.सवालों की प्रकृति और क्रम जाहिर करता है कि सर्वे कंपनी के पीछे जो ताकत लगी है उसने मुस्लिम धार्मिक नेताओं की राय पहले खुद ही तय कर ली है और मकसद देश में सांप्रदायिक भावना को और तीखा करना है. नमूने के तौर पर तीन सवालों का क्रम देखिये-
1. क्या आप सोचते हैं कि पाकिस्तानी आतंकवादी आमिर अजमल कसाब को फांसी देना उचित था या कुछ ज्यादा ही कठोर है?
2. क्या आप और आपके दोस्त सोचते हैं कि मुंबई केस में कसाब को स्पष्ट सुनवाई मिली है या यह पक्षपातपूर्ण था?
3. क्या आप सोचते हैं कि मुंबई आतंकवाद के लिए कसाब की फांसी की सजा पर दुबारा से सुनवाई करके आजीवन कारावास में बदल दिया जाये, वापस पाकिस्तान भेज दिया जाये या फांसी की सजा को बरकरार रखना चाहिए?
एमडीआरए सर्वे कंपनी द्वारा पुछवाये जा रहे इन नमूना सवालों पर गौर करें तो चिंता और कोफ्त दोनों होती है. साथ ही देश के खुफिया विभाग की मुस्तैदी पर भी सवाल उठता है कि आखिर वह कहां है जब समाज में एक नये ढंग के विष फैलाने की तैयारी एक निजी कंपनी कर रही है?
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कसाब का प्रश्न इसी पेज पर है. |
इन सवालों पर कोई मौलवी या मुस्लिम धर्मगुरु जवाब दे इससे ज्यादा जरूरी है कि सर्वे करने वालों से पूछा जाये कि कसाब से संबंधित प्रश्न आखिर क्यों किया जा रहा है, जबकि मुंबई की एक अदालत ने इस मामले में स्पष्ट फांसी का फैसला अभियुक्त को सुना दिया.तो फिर क्या कंपनी को संदेह है कि धार्मिक नेता अदालत के फैसले के कुछ उलट जवाब देंगे? अगर नहीं तो इन्हीं को इन सवालों के लिए विशेष तौर पर क्यों चुना गया? वहीं कंपनी के मालिकान क्या इस बात से अनभिज्ञ हैं कि एक स्तर पर कोर्ट की यह अवमानना भी है.
दूसरी महत्वपूर्ण बात और इस मामले को प्रकाश में लाने वाले दिल्ली स्थित भारतीय मुस्लिम सांस्कृतिक केंद्र के प्रवक्ता वदूद साजिद बताते हैं-‘कसाब एक आतंकी है जो हमारे मुल्क में दहशतगर्दी का नुमांइदा है.दूसरा वह हमारा कोई रिश्तेदार तो लगता नहीं. रिश्तेदार होने पर किसी की सहानुभूति हो सकती है, मगर एक विदेशी के मामले में ऐसे सवाल वह भी सिर्फ मुस्लिम धार्मिक गुरूओं से, संदेह को गहरा करता है.’
सर्वे कंपनी की नियत पर संदेह को लेकर हम अपनी तरफ से कुछ और कहें उससे पहले उनके द्वारा पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण सवाल यहां चस्पा कर देना ठीक समझते हैं जो देशभर के मुस्लिम धार्मिक गुरूओं और मुस्लिम युवा धार्मिक नेताओं से पूछे जाने हैं.सवालों की सूची इसलिए भी जरूरी है कि खुली बहस में आसानी हो,इस चिंता में आपकी भागीदारी हो सके और ऐसे होने वाले हर धार्मिक-सामाजिक षड्यंत्र के खिलाफ हम ताकत के साथ खड़े हो सकें.
बस इन प्रश्नों के साथ कुछ टिप्पणियों की इजाजत चाहेंगे जिससे हमें संदर्भ को समझने में आसानी हो. ध्यान रहे कि सर्वे टीम ने ज्यादातर प्रश्नों के जवाब के विकल्प हां, ना, नहीं कह सकते और नहीं जानते की शैली में सुझाया है.
प्रश्न इस प्रकार से हैं-
1. न्यायमूर्ति राजेंद्र सच्चर कमेटी रिपोर्ट के बारे में आपकी क्या राय है? क्या यह मुसलमानों की मदद कर रही है या नुकसान कर रही है?
टिप्पणी- जब लागू ही नहीं हुई तो मदद या नुकसान कैसे करेगी. सवाल यह बनता था कि लागू क्यों नहीं हो रही है?
2. आपके समुदाय में धार्मिक नेताओं के प्रशंसक घट रहे हैं, पहले जैसे ही हैं या पहले से बेहतर हैं?
टिप्पणी- धार्मिक गुरु इसी की रोटी खाता है इसलिए कम तो आंकेगा नहीं.बढ़ाकर आंका तो खुफिया और मीडिया के एक तबके की मान्यता को बल मिलेगा जो यह मानते हैं कि मुस्लिम समाज धार्मिक दायरे से ही संचालित होता है. ऐसे में पुरातनपंथी, धार्मिक कट्टर और अपने में डूबे रहने वाले हैं, कहना और आसान हो जायेगा और मुल्क के मुकाबले धर्म वहां सर्वोपरि है, का फ़तवा देने में भी आसानी होगी.
3. आपकी राय में आज मुस्लिम युवा धर्म तथा धर्म गुरुओं से प्रेरित होते हैं या बाजारी ताकतें जिसमें इंटरनेट और टीवी शामिल हैं, प्रभावित कर रहे हैं?
टिप्पणी-यह भी उनके रोटी से जुड़ा सवाल है. दूसरा कि इसका जवाब सर्वे कंपनी के पास होना चाहिए, धार्मिक गुरूओं के पास ऐसे सर्वे का कोई ढांचा नहीं होता.
4. पूरे देश और देश से बाहर मुस्लिम नेताओं से संपर्क के लिए आप इंटरनेट का इस्तेमाल ज्यादा कर रहे हैं या नहीं?
टिप्पणी-कई बम विस्फोटों में जो मुस्लिम पकड़े गये हैं उन पर यह आरोप है कि वे विदेशी आकाओं से इंटरनेट के जरिये संपर्क करते थे। ऐसे में इस सवाल का क्या मायने हो सकता है?
4ए. आपकी राय में समुदाय सामाजिक मामलों में राजनीतिक नेताओं से ज्यादा प्रभावित है या धार्मिक नेताओं से?
टिप्पणी- इस प्रश्न का बेहतर जवाब जनता दे सकती है.
5. आपकी राय में हिंसा, गैर कानूनी गतिविधियां और आतंकवादी गतिविधियां क्यों बढ़ रही हैं, इस प्रवृति को क्यों बढ़ावा मिल रहा है?
टिप्पणी- सभी जानते हैं कि यह सरकारी नीतियों की देन है, लेकिन मुस्लिम धार्मिक नेता इस बात को जैसे ही बोलेगा तो वैमनस्य की ताकतें ओसामा से लेकर हूजी के नेटवर्क से उसे कैसे जोड़ेंगी? यह तथ्य हम सभी को पिछले अनुभवों से बखूबी पता है.
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सच्चर कमेटी रिपोर्ट लागु होने से पहले ही सवाल |
6. क्या आप सोचते हैं कि युवा मुस्लिम को राजनीति में ज्यादा भाग लेना चाहिए या धर्म के प्रचार में सक्रिय रहना चाहिए या दोनों में?
टिप्पणी- यह भी रोटी से जुड़ा सवाल है इसलिए जवाब सर्वे कंपनी को भी पता है और मकसद सबको.
7. मुस्लिम युवाओं की नकारात्मक छवि हर तरफ क्यों फैल रही है. इसके लिए कौन और कौन सी बातें जिम्मेदार हैं, क्या आप कुछ ऐसी बातें बता सकते हैं?
टिप्पणी- इसका सर्वे कब हुआ है कि मुस्लिम युवाओं की छवि नकारात्मक है.दूसरे बात यह कि अगर सवालकर्ता यह मान चुका है कि छवि नकारात्मक है तो उससे बेहतर जवाब और कौन दे सकता है.
8. कुछ के अनुसार न्यूज मीडिया और विदेशी एजेंसी शिक्षित युवा मुस्लिम को गैर कानूनी गतिविधियों के लिए भर्ती कर रही हैं, क्या इस पर आप विश्वास करते हैं या इस तरह की घटना आपको पता है?
9. क्या इस तरह की गतिविधियां हर तरफ हैं?
टिप्पणी- सर्वेधारी को यह सवाल पहले उन ‘कुछ’ से पूछना चाहिए जिसकी जानकारी सर्वे करने वालों के पास पहले से है. उसके बाद मौलवी के पास समय गंवाने की बजाय सीधे खुफिया आधिकारियों को जानकारी मुहैय्या कराना चाहिए जो करोड़ों खर्च करने के बाद भी मकसद में सफल नहीं हो पा रहे हैं.
10. क्या आप देवबंद द्वारा हाल ही जारी फतवे का समर्थन करते हैं जिसमें उन्होंने मुस्लिम महिलाओं का पुरुषों के साथ काम करने का विरोध किया था,या आप इसे मुस्लिम समाज के विकास में नुकसानदेह मानते हैं?
टिप्पणी -सवाल ही झूठा है, क्योंकि देश जानता है देवबंद ने ऐसे किसी बयान से इनकार किया है.
11. भारत 21 मई के दिन आतंकवाद के खिलाफ (आतंकवादी निरोधी दिन) मनाता है. आपकी राय में इसको मनाने का क्या कारण है?
टिप्पणी- फर्ज करें अगर जवाब यह हुआ कि इससे देश की सुरक्षा होगी, तब तो सुभान अल्लाह. अन्यथा इसके अलावा मौलवी जो भी जवाब देगा जैसे यह खानापूर्ति है, इससे कुछ नहीं होता आदि,तो उसकी व्याख्या कैसी होगी इसको जानने के लिए जवाब की नहीं,बल्कि मुल्क में मुसलमानों ने ऐसे भ्रम फैलाने वालों के नाते जो भुगता है उस पर एक बार निगाह डालने की दरकार है.
12. क्या आप सोचते हैं कि बिना सबूत के भारत में मुसलमानों को हिंसा और आतंक के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है?
टिप्पणी- पिछले वर्षों से लेकर अब तक आतंक के नाम पर जो गिरफ्तारियां हुई हैं और उसके बाद आरोपितों में कुछ बाइज्जत छूटते रहे हैं उस आधार पर तो यह कहा जा सकता है, मगर इस कहने के साथ जो दूसरा जवाब जुड़ता है वह यह कि सरकार यानी संविधान की कार्यवाहियों पर मुस्लिम धर्मगुरुओं का विश्वास नहीं है. ऐसे में यह परिणाम तपाक से निकाला जा सकता है कि जब गुरुओं का विश्वास नहीं है तो समुदाय क्यों करे, जबकि समुदाय तो मौलवियों की ही बातों को तवज्जो देता है.
13. क्या आप कुछ लोगों के विचार से सहमत हैं कि वैश्विकी जिहाद का भारत में कोई स्थान नहीं है या आपके विचार इससे भिन्न हैं?
14. कुछ लोगों का कहना है कि आइएसआइ (पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी) जैसी एजेंसी हाल में युवाओं को भारत में आतंकवादी गतिविधियों के लिए भर्ती कर रही है, क्या आप इस बात से सहमत हैं?
टिप्पणी- अब तो हद हो गयी. सवाल पढ़कर लगता है कि एमडीआरए एक सर्वे कंपनी की बजाय सांप्रदायिक मुहिम का हिस्सा है. एमडीआरए वालो वो जो ‘कुछ’ मुखबीर तुम्हारे जानने वाले हैं उनसे मिली जानकारी को गृह मंत्रालय से साझा क्यों नहीं करते कि देश आइएसआइ के आतंकी चंगुल से चैन की सांस ले सके.और अगर जानकारी के बावजूद (जैसा कि सर्वे के सवालों से जाहिर है) नहीं बताते हो तो, देश आइएसआइ से बड़ा आतंकी तुम्हारी कंपनी को मानता है, जो सरकार को सुझाव देने की बजाय मौलवियों से सवाल कर देश की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं.
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भरे तो फंसे |
बहरहाल इन प्रश्नों के अलावा दस और सवाल जो सर्वे कंपनी ने मौलवियों और मुस्लिम युवा धार्मिक नेताओं से पूछे हैं,उन प्रश्नों की सूची देखने के लिए आप रिपोर्ट के साथ चस्पां की तस्वीरों को देख सकते हैं.
अब जरा एमडीआरए के सर्वे इतिहास पर नजर डालें तो इसकी वेबसाइट देखकर पता चलता है कि यह कंपनी मूलतः बाजारू मसलों पर सर्वे का काम करती है जिसके कई सर्वे अंग्रेजी पत्रिका ‘आउटलुक’में प्रकाशित हुए हैं. कंपनी के बाकी सर्वे के सच-झूठ में जाना एक लंबा काम है,इसलिए फिलहाल मोहरे के तौर पर अलग तेलंगाना राज्य की मांग, महिला आरक्षण पर मुस्लिम महिलाओं की राय और नक्सलवाद के मसले पर एमडीआरए के सर्वे को देखते हैं जो आउटलुक अंग्रेजी पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं.
पत्रिका के जिस मार्च अंक में अरूंधति राय का दंतेवाड़ा से लौटने के बाद लिखा लेख छपा है उसी में महिला आरक्षण को लेकर मुस्लिम महिलाओं की राय छपी है.पत्रिका और एमडीआरए के संयुक्त सर्वे ने दावा किया है कि 68 फीसदी मुस्लिम महिलाएं महिला आरक्षण के पक्ष में हैं. कई रंगों और बड़े अक्षरों में सजे इस प्रतिशत से जब हम हकीकत में उतरते हैं तो कहीं एक तरफ प्रतिशत के अक्षरों के मुकाबले बड़ी हीन स्थिति में सच पड़ा होता है। पता चलता है कि इस विशाल प्रतिशत का खेल मात्र ५१८ महानगरीय महिलाओं के बीच दो दिन में खेला गया है जो महिला मुस्लिम आबादी का हजारवां हिस्सा भी नहीं है.
सर्वे खेल का दूसरा मामला नक्सलवाद को लेकर है जो इसी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.लंबी दूरी की एक ट्रेन, एक समय में जितनी आबादी लेकर चलती है उससे लगभग एक चौथाई यानी ५१९ लोगों से राय लेकर पत्रिका और एमडीआरए ने दावा किया कि प्रधानमंत्री की राय यानी ‘नक्सलवाद आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है’,पर अस्सी फीसदी से ज्यादा लोग सहमत हैं.यानी बेकारी,महंगाई और बुनियादी सुविधाओं से महरूम जनता के लिए माओवाद ही सबसे बड़ा खतरा है.
तीसरा उदाहरण अलग तेलंगाना राज्य की मांग का है. तेलंगाना राज्य की मांग के सर्वे के लिए कंपनी ने हैदराबाद शहर को चुना है जिसमें छः सौ से अधिक लोगों को सर्वे में शामिल किया गया है.पहली बात तो यह है कि सर्वे में तेलंगाना क्षेत्र में आने वाले किसी एक जिले को क्यों नहीं शामिल किया गया? दूसरी बात यह कि करोंड़ों की मांग को समझने के लिए कुछ सौ से जानकारी के आधार पर करोड़ों की राय कैसे बतायी जा सकती है, आखिर यह कौन सा लोकतंत्र है?
बहरहाल,अभी मौजूं सवाल सर्वे कंपनी एमडीआरए से ये है कि मौलवियों और युवा धार्मिक नेताओं के हो रहे इस षड्यंत्रकारी सर्वे का असली मकसद क्या है?
कंपनी के शातिरी के खिलाफ निम्न पते, ईमेल, फ़ोन पर विरोध दर्ज कराएँ.
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