कई जगह न्याय की गुहार लगाने के बाद गुजरात में जब एक बलात्कार पीड़िता को न्याय नहीं मिला तो उसने सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल करते हुए प्रश्न किया कि उसे कब न्याय मिलेगा ? इस 15 साल की लड़की का बलात्कार पिछले साल फरवरी में उस वक्त हुआ जब वह दक्षिण गुजरात के उमरपाडा ताल्लुक में कक्षा 8 में पढ़ रही थी। बलात्कार के बाद लड़की गर्भवती हो गई और उसने एक लड़के को जन्म दिया जिसकी 15 दिन के बाद मृत्यु हो गई। लड़की ने न्याय के लिए पुलिस का दरवाजा खटखटाया, लेकिन पुलिस के यहां से उसे निराशा ही हाथ लगी। हर जगह से निराश और हताश हो चुकी इस लड़की ने अन्ततः आरटीआई का इस्तेमाल किया और 23 जनवरी 2008 में मंगरोल में आरटीआई दायर की।
आरटीआई अर्जी में पीड़ित ने मंगरोल के सब इंस्पेक्टर और उमरपाडा चैकी के सहायक सब इंस्पेक्टर से पिछले साल 10 अक्टूबर में की गई शिकायत की प्रगति रिपोर्ट मांगी। साथ ही उसने उन सभी अधिकारियों की जानकारी मांगी जिनके पास उसका मामला लंबित रहा। पुलिस से जवाब न मिलने पर पीड़िता ने गुजरात सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। 16 मई को गुजरात सूचना आयोग ने निर्णय दिया कि पीड़िता को दस दिनों के भीतर निःशुल्क सूचनाएं उपलब्ध कराई जाएं। साथ की आयोग प्रश्न किया कि सूचना न देने पर क्यों न दोषी व्यक्ति पर जुर्माना लगाया जाए। आयोग के निर्णय के बाद 29 मई को पिछले साल 10 अक्टूबर को की गई शिकायत को आधार बनाकर पुलिस ने पीड़िता की शिकायत दर्ज की ।
सुनवाई के दौरान पीड़िता ने अपनी आवाज उठाते हुए मंगरोल के इंस्पेक्टर से प्रश्न किया कि वह अधिकारी कहां है जिसने बंदूक दिखाकर उसे घर आकर धमकी दी थी। लड़की ने स्थानीय पुलिस पर आरोप लगाया कि उसका केस दबाने के लिए उसने बलात्कारी से 50 हजार रूपये की घूस ले रखी है। पुुलिस ने जान बूझकर उसका केस दबाने की कोशिश की है और पुलिस की एफआईआर में भी उसके बलात्कार की गलत तारीख दर्ज है।
सूचना आयोग में मामले की सुनवाई के बाद गृह विभाग के अधिकारियों ने आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार करने के आदेश दे दिए हैं।
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