किशोर, दिल्ली
मौका पड़ते ही मध्य प्रदेश सरकार दावा करती है वो सूचना का अधिकार अधिनियम लागू करने में सबसे आगे रही। लेकिन मध्य प्रदेश में आरटीआई ते तहत जानकारी लेना लोहे के चने चबाने के बराबर है। देश भर में कोई भी सूचना पाने के लिये फीस के तौर पर दस रुपये का पोस्टल ऑर्डर जमा कराया जा सकता है, लेकिन मध्य प्रदेश के अफसरों को संसद में पास हुए कानून की कोई परवाह नहीं। वहां पोस्टल ऑर्डर नहीं चलता और नकदी या बैंक ड्राफ्ट की मांग की जा सकती है। लेकिन नकदी जमा कराना तो इतना मुश्किल है कि बस पूछिये मत। कुछ विभाग नॉन ज्यूडिशियल स्टांप मांगते हैं। लेकिन ग्वालियर नगर निगम ने एक बार पोस्टल ऑर्डर भी स्वीकार कर लिये थे भले ही जानकारी ना दी हो। यानी फीस के मामले में कतई एकरुपता नहीं है। जबकि मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त तिवारी जी स्वयं एक दो बार तह चुके हैं कि पोस्टल ऑर्डर तो नकदी जैसा ही है। लेकिन उनके प्रदेश के अफसर उस कानून को मानने के लिये कतई तैयार नहीं हैं जिसे इस देश के नुमाइंदों की सबसे बड़ी संस्था ने पास किया है। हो सकता है कि दूसरे प्रदेशों में भी इस तरह की परेशानी होती हो।
कितना अच्छा हो कि सरकार आरटीआई फीस के लिये अलग से स्टांप निकाले जो डाकघरों, बैंकों आदि में उपलब्ध हो ताकि लोग फीस जमा कराने में होने वाली परेशानी से बच सकें।
kishorekamaldelhi@gmail.com
मंगलवार, 29 जुलाई 2008
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