सूचना का अधिकार लोगों का जागरूक और सशक्त बनाने का एक अहम हथियार है लेकिन लंबी न्यायिक प्रक्रिया और विचाराधीन मामले आरटीआई कार्यकर्ताओं के लिए चिंता का सबब बने हुए हैं। मार्च माह तक मुबंई के सूचना आयुक्त के यहां 3600 विचाराधीन मामलें लंबित थे, जबकि देश के अन्य राज्यों में ऐस मामलों की कुल संख्या 16000 हैै।
कार्यकर्ताओं ने हाल ही में मुंबई सूचना आयुक्त और विभिन्न जन सूचना अधिकारियों के यहां से सूचना हासिल की और पाया कि 2007 में राज्य में 3 लाख से भी अधिक सूचना के अधिकार के तहत आवेदन प्राप्त हुए हैं। यह आवेदन महाराष्ट्र को सूचना के अधिकार को इस्तेमाल करने वाला अग्रणी राज्य बनाते हैं। लेकिन यदि इसी दर से आवेदनों की संख्या में इजाफा होता रहा तो 2009 में 10 लाख से अधिक आवेदनों के प्राप्त होने की उम्मीद है, जिसका अर्थ यह भी होगा की लंबित मामले भी इसी दर से बढ़ जाएंगे। इन लंबित मामलों की वजह से बहुत से अति संवेदनशील मामलों के निर्णयों में देरी हो रही है।
एक तरफ राज्य जहां पुराने मामलों के निपटारे में लगा वहीं दूसरी तरफ पुणे के सूचना आयुक्त वीवी कुवालेकर ने एक माह के भीतर 250 मामलों के निपटारे का रिकाॅर्ड कायम किया है। हाल ही में कुवालेकर और आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सेमिनार में बढ़ते लंबित मामलों पर चिंता व्यक्त की है। श्री कुवालेकर ने लंबित मामलों को कम करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे। उन्होंने आवेदक और जन सूचना अधिकारी के बीच एक अनौपचारिक बातचीत से ऐेसे मामलों में कमी लाने का सुझाव दिया था। साथ ही उन्होंने सरकारी अधिकारियों द्वारा फाइलों को ठीक प्रकार से सहेजकर ने रखने की धारणा को भी लंबित मामलों की बड़ी वजह माना। कुवालेकर ने पुणे के समान मुंबई में भी ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कानून लाने की बात कही ताकि लंबित मामलों में कमी लाई जा सके।
सोमवार, 7 जुलाई 2008
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