केन्द्रीय सूचना आयोग ने यह इच्छा जताई है कि भारत का मुख्य न्यायाधीश भी सूचना के अधिकार के दायरे में आना चाहिए। इसके लिए केन्द्रीय सूचना आयोग ने फैसला लिया है कि इसके लिए एक पूर्ण बेंच सुनवाई की जाएगी।
आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त श्री वज़ाहत हबीबुल्ला ने कहा कि हमें भारत के मुख्य न्यायाधीश के निर्णय से संबंधित दो शिकायतें मिली है। आयोग जल्द ही इस दोनों शिकायतों पर बेंच की सुनवाई करेगा और हमें आशा है कि हम इसे बिना किसी व्यवधान के लागू कराने में समर्थ होंगे। यह समस्या ऐसे समय में आ रही है जब मुख्य न्यायाधीश की साख गिर रही है। पिछले निर्णयो के देखते हुए एक अखबार में आये खबर के आधार पर सुभाष सी अग्रवाल और सी रमेश ने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दाखिल किया था। जिसमें अग्रवाल ने पूछा था कि क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश और राज्यों के मुख्य न्यायाधीश सूचना के अधिकार के अन्र्तगत आते है ? इस अपील को सर्वप्रथम कानून और न्याय विभाग को भेजा गया था जहाॅ से इसे पर्सनल और ट्रेनिंग विभाग को भेज दिया गया था लेकिन कही से भी सफलता नहीं मिलने के बाद श्री अग्रवाल ने केन्द्रीय सूचना आयोग में आवेदन की थी। श्री हबीबुल्ला ने कहा कि वर्तमान में यह विवाद का विषय है। कि क्या भारत का मुख्य न्यायाधीश संविधानिक प्राधिकरण है? क्या किसी एक व्यक्ति का निर्णय भी इस कानून के दायरे से बाहर हो सकता है? भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि भा. मु. न्य. एक संविधानिक प्राधिकरण है। और संविधानिक प्राधिकरण सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आता है साथ ही उसके बाद में व्यक्तव में कहा कि अगर वह सरकारी अधिकारी होता तो यह विवाद का विषय हो सकता था। साथ ही एक संसदीय समिति के अनुसार सभी संविधानिक प्राधिकरणों के इस दायरे में आना चाहिए। साथ ही कहा कि सूचना के अधिकार के खंड 2 में बताया गया हैं।इसके दायरे में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका भी आती है और इसके अनुसार भारत का मुख्य न्यायधीश और राज्यों के मुख्य न्यायधीशों भी इस कानून के दायरे में आते है।
शुक्रवार, 4 जुलाई 2008
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